G-7, G-20 सभी के दिन लदेंगे, Trump के C-5 से अब बजेगा दुनिया में भारत का डंका

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अभिनय आकाश । Dec 13 2025 1:08PM

CS से बड़े देशों के बीच डील-मेकिंग आसान होगी, बिना लोकतंत्र या अमीरी के बंधन के। ट्रंप कह चुके हैं कि रूस को GS से निकालना बड़ी गलती थी। उन्होंने चीन को जोड़कर G9 बनाने का सुझाव भी दिया था। कनाडा के कननास्किस में जून महीने में G7 समिट का आयोजन हुआ था। इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध और ईरान इस्राइल संघर्ष जैसे मुद्दों पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और बाकी 6 सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी।

दुनिया के कई बड़े नेता सूट बूट पहने, हरीभरी लॉन में खड़े होकर फोटो खिंचाते नजर आते हैं। इनकी संख्या कभी 20 तो कभी सात होती है और जिसे जी20 व जी7 कहकर संदर्भित किया जाता है। लेकिन अब खबर है कि इस दुकान को तगड़ा झटका लगने वाला है। ऐसा झटका कि जो इसे बंद भी करा सकता है। डोनल्ड ट्रंप के वाशिंगटन से एक खुफिया दस्तावेज लीक हुआ है। जिसने ब्रिटेन के लंदन से लेकर जर्मनी के बर्लिन तक सन्नाटा पसरा दिया है। इस लीक्ड दस्तावेज के मुताबिक ट्रंप की टीम का मानना है कि पुराने नियम अब कबाड़ हो चुके हैं। इसलिए अब दुनिया को चलाने के लिए एक नई पंचायत बैठेगी। इसका नाम कोर फाइव है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस नए क्लब में यूरोप का पत्ता साफ है। इसमें पांच नए बाहुबली अमेरिका, चीन, रूस, जापान और भारत बैठेंगे। इसमें विचारधारा का कोई रोड़ा नहीं है। इसमें पाकिस्तान का कोई नामोनिशान नहीं है। ऐसे में सवाल तेज हो चला है कि क्या दुनिया का नक्शा बदलने वाला है?

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दुनिया के 5 ताकतवर का 'कोर-5'

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत, चीन, रूस और जापान के साथ मिलकर एक नया शक्तिशाली मंच 'कोर फाइव' (सी-5) बनाने पर विचार कर रहे हैं, जो मौजूदा जी-7 की जगह ले सकता है। नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी के एक गोपनीय ड्राफ्ट में यह विचार दर्ज था, जिसकी पुष्टि डिफेंस वन ने भी की है। सी-5 का मकसद ऐसे देशों को साथ लाना है जो वैश्विक शक्ति रखते हैं, भले ही वे लोकतांत्रिक हों या नहीं। इस समूह में 10 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश शामिल होंगे और नियमित बैठकें होंगी। पहली बैठक का एजेंडा मिडिल ईस्ट की सुरक्षा और इजराइल सऊदी अरब रिश्तों को सामान्य बनाना बताया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप का मानना है कि दुनिया मल्टीपोलर हो गई है, यानी कई ताकतवर देश है। इसलिए G7 जैसे पुराने ग्रुप पर्याप्त नहीं। CS से बड़े देशों के बीच डील-मेकिंग आसान होगी, बिना लोकतंत्र या अमीरी के बंधन के। ट्रंप कह चुके हैं कि रूस को GS से निकालना बड़ी गलती थी। उन्होंने चीन को जोड़कर G9 बनाने का सुझाव भी दिया था। कनाडा के कननास्किस में जून महीने में G7 समिट का आयोजन हुआ था। इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध और ईरान इस्राइल संघर्ष जैसे मुद्दों पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और बाकी 6 सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी।

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अमेरिका क्या कह रहा है?

दुनिया के तमाम दूसरे देश क्या कह रहे हैं? यह भी जानने की कोशिश करेंगे। तो C5 G7 से भी ज्यादा ताकतवर हो सकता है। C5 ग्रुपिंग क्या है? और कैसे बनी बात? तो जानकारी यह है कि बीते हफ्ते वाइट हाउस ने अपनी एक नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी का 33 पेज का पब्लिक वर्जन जारी किया। लेकिन पॉलिटको और डिफेंस व फंस जैसी अमेरिकी मैगजीन के मुताबिक एक लंबा अनपब्लिश्ड वर्जन है जिसमें C5 का जिक्र है। ट्रंप हमेशा से ही मानते हैं कि दुनिया मल्टीपोलर हो गई है। यानी कई ताकतवर देश हैं। तो G7 जैसे ग्रुप अब पर्याप्त नहीं है। ऐसे में C5 जैसे बड़े देशों के बीच डील मेकिंग आसान हो जाएगी जिससे अमेरिका अपना दबदबा हर तरफ कायम रख पाएगा।

दुनिया के 95% परमाणु हथियार इन्हीं पांचों के पास

इसका सबसे बड़ा फायदा पाकिस्तान से खुद को अलग दिखाने में है। दशकों तक पश्चिमी देश भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलते थे। यूरोप के देश अपनी सुरक्षा के लिए भी अमेरिका का मुंह ताकते हैं। लेकिन सीअगर बना तो दुनिया के 95% परमाणु हथियार इन्हीं पांचों के पास हैं। मिलिट्री पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले तीन देश अमेरिका, रूस और चीन सीमें हैं। ये वो देश हैं जो यूरोप की तरह किसी के पिछलग्गू नहीं है। इनकी अपनी रणनीतिक स्वायत्तता है। G7 देशों की कुल आबादी बम मुश्किल 78 करोड़ है। यानी दुनिया का सिर्फ 10% हैं। दूसरी तरफ C5 में 330 करोड़ लोग रहते हैं। यानी दुनिया की 42% आबादी। बाकी डिजिटल दौर में डाटा ही नया तेल है। 140 करोड़ भारतीय और करीब इतने ही चीनियों का डाटा ही एक खजाना है।

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भारत का रोल

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी को ही ले लीजिए। वहां पांच चौधरी बने बैठे हैं जो 1945 में सेकंड वर्ल्ड वॉर में जीते थे। तब हम गुलाम थे इसलिए बाहर रखे गए। आज हमारी आबादी उन पांचों से ज्यादा है। इकॉनमी में भी हम आ गए हैं। लेकिन फिर भी हमें अंदर नहीं घुसने दिया जाता। कभी चीन टांग अड़ाता है तो कभी बाकी देशों को डर लगता है कि उनकी पावर कम हो जाएगी। इसका सबसे बड़ा फायदा पाकिस्तान से खुद को अलग दिखाने में है। दशकों तक पश्चिमी देश भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलते थे।

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