शांति दूत बनकर घूम रहे ट्रंप ने खुद ही छेड़ दिया युद्ध, US-China Trade War से दुनिया सकते में

यह फैसला चीन के उस कदम के जवाब में आया है, जिसमें उसने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) के निर्यात पर नए नियंत्रण लगाए हैं। हम आपको बता दें कि यह खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में अनिवार्य हैं।
दूसरे युद्धों को खत्म कराने का दावा कर रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अब एक नया आर्थिक युद्ध छेड़ दिया है और यह युद्ध बंदूकों का नहीं, बल्कि टैरिफ और दुर्लभ खनिजों का है। अमेरिका और चीन के बीच यह नया टैरिफ संघर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए वैसा ही झटका है, जैसा 2018-19 के व्यापार युद्ध के समय देखा गया था। ट्रंप ने घोषणा की है कि 1 नवंबर से चीन से आने वाले सभी सामानों पर 100% शुल्क लगाया जाएगा और “महत्त्वपूर्ण सॉफ्टवेयर” के निर्यात पर नई पाबंदियाँ लगेंगी।
यह फैसला चीन के उस कदम के जवाब में आया है, जिसमें उसने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) के निर्यात पर नए नियंत्रण लगाए हैं। हम आपको बता दें कि यह खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में अनिवार्य हैं। बीजिंग दुनिया में इन खनिजों के 90% से अधिक परिशोधन (processing) पर नियंत्रण रखता है। ट्रंप ने चीन के इस कदम को “hostile order” यानी शत्रुतापूर्ण आदेश बताया और कहा कि बीजिंग “पूरी दुनिया को बंधक बनाने” की कोशिश कर रहा है।
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इस नई आर्थिक जंग की घोषणा के साथ ही वैश्विक बाजारों में हड़कंप मच गया। अमेरिका का S&P 500 इंडेक्स 2.7% गिर गया, नैस्डैक में भी तेज़ गिरावट आई, जबकि निवेशक सोने की शरण में भागे। डॉलर कमजोर पड़ा और वैश्विक निवेशकों में यह आशंका फैल गई कि वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच ‘टैरिफ युद्ध’ फिर से भड़क उठा है।
देखा जाये तो ट्रंप का यह फैसला केवल एक आर्थिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रणनीतिक चुनौती है। चीन ने जब दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण बढ़ाया, तो उसने न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया की औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया। इन खनिजों के बिना स्मार्टफोन, मिसाइल, सेमीकंडक्टर और बैटरी बनाना असंभव है। इसलिए चीन का यह कदम भू-अर्थशास्त्र (geo-economics) की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें वह अपनी प्राकृतिक संपदाओं को राजनैतिक दबाव के औजार के रूप में इस्तेमाल करता है।
ट्रंप की प्रतिक्रिया उतनी ही आक्रामक है जितनी अप्रत्याशित। यह कदम न केवल बीजिंग के लिए बल्कि अमेरिका के उद्योगों के लिए भी दोहरी चुनौती बनेगा— क्योंकि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ वर्षों से एक-दूसरे में गहराई से जुड़ी हुई हैं। लेकिन ट्रंप की प्राथमिकता फिलहाल राजनीतिक लाभ और “मेड इन अमेरिका” की घरेलू भावना को पुनर्जीवित करना है।
उधर, चीन के लिए यह विकास चिंताजनक है। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से धीमी वृद्धि, रियल एस्टेट संकट और घटती विदेशी मांग से जूझ रही है। ऐसे में अमेरिकी बाजार पर 100% टैरिफ उसके निर्यात क्षेत्र को गंभीर चोट पहुंचाएगा। चीन अब अपने प्रभाव को अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के अन्य हिस्सों में बढ़ाने की कोशिश करेगा ताकि अमेरिकी दबाव को संतुलित किया जा सके। लेकिन ट्रंप के कदम का एक बड़ा असर यह होगा कि पश्चिमी कंपनियाँ चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में और तेज़ी से आगे बढ़ेंगी। Apple, Tesla और अन्य अमेरिकी कंपनियाँ पहले ही ‘चाइना-प्लस-वन’ रणनीति पर काम कर रही हैं। अब यह प्रवृत्ति और तेज होगी।
दूसरी ओर, भारत के लिए यह परिदृश्य “संकट में अवसर” की तरह है। यदि दुनिया चीन पर निर्भरता घटाना चाहती है, तो भारत एक स्वाभाविक विकल्प बन सकता है। अमेरिका और यूरोप दोनों ही ऐसे साझेदार की तलाश में हैं जो भरोसेमंद हो, राजनीतिक रूप से स्थिर हो, और तकनीकी दृष्टि से सक्षम हो। भारत के पास इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तीन प्रमुख रास्ते हैं। पहला- भारत में भी कई दुर्लभ खनिजों के भंडार हैं, परंतु उनका परिशोधन ढांचा कमजोर है। यदि सरकार इस क्षेत्र में ‘राष्ट्रीय रेयर अर्थ मिशन’ जैसे कार्यक्रम को गति दे, तो भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है। दूसरा- ट्रंप की नीति से अमेरिकी कंपनियाँ चीन से हटकर भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया की ओर रुख करेंगी। भारत यदि भूमि सुधार, बिजली लागत और लॉजिस्टिक दक्षता में सुधार लाता है, तो यह निवेश आकर्षित कर सकता है। तीसरा- अमेरिका और जापान के साथ सेमीकंडक्टर और एआई अनुसंधान में सहयोग भारत को नई औद्योगिक शक्ति में बदल सकता है।
परंतु यह कहानी केवल अवसरों की नहीं है। ट्रंप के टैरिफ युद्ध से वैश्विक मंदी की संभावना बढ़ सकती है। अमेरिका और चीन दोनों भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं; किसी भी झटके से भारतीय निर्यात, आईटी सेवा और ऑटो उद्योग प्रभावित होंगे। इसके अलावा, यदि चीन दुर्लभ खनिजों के निर्यात को भारत तक सीमित करता है, तो भारत की बैटरी, मोबाइल और रक्षा विनिर्माण योजनाएँ बाधित हो सकती हैं। इसलिए भारत को केवल अवसर नहीं, बल्कि जोखिम प्रबंधन रणनीति भी तैयार करनी होगी।
देखा जाये तो अमेरिका-चीन टकराव वैश्विक शक्ति-संतुलन को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। यह अब केवल व्यापार की लड़ाई नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी, संसाधन और प्रभाव क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा बन चुका है। आने वाले वर्षों में यह संघर्ष तय करेगा कि दुनिया का औद्योगिक केंद्र एशिया में कहाँ स्थिर होगा— चीन में या उसके बाहर। भारत के पास यह अवसर है कि वह इस नए वैश्विक भूगोल में ‘सप्लाई चेन रेजिलियंस’ का नेतृत्व करे। इसके लिए उसे खनिज नीति, औद्योगिक निवेश और तकनीकी अनुसंधान में साहसिक कदम उठाने होंगे।
कुल मिलाकर देखें तो ट्रंप का यह ‘टैरिफ बम’ वैश्विक व्यापार में अस्थिरता का विस्फोट है। लेकिन इसके भीतर भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर छिपा है। यदि भारत इस चुनौती को दूरदृष्टि और नीति-संवेदनशीलता के साथ संभाले, तो वह न केवल इस तूफान से सुरक्षित निकल सकता है बल्कि इस नए वैश्विक आर्थिक युग में आत्मनिर्भर और निर्णायक शक्ति के रूप में उभर सकता है।
बहरहाल, ट्रंप ने भले ही दूसरे युद्धों को खत्म करने का दावा किया हो, परंतु उनका यह नया आर्थिक युद्ध आने वाले दशक का सबसे बड़ा वैश्विक शक्ति परीक्षण साबित हो सकता है— जिसमें भारत का प्रदर्शन यह तय करेगा कि वह केवल दर्शक रहेगा या इस नये आर्थिक युद्ध का विजेता।
-नीरज कुमार दुबे
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