तरक्की को मुंह चिढ़ा रहे हैं महिला अपराधों के आंकड़े

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डब्ल्यूपीएस इंडेक्स (महिला शांति और सुरक्षा सूचकांक) की 2023 की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग साल 2023 में 128वें स्थान पर रही। डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और स्वीडन शीर्ष पर रहे, जबकि अफगानिस्तान, यमन और मध्य अफ्रीकी गणराज्य सबसे निचले स्थान पर रहे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2023 के महिला अपराधों के आंकड़े देश की तरक्की के आंकड़ों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। देश एक तरफ जहां रक्षा, विज्ञान—तकनीकी, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में जहां लगातार आगे बढ़ रहा है वहीं महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में शर्मसार हो रहा है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में उससे पिछले दो सालों की तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराध के ज्यादा मामले सामने आए हैं। सबसे ज्यादा केस उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। उसके बाद महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2023 में पूरे देश में ऐसे करीब 4.5 लाख मामले दर्ज किए गए।

वर्ष 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,48,211 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2022 में 4,45,256 और 2021 में 4,28,278 मामले थे। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 66,381 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद महाराष्ट्र में 47,101, राजस्थान में 45,450, पश्चिम बंगाल में 34,691 और मध्यप्रदेश में 32,342 मामले दर्ज किए गए। तेलंगाना प्रति लाख महिला जनसंख्या पर 124.9 अपराध दर के साथ शीर्ष पर रहा, जबकि इसके बाद राजस्थान 114.8, ओडिशा 112.4, हरियाणा 110.3 और केरल में 86.1 अपराध दर दर्ज की गई। 

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भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामले सबसे ज्यादा थे, जिनमें 133,676 मामले दर्ज किए गए और इनकी दर 19.7 रही। महिलाओं के अपहरण और बंधक बनाने के 88,605 मामले दर्ज किए गए और इनकी दर 13.1 रही। महिलाओं की गरिमा भंग करने के इरादे से हमला करने के 83,891 मामले आए जबकि बलात्कार के 29,670 मामले दर्ज किए गए। अठारह वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं से बलात्कार के 28,821 मामले आए और 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों से बलात्कार के 849 मामले आए। बलात्कार के प्रयास के 2,796 मामले दर्ज किए गए।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों से बलात्कार के 40,046 मामले, यौन उत्पीड़न के 22,149 मामले, यौन प्रताड़ना के लिए 2,778 मामले, पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने के 698 मामले और कानून के अन्य प्रावधानों के तहत 513 मामले दर्ज किए गए। पुलिस के निपटारा आंकड़ों से पता चला कि पिछले वर्षों से 185,961 मामले जांच के लिए लंबित थे, जबकि 4,48,211 नए मामले दर्ज किए गए और 987 स्थानांतरित किए गए। इस तरह कुल 635,159 मामले थे। एसिड अटैक के 113 मामले दर्ज किए गए।

साल 2012 में दिल्ली में निर्भया के बलात्कार और हत्या के बाद जमीन पर ज्यादा कुछ बदला नहीं दिखता। कठोर कानून मौजूद हैं, पर वे कितने प्रभावी हैं? साल 2022 के लिए उपलब्ध आंकड़े दिखाते हैं कि ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध’ के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किये गये, जो साल 2021 से चार फीसदी ज्यादा थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध का सबसे बड़ा हिस्सा ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (31.4 फीसदी) के तहत दर्ज हुआ, जबकि सभी अपराधों में ‘शील हनन की नीयत से महिलाओं पर हमले’ का हिस्सा 18.7 फीसदी था, और ‘बलात्कार’ 7.1 फीसदी पर रहा।

डब्ल्यूपीएस इंडेक्स (महिला शांति और सुरक्षा सूचकांक) की 2023 की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग साल 2023 में 128वें स्थान पर रही। डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और स्वीडन शीर्ष पर रहे, जबकि अफगानिस्तान, यमन और मध्य अफ्रीकी गणराज्य सबसे निचले स्थान पर रहे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2022 में महिलाओं को निशाना बनाकर की जाने वाली राजनीतिक हिंसा के मामले में भारत शीर्ष 10 सबसे खराब देशों में शामिल है। मेक्सिको 537 ऐसी घटनाओं के साथ इस सूची में शीर्ष पर है, उसके बाद ब्राज़ील (327) का स्थान है, जबकि भारत इस सूची में 125 घटनाओं (प्रति 100,000 महिलाओं पर) के साथ सातवें स्थान पर है, जहाँ विशेष रूप से राजनीतिक हिंसा के लिए महिलाओं को निशाना बनाया जाता है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) में पाया गया कि 18-49 वर्ष की आयु की 29.3% महिलाओं ने अपने जीवनकाल में पति द्वारा हिंसा का अनुभव किया है। अगर अपराध दर्ज भी हो जाते हैं, तो न्याय धीमा हो सकता है; पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण अक्सर पीड़ितों को ही दोषी ठहराते हैं या उनकी गवाही को हतोत्साहित करते हैं। परिणामस्वरूप, कई मामले आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं होते। विशेषज्ञों का कहना है कि सांस्कृतिक शर्मिंदगी और प्रतिशोध का डर रिपोर्ट दर्ज कराने में बड़ी बाधाएँ हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों का कारण पितृसत्तात्मक सोच, सामाजिक रूढ़िवादिता, शिक्षा और जागरूकता की कमी, कानूनों का कम प्रभावी कार्यान्वयन और महिलाओं के प्रति समाज की घटती संवेदनशीलता जैसे सामाजिक-आर्थिक और संरचनात्मक कारक हैं।

भारत की चुनौती वैश्विक रुझानों के समान और उनसे भी बदतर है। कई देशों की तरह, भारत भी कम रिपोर्टिंग और कलंक से जूझ रहा है। लेकिन गहरी जड़ें जमाए हुए लैंगिक पूर्वाग्रह और विशाल जनसंख्या घनत्व का मतलब है कि अघोषित अपराधों का एक छोटा सा प्रतिशत भी बहुत बड़ी संख्या में तब्दील हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना इस बात पर ज़ोर देती है कि समाधानों में हर देश की हिस्सेदारी है – अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने से लेकर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने तक। कानूनों और जागरूकता के मामले में भारत में हाल ही में हुए सुधार सकारात्मक हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अभी भी कई समकक्षों से पीछे है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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