स्वाति मालीवाल प्रकरण में छिपे गहरे सियासी मायने को ऐसे समझिए

Swati Maliwal
ANI
कमलेश पांडे । May 22 2024 5:29PM

भारतीय सियासत में विपक्षी दलों के बीच एक लंबी सियासी लकीर खींचने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए स्वाति मालीवाल केस कोई नई चीज नहीं है। बस, इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि पुराने साथियों के दुश्मन बन जाने का एक और नया मामला है जो समय के साथ पुराने मामलों की तरह दब जाएगा।

आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पीए विभव कुमार पर 'आप' की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने जो आरोप लगाया है, वह बहुत गम्भीर बात है। लेकिन उससे भी गम्भीर बात यह है कि इस मामले में शुरू से अबतक जो भी घटनाक्रम प्रकाश में आया है, उसके पीछे किसी गहरे सियासी षड्यंत्र का भी हाथ हो सकता है! इसलिए इस पूरी घटना के परिप्रेक्ष्य में छिपे सियासी मायने को समझना बहुत जरूरी है।

अंतरिम जमानत पर तिहाड़ जेल से मुख्यमंत्री आवास पहुंचे अरविंद केजरीवाल से मिलने पहुंचीं स्वाति मालीवाल के साथ मुख्यमंत्री के घर पर वैभव कुमार के इशारे पर या उनकी भागीदारी से या फिर दोनों तरह से जो कुछ भी हुआ, वह अप्रत्याशित था। लेकिन, उसकी बौखलाहट में दिल्ली पुलिस को फोन करके स्वाति मालीवाल बुरी तरह से घिर गईं। ऐसा इसलिए कि इस मामले में एफआईआर करवाने से पहले पार्टी के स्तर पर उन्होंने घटनाक्रम के डैमेज कंट्रोल की कोशिश की, जिसमें राज्यसभा सांसद संजय सिंह का भी उन्हें प्रारंभिक साथ मिला। परंतु उनके सारे प्रयास जब विफल हो गए, तब उन्होंने इस मामले में एफआईआर दी। जिसके बाद पूरी आप पार्टी ही उनके खिलाफ हो गई। उनके लिए सुकून की बात यह है कि भाजपा ने उनके मुद्दे को तूल दे दिया और उपराज्यपाल वी के सक्सेना तक ने उनसे हमदर्दी जताई। इससे आप पार्टी के इन आरोपों को बल मिला कि अब वह बीजेपी की एजेंट बन चुकी हैं।

इसे भी पढ़ें: सरकारी कर्मचारी, पार्टी पदाधिकारी, सांसद, नेता कई अंजाम वही, केजरीवाल एंड कंपनी में स्वैग से नहीं लात-घूंसों से स्वागत का अंदाज बहुत पुराना है

ऐसे में सीधा सवाल यही उठता है कि अरविंद केजरीवाल के सियासी दोस्तों ने उनसे दुश्मनी तो बहुत साधी, लेकिन वो प्रायः बेअसर ही रही है। क्योंकि स्वाति मालीवाल से पहले भी अरविंद केजरीवाल के कई राजनैतिक दोस्त उनको आरोपों के कठघरे में खड़ा कर चुके हैं, जिनमें कपिल मिश्रा से लेकर कुमार विश्वास तक का नाम शुमार किया जाता है। बावजूद इसके अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक सेहत विशेष रूप से प्रभावित नहीं हुई है। वहीं कड़वा सच यह भी है कि दुश्मन की तरह पेश आ रहे अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी कोई खास मुकाम हासिल नहीं कर पाये। यदि किरण बेदी, अन्ना हजारे और जनरल वी के सिंह की बात छोड़ दी जाए तो। ऐसे में यही बात सामने आ रही है कि बहुचर्चित स्वाति मालीवाल प्रकरण से मौजूदा संसदीय चुनाव में चाहे जो भी राजनीतिक नुकसान हो, लेकिन स्वाति मालीवाल केस का अरविंद केजरीवाल की सियासत पर बहुत ज्यादा असर होगा, ऐसा तो मुझे नहीं लगता।

आपने देखा होगा कि दिल्ली के 7 लोकसभा क्षेत्रों से लेकर पंजाब के 14 लोकसभा क्षेत्रों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का धुआंधार कैंपेन चल रहा है। कभी मीडिया के जरिये, तो कभी सोशल मीडिया के माध्यम से निरंतर वो अपनी बात कह रहे हैं और अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल के साथ भी लगातार रोड शो कर रहे हैं। इसी बीच वो नये नये नारे भी गढ़ रहे हैं, जिससे स्वाति मालीवाल से जुड़े सियासी हमले निष्प्रभावी दिखाई दे रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि स्वाति मालीवाल केस के लेकर दिल्ली पुलिस की टीम पूरी तरह से सक्रिय है और उनके पीए विभव कुमार की गिरफ्तारी ने उन्हें अंदर से हिलाकर रख दिया है। ऐसा इसलिए कि पीए किसी भी व्यक्ति का वह राजदार होता है, जिसका अचानक चला जाना या किसी षड्यंत्र के तहत उसके बॉस से उसे अलग कर दिया जाना, ऐसी क्षति होती है, जिसकी त्वरित भरपाई किसी भी व्यक्ति के लिए मुश्किल होती है। इसलिए अरविंद केजरीवाल पर इस पूरे घटनाक्रम का तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों प्रभाव पड़ेगा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आप नेत्री सुनीता केजरीवाल के साथ रोड शो के दौरान बीजेपी के एक नारे को थोड़ा और विस्तार देते हुए कटाक्ष किया कि, 'अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी जाने वाले हैं।' इतना ही नहीं, भले  वो अंतरिम जमानत पर हैं और आगामी 2 जून को तिहाड़ जेल में उन्हें फिर से सरेंडर करना है। लेकिन चुनाव अभियान के दौरान वो खुद भी और उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल भी लोगों को बार बार यह बात बताती रहती हैं कि यदि दिल्लीवालों ने 'इंडिया गठबंधन' के उम्मीदवारों को वोट देकर उनकी जीत पक्की कर दी तो अरविंद केजरीवाल को ज्यादा दिन के लिए जेल नहीं जाना पड़ेगा। 

लेकिन इस बीच अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी समस्या स्वाति मालीवाल केस बन चुकी है, यह भी उन्हें समझना होगा। क्योंकि अरविंद केजरीवाल के पुराने साथियों में से एक और काफी निकटस्थ रहीं स्वाति मालीवाल अब उनकी नई विरोधी बन गई हैं। स्वाति मालीवाल ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री आवास पर उनके साथ मारपीट की गई, जिसमें अरविंद केजरीवाल के पीए विभव कुमार ने उन पर हमला किया। इस मामले में एफआईआर दर्ज होते ही दिल्ली पुलिस विभव कुमार को गिरफ्तार कर ले गई। जिसके बाद से वो पुलिस रिमांड पर हैं।

हालांकि, भारतीय सियासत में विपक्षी दलों के बीच एक लंबी सियासी लकीर खींचने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए स्वाति मालीवाल केस कोई नई चीज नहीं है। बस, इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि पुराने साथियों के दुश्मन बन जाने का एक और नया मामला है जो समय के साथ पुराने मामलों की तरह दब जाएगा। या फिर सवाल यह भी है कि यह मामला कहां तक जाएगा और अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर यह केस का कितना प्रभाव डालेगा, यह बदलता वक्त ही बताएगा, क्योंकि केंद्र में सत्ता परिवर्तन भले ही हो, किंतु अधिकारियों की मनोदशा बदलेगी, ऐसा मुझे नहीं लगता? क्योंकि भारतीय प्रशासन और न्यायपालिका का यह निर्विवाद चरित्र रहा है कि जो भी एक बार कानूनी मकड़जाल में फंस गया वो फिर बाहर बमुश्किल ही निकल पाता है चाहे उसका राजनीतिक रसूख कुछ भी हो, कितना भी बड़ा हो। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव इसके दिलचस्प उदाहरण हैं।

इसलिए इतना तो कहा ही जा सकता है कि भले ही अपनी अचूक सियासी रणनीति के बल पर अरविंद केजरीवाल भविष्य में प्रधानमंत्री बन जाएं, लेकिन जो विवाद उनके साथ जुड़ चुके हैं, वो उनकी राजनीति पर अपना कुप्रभाव अवश्य डालेंगे। स्वाति मालीवाल केस उनमें से एक है। इस केस ने अरविंद केजरीवाल को एकाएक ऐसा उलझा दिया है, जिसे सुलझाने के लिए उन्हें एक और विभव कुमार पैदा करना होगा। क्योंकि इस उलझन की सबसे बड़ी वजह उनके सहयोगी और करीबी विभव कुमार की गिरफ्तारी है। खास बात यह है कि स्वाति मालीवाल ने विभव कुमार पर मुख्यमंत्री आवास पर मारपीट करने जैसा जो आरोप लगाया है, वह उत्तरप्रदेश के मायावती गेस्ट हाउस कांड की याद तरोताजा कर देता है।

राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अरविंद  केजरीवाल के लिए कभी अहम तो स्वाति मालीवाल भी रही हैं, लेकिन पीए विभव कुमार का महत्व ऐसे भी समझा जा सकता है कि जेल जाने के बाद मुलाकात के लिए जेल प्रशासन को जिन मुलाकातियों की सूची दी गई, उसमें उनका भी नाम शामिल था। इसलिए उन्हें कमजोर करने के लिए विभव कुमार को भी फंसाना जरूरी था, जो अब ताजा विवाद के केंद्र में हैं! यहां पर मुश्किल यह है कि सिर्फ स्वाति मालीवाल ही नहीं, बल्कि संजय सिंह की बातों से भी लगता है कि कहीं न कहीं विभव कुमार ही दोषी हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल की एक भरोसेमंद कैबिनेट मंत्री आतिशी ने विभव कुमार को बेकसूर ठहराते हुए स्वाति मालीवाल पर ही बीजेपी के हाथों में खेलने का आरोप लगाया है, जिसकी अब कुछ कुछ पुष्टि बदलते घटनाक्रमों से भी होने लगी है।

इस पूरे प्रसंग में गौर करने वाली बात यह भी है कि पूरे विवाद में संजय सिंह एक अलग ही छोर पर दिखाई पड़ते हैं। जबकि अरविंद केजरीवाल के साथ विभव कुमार और संजय सिंह को सार्वजनिक रूप से आखिरी बार लखनऊ में देखा गया था। इससे स्पष्ट है कि विभव कुमार को साथ लखनऊ ले जाना भी अरविंद केजरीवाल की तरफ से दिया हुआ स्पष्ट संदेश ही था, जिस दौरान संजय सिंह का साथ होना भी बहुत मायने रखता है। कहना न होगा कि प्रवर्तन निदेशालय और अन्य जांच एजेंसियों के नोटिस की तरह विभव कुमार का मामला भी अरविंद केजरीवाल राजनीतिक रूप से ही लड़ रहे हैं। यही वजह है कि इस लड़ाई में अरविंद केजरीवाल की तरफ से मीडिया के सामने आ रहीं आतिशी भी स्वाति मालीवाल के टारगेट पर आ गई हैं, जिससे यह सियासी लड़ाई दिलचस्प बनती जा रही है। 

सवाल यह भी है कि जब से मारपीट की यह घटना हुई है, स्वाति मालीवाल अपनी बात या तो पुलिस को बता रही हैं, या फिर सोशल मीडिया के माध्यम से आमलोगों को बता रही हैं। उनका यहां तक कहना है कि "दिल्ली के मंत्री झूठ फैला रहे हैं कि मुझ पर भ्रष्टाचार की एफआईआर हुई है, इसलिए बीजेपी के इशारे पर मैंने ये सब किया। यह एफआईआर 8 साल पहले 2016 में हो चुकी थी जिसके बाद मुझे सीएम और एलजी दोनों ने दो बार महिला आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। क्योंकि यह केस पूरी तरह फर्जी है जिस पर डेढ़ साल से हाई कोर्ट ने स्‍टे लगाया हुआ है।"

समझा जाता है कि अरविंद केजरीवाल और विभव कुमार के अलावा स्वाति मालीवाल सबसे ज्यादा अपनी पूर्व सहयोगी आतिशी के व्यवहार से दुखी हैं। क्योंकि जब प्रेस कांफ्रेंस करके संजय सिंह के विभव कुमार को दोषी बता दिया तो आप की हुई किरकिरी के बाद आतिशी ही अरविंद केजरीवाल का पक्ष रख रही हैं। आतिशी का साफ आरोप है कि जो कुछ हुआ वो स्वाति मालीवाल ने बीजेपी के इशारे पर किया है। वहीं, स्‍वाति मालीवाल का कहना है कि, "आप की पूरी ट्रोल आर्मी मुझ पर लगा दी गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने सच बोला...सभी लोगों को फोन करके बोला जा रहा है कि स्वाति की कोई पर्सनल वीडियो है तो भेजो... लीक करनी है... मेरे रिश्तेदारों की गाड़ियों के नंबर से उनकी डिटेल्‍स ट्वीट करवाकर उनकी जान खतरे में डाल रहे हैं।"

इस प्रकार यदि आप बीते एक दशक से ज्यादा समय के वाकयों को याद करें तो आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के पहले से ही बहुत सारे लोग इंडिया एगेंस्ट करप्शन के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से जुड़े हुए थे, लेकिन गुजश्ते वक्त के साथ बारी बारी पूर्वक कई लोगों का साथ छूटता चला गया। गौर करने वाली बात यह है कि कई साथी तो चुपचाप अपना सियासी रास्ता अलग कर लिये, लेकिन कई ऐसे भी रहे जिन्होंने अरविंद केजरीवाल पर तरह तरह के काफी गंभीर आरोप भी लगाये और फिर गुमनाम हो गए।

इसलिए अमूमन सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा रहती  है कि अरविंद केजरीवाल तो अपनी जगह बरकरार हैं और नित्य नई सियासी लकीरें खींच रहे हैं, जबकि उनके  साथियों का कहीं कोई अता-पता भी नहीं है। 

कहना न होगा कि कुछ लोग भले ही कट्टर विरोधी बने हुए हैं और लगातार आक्रामक देखे जाते हैं, लेकिन वो अपनी कोई अलग सियासी हैसियत नहीं बना पाये हैं। भले ही कभी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे, मशहूर प्रशासक किरण बेदी जैसे लोगों ने पहले ही मना कर दिया कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, जबकि बाद में पता चला कि उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कहीं और थी, तथा अरविंद केजरीवाल अपने सही रास्ते चलते जा रहे हैं। इसलिए स्वाति मालीवाल भी अरविंद केजरीवाल के पुराने राजनीतिक मित्रों की उसी कतार में देखी जा सकती हैं, भले ही आम आदमी पार्टी की तरफ से उनके बीजेपी प्रभाव में होने के आरोप ही क्यों न लगाये जा रहे हों?

देखा जाए तो आम आदमी पार्टी से बेदखल कर दिये गये अरविंद केजरीवाल के साथियों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिनमें कुछ तो ऐसे हैं जो अपना अलग रास्ता अख्तियार कर चुके हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर आप नेता के खिलाफ न तो कोई मुहिम चला रहे हैं, न ही किसी मुहिम का हिस्सा हैं। यदि आप योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आशुतोष जैसे पुराने साथियों की बात करें तो वो अरविंद केजरीवाल को जरूर याद आते होंगे। आज वे साथ तो नहीं हैं, लेकिन यदि साथ होते तो मुसीबतें भी कम होतीं। 

यह भी उतना ही सच है कि हाल-फिलहाल जिस तरह का बेढंगा विवाद हुआ है, और जिस तरह की पक्षपाती खबरें सामने आ रही हैं, वैसे में यदि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे लोग साथ होते तो बात इतनी नहीं बिगड़ती। अब अरविंद केजरीवाल के पास ट्रबलशूटर के रूप में ले देकर सिर्फ संजय सिंह ही बचे हुए थे, लेकिन फिलवक्त बाहर भीतर जो चल रहा है, उसमें तो यही लगता है कि संजय सिंह भी बस कहने भर को साथ दिखाई दे रहे हैं। अब उनकी भूमिका भी ऐसी नहीं लगती कि राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था। जैसे पहले वो मुश्किलों के अरविंद केजरीवाल तक पहुंचने से पहले ही सामने दीवार बन कर खड़े हो जाते थे।

हां, अरविंद केजरीवाल के पुराने साथियों में कुछ ऐसे जरूर हैं जो दिन रात पानी पिलाने की कोशिश में रहते हैं और मौका मिलते ही आक्रामक रुख अपना लेते हैं। जैसे, कपिल मिश्रा ने ही सबसे पहले अरविंद केजरीवाल पर 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने जैसा गंभीर आरोप लगाया था, लेकिन हवा हवाई साबित हुआ। क्योंकि किसी ने भी उनके आरोप को गंभीरता से नहीं लिया। कहने को तो वो जांच एजेंसियों को सबूत भी सौंप आये थे, लेकिन कहीं से कोई बात सामने नहीं आई। अरविंद केजरीवाल के साथ रहते हुए तो वो दिल्ली सरकार में मंत्री भी बने थे, लेकिन बीजेपी के टिकट पर वो विधानसभा चुनाव भी हार गये। ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल पर वो ठीक वैसे ही हमलावर रहते हैं, जैसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देखा जाता है।

इसी प्रकार कुमार विश्वास भी कभी अरविंद केजरीवाल के बेहद खास लोगों में शुमार हुआ करते थे, लेकिन दोस्ती खत्म होने के बाद तो वो उनके आतंकवादियों से रिश्ते होने तक का इल्जाम लगा चुके हैं। और जब भी मौका मिलता है, एक कविता ऐसी जरूर सुनने को मिलती है जिसमें निशाने पर अरविंद केजरीवाल होते ही हैं। कुमार विश्वास के बारे में सुना जा रहा था कि वो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हो सकता है इसकी बड़ी वजह ये भी रही हो कि उनकी वजह से बीजेपी को अभी तक कोई फायदा नहीं मिला है।

कहा तो यहां तक जाता है कि मुनीश रायजादा भी कभी अरविंद केजरीवाल के सहयोगियों में शुमार हुआ करते थे, लेकिन साथ छूटने के बाद से वो लगातार तरह तरह के आरोप लगाते रहे हैं। दरअसल, हाल ही में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के उपराज्यपाल ने टेरर फंडिंग को लेकर एनआईए जांच की सिफारिश की है, उसके दृष्टिगत जानने वाली बात यह है कि अरविंद केजरीवाल पर लगे नये इल्जाम का आधार मुनीश रायजादा द्वारा लगाये आरोप ही हैं, जो अब अपना असर दिखा रहे हैं।

इस प्रकार नाम तो ऐसे कई हैं, लेकिन दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राजकुमार आनंद और चर्चित नेत्री शाजिया इल्मी का जिक्र यहां मुनासिब लगता है। आज शाजिया इल्मी बीजेपी में हैं, लेकिन उनको भी तभी ज्यादा सक्रिय देखा जाता है जब मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से जुड़ा हो। फिलवक्त स्वाति मालीवाल केस के सामने आने पर भी उनको केजरीवाल को निशाना बनाते देखा गया था। वहीं, राज कुमार आनंद दिल्ली सरकार में मंत्री हुआ करते थे। किंतु दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व मंत्री सुरेंद्र जैन और राज्यसभा सांसद संजय सिंह के जेल जाने तक तो नहीं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के जेल जाते हुए उनको अवश्य लगा कि अब बहुत हो गया। इसलिए भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर वो भी अपनी तरफ से मंत्री पद से इस्तीफा दे दिये और फिलहाल बीएसपी के टिकट पर दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। 

सच कहूं तो यह ठीक है कि शराब नीति केस में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप मुखिया अरविंद केजरीवाल को जेल तक जाना पड़ा है, लेकिन उनकी राजनीतिक पोजीशन आज भी बरकरार है और उनका स्वर्णिम राजनीतिक भविष्य भी दिखाई दे रहा है। जबकि उनके दोस्त से दुश्मन बन चुके नेताओं के पास कहीं कोई उल्लेखनीय राजनीतिक ठिकाना नहीं दिखता है। बस उनका जैसे तैसे गुजारा चल रहा है, क्योंकि उनके पास या तो कोई स्पष्ट राजनीतिक दृष्टि नहीं थी या फिर जनसमस्याओं से जूझने वाला वो सियासी जज्बा जो हर नेता में नहीं होता। और इसके बिना कोई मशहूर नेता भी नहीं बनता।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़