यूपी की राज्यपाल महिलाओं—बच्चों की बदहाली पर चुप क्यों?

Anandiben Patel
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उत्तर प्रदेश में स्कूलों में 21.83 लाख नामांकन पिछले साल की तुलना में कम हुए, जबकि बिहार में 6.14 लाख, राजस्थान में 5.63 लाख और पश्चिम बंगाल 4.01 लाख नामांकन कम हुए हैं। उत्तर प्रदेश में मील कवरेज में 5.41 लाख छात्रों की कमी आई।

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक बार फिर चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने महिलाओं और छात्राओं को चेतावनी दी कि अगर सावधानी नहीं बरती गई तो परिणाम भयावह हो सकते हैं। पटेल का कहना है कि दूर रहें, वरना आप 50 टुकड़ों में मिलेंगी। यह टिप्पणी उनके पिछले दावे के ठीक अगले दिन आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप का असर देखने के लिए किसी अनाथालय में जाना चाहिए, जहाँ 15 साल की लड़कियाँ अपने बच्चों के साथ कतार में खड़ी होती हैं। राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों और न्यायाधीशों के साथ बैठक में भी छात्रों को लिव-इन रिलेशनशिप से बचाने के उपाय सुझाए थे।

राज्यपाल पटेल का यह बयान निश्चित तौर पर युवतियों को जागरुक करने वाला और लिव इन रिलेशनशिप के खतरों से आगाह करने वाला है। सवाल यही है कि क्या उत्तर प्रदेश की युवतियों और महिलाओं के समक्ष यही एक खतरा है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल ने महिलाओं से जुड़े सिर्फ एक खतरे के सावचेत रहने की सीख दी है। लिव इन रिलेशनशिप के नकारात्मक पहलू हैं जरूर, लेकिन इस चलन अभी व्यापक रूप से नहीं है। महिला राज्यपाल उत्तर प्रदेश में महिलाओं से जुड़े अन्य खतरों को अनदेखा कर गई, क्योंकि शायद वहां भाजपा की सरकार है। अन्य खतरे लिव इन रिलेनशिप से कहीं ज्यादा गंभीर है। इनका निदान भी सरकार के लिए आसान नहीं है। राज्यपाल ने कभी इन खतरों का जिक्र तक नहीं किया।

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,48,211 मामले दर्ज किए गए। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 66,381 मामले, उसके बाद महाराष्ट्र में 47,101 और राजस्थान में 45,450 मामले दर्ज किए गए। इन तीनों राज्यों में से महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में वर्ष 2023 में भी भाजपा की सरकारें थी। ऐसे में भाजपा महिला अपराधों की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। महिलाओं से जुड़े साइबर अपराधों में लखनऊ का देश में चौथा स्थान है, जिसमें अश्लील फोटो-वीडियो और फेक कंटेंट जैसे मामले शामिल हैं। इस श्रेणी में लखनऊ से आगे बैंगलुरु, हैदराबाद और दिल्ली हैं।

उत्तर प्रदेश जहां महिला अपराधों में अग्रणी है, वहीं महिलाओं और बच्चों के अन्य मामलों में पिछड़ा हुआ है। देश के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 63 जिलों में 50 फीसदी से अधिक बच्चे आंगनवाड़ियों में नामांकित हैं और कुपोषित पाए गए हैं, जिनमें से 34 जिले अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के जून 2025 के पोषण ट्रैकर के अनुसार महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम के कुछ जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 34 जिले ऐसे हैं जहां बच्चों में कुपोषण की दर 50 फीसदी से अधिक है। इसके बाद मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और असम का स्थान है। 

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी वार्षिक स्वास्थ्य रिपोर्ट (2024-25) के अनुसार, विगत वर्षों में सुधार के बावजूद उत्तर प्रदेश भारत में सबसे अधिक बाल मृत्यु दर वाले राज्यों में शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 43 बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं। वर्तमान शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 1,000 जीवित जन्मों पर 38 है, जबकि नवजात मृत्यु दर(आईएमआर) 28 है। यूनिसेफ इंडिया रिपोर्ट 2020 के अनुसार लगभग 46% मातृ मृत्यु और 40% नवजात मृत्यु प्रसव के दौरान या जन्म के बाद पहले 24 घंटों के भीतर हो जाती हैं। 

उत्तर प्रदेश में स्कूलों में 21.83 लाख नामांकन पिछले साल की तुलना में कम हुए, जबकि बिहार में 6.14 लाख, राजस्थान में 5.63 लाख और पश्चिम बंगाल 4.01 लाख नामांकन कम हुए हैं। उत्तर प्रदेश में मील कवरेज में 5.41 लाख छात्रों की कमी आई। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआइएसई) की वर्ष 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 18 प्रतिशत सरकारी स्कूलों, अर्थात लगभग 27,000 स्कूलों के भवन जर्जर स्थिति में हैं। इनमें से कई स्कूलों की छतें और दीवारें ख़तरनाक स्थिति में हैं। लखनऊ में प्राथमिक विद्यालय और नसीराबाद में छत का प्लास्टर गिरने से दो बच्चे घायल हो गये। नोएडा और गोरखपुर के इलाक़ों से भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आ चुकी हैं।

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन (एएसईआर) 2024 की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश के 22 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में कार्यशील शौचालय ही उपलब्ध नहीं हैं और 35 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं। लगभग 40 प्रतिशत विद्यालयों में तो नियमित स्वच्छता व्यवस्था ही नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या और गम्भीर है, जहाँ शौचालयों की कमी के कारण लड़कियों की ड्रॉपआउट दर में 10-12 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है। शिक्षा मंत्रालय की 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 28 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पेयजल की सुविधा नहीं है और 40 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन उपलब्ध नहीं है। आश्चर्य यह है कि राज्यपाल आनंदी बेन ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं और बच्चों से जुड़े इन मुदृदों का कभी जिक्र तक नहीं किया। बेहतर होता कि जिस तरह राज्यपाल पटेल ने लिव इन रिलेशनशिप से युवतियों को आगाह किया, उसी तरह योगी सरकार को भी आगाह करती तो शायद उत्तर प्रदेश में महिलाओं की मौजूदा हालत बेहतर हो सकती थी।

- योगेन्द्र योगी

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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