हाथी हमारे साथी बस कहने की बात... हाथीदाँत के लिए इन्हें रोजाना मारा जा रहा है
आमतौर पर जन्म के आधार पर हाथियों में नर और मादा हाथियों की संख्या लगभग बराबर होती है लेकिन प्रति पाँच वर्ष में होने वाली गणना में एक नर पर तीन मादा का अनुपात दर्ज हुआ है.... इसका क्या कारण है ?
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के आधार पर हाथियों का पूर्वज एरावत हाथी को माना जाता है, श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं हाथियों में ऐरावत हूँ। दुनिया के लगभग सभी धर्मों में हाथी को पवित्र और सौभाग्यशाली माना जाता है। 15 अक्टूबर 2010 को भारत के पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा जारी सूचना के आधार पर हाथी को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया था। जबकि हकीकत यह है कि हाथी दाँत के लिए सैंकड़ों हाथियों को रोजाना मारा जा रहा है और बड़ी बेदर्दी से मशीन द्वारा हाथीदाँत को काट कर निकाला जाता है जबकि दाँत का एक तिहाई हिस्सा हाथी के शरीर के भीतर होता है। लगभग 10,000 से 35000 किलो के भारी-भरकम और दुनिया के सबसे विशालकाय जीव की रोजाना हत्या हो रही है हाथीदाँत के लिए..। हाथीदाँत से बने सामान "पासो" के सबसे ज्यादा ग्राहक बौद्ध गया, सारनाथ जैसे बौद्ध तीर्थ स्थलों पर मौजूद रहते हैं यहाँ पर हाथीदाँत से बनी माला, मनके, चूड़ी, कड़े और टेकू की माँग सबसे ज्यादा होती है। दुनिया में खपत और पूर्ति के मामले में चीन सबसे आगे है...75 प्रतिशत हाथीदाँत की खपत चीन में होती है। राजस्थान सहित देश के कुछ अन्य हिस्सों में पंसारी की दुकानों पर खुलेआम हाथीदाँत की भस्म बिकती है और गंजेपन से परेशान लोग मुँहमांगी कीमत देकर इसे खरीदते हैं हालांकि प्रशासन द्वारा कई बार इन पंसारियों के खिलाफ कार्यवाही हुई है।
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची के तहत हर पाँच साल में हाथियों की गणना की जाती है। 2017 में हुई गणना के अनुसार भारत में हाथियों की कुल सँख्या 27312 दर्ज की गई है इसमें कर्नाटक में सबसे ज्यादा 6048, असम में 5719, केरल में 3054 और झारखंड में 555 दर्ज हुई। झारखंड में हाथी राजकीय पशु है लेकिन नक्सलियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन अभियान के कारण बहुत सारे हाथी यहाँ से पलायन करके अन्य राज्यों की सीमाओं में चले गए। आमतौर पर जन्म के आधार पर हाथियों में नर और मादा हाथियों की संख्या लगभग बराबर होती है लेकिन प्रति पाँच वर्ष में होने वाली गणना में एक नर पर तीन मादा का अनुपात दर्ज हुआ है.... इसका क्या कारण है ? क्या नर हाथी मादा हाथी से शारीरिक रूप से ज्यादा कमजोर होते हैं या हाथीदाँत के लिए मारे जाने के कारण इनकी संख्या मादा की अपेक्षा कम दर्ज होती है। जी हाँ, इसका कारण है हाथीदाँत।
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क्योंकि बाहर दिखने वाले बेशकीमती दाँत केवल नर हाथी के ही होते हैं, मादा हाथी में यह दाँत नहीं होते, इसीलिए औसतन प्रतिदिन मरने वाले सौ हाथियों में नब्बे प्रतिशत हाथी नर होते हैं। चीन में हाथीदाँत से बनी बेशकीमती चीजों को उपहार में भेंट करना वहाँ की संस्कृति का एक हिस्सा है। हाथीदाँत पर नक्काशी करके अपने आलीशान बंगलों में सजाना शानोशौकत का प्रतीक माना जाता है और ऐसे लोग इसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं, इन शौकीनमिजाज लोगों के कारण हाथीदाँत की तस्करी को बढ़ावा मिलता है। इसके अतिरिक्त हेयर पिन, बटन, चीनी कांटा, कंघी, आभूषण, पियानो की चाभियाँ, आलीशान घरों के दरवाजों के हैंडल और मनुष्य के नकली दांत बनाने में हाथीदाँत का प्रयोग होता है...कुछ स्थान विशेष में हाथीदाँत की भस्म को रसौत में मिलाकर लगाने से गंजापन दूर होना, प्रेतबाधाओं को भगाने और धन प्राप्ति के लिए भी इसका बहुतायत में प्रयोग होता है।
यहाँ यह प्रश्न उठता है इनमें से कौन-सी चीज इतनी महत्वपूर्ण है जिसके लिए हम हाथी जैसी संवेदनशील, मददगार, पूजनीय और मानव के मित्रवत जीव की निर्मम हत्या कर देते हैं? क्यों ना इनमें से बहुत जरूरी चीजों की पूर्ति गैर शिकार किए जाने वाले या स्वत:मृत हाथियों के दाँत से की जाए। इसके लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा। सरकार को स्वत:मृत हाथी से प्राप्त दाँत को खरीदने की अनुमति देनी होगी ताकि यह जघन्य अपराध कम हो.. साथ ही देश में हाथीदाँत से बने सामानों को बेचने और खरीदने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होगा, तीर्थ स्थलों आदि पर बिकने वाले हाथीदाँत के सामान को जब्त करके कठोर सजा का प्रावधान सख्ती से लागू करना होगा, साथ ही शानोशौकत के लिए बेजुबान हाथीदाँत को सजाने की मनोवृति को बदलना होगा, यह महत्वपूर्ण काम युवा पीढ़ी कर सकती है अगर ठान ले। गहनों की शौकीन महिलाओं को हाथीदाँत से बने आभूषणों को अपने शरीर पर सजाते वक्त हाथी की खून से लथपथ मृत देह को याद रखना होगा तब ही इन गहनों से उनका मोह छूटेगा। "हाथीदाँत से बने सामान को प्रयोग में नहीं लाएंगे" यह संकल्प प्रत्येक देशवासी विश्व हाथी दिवस पर करें, कराए और उस पर आजीवन अमल भी किया जाए, जिस प्रकार सिंगापुर सरकार ने 2021 से हाथीदाँत और उससे बने तमाम तरह के सामान की घरेलू बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है उसी प्रकार भारत में भी इस नियम को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
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हाथियों को बचाने के लिए माँग और पूर्ति के नियम पर विचार करना होगा..माँग को तेजी से घटाकर इन तस्करों के हौसलों पर अंकुश लगाया जा सकता है। हम सभी जानते हैं कि कानून का भय हाथियों को नहीं बचा सकता है, कोई बचा सकता है तो वह है हमारा दृढ़ संकल्प कि हम हाथीदाँत से बने किसी सामान को न खुद खरीदेंगे और न खरीदने देंगे।
-डॉ. दीपा गुप्ता
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