सफाई कर्मचारी का काम एक ही जाति को दिया जाना बहुत बड़ा अभिशाप

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तरुण विजय । Dec 8 2018 12:07PM

हमारे देश में 9 करोड़ से अधिक वाल्मीकि हैं। लेकिन हर शहर, संस्थान और गांव में सफाई कर्मचारी के नाते वाल्मीकि ही क्यों मिलते हैं ? दुनिया में इससे बढ़कर अभिशाप किसी और जाति को मिला है कि जो जन्मते ही सफाई कर्मचारी बन जाये ?

बाबा साहेब अम्बेडकर का स्मरण सामान्यतः लकीर के फकीर बन कर किया जाता है। हर कोई अपने-अपने ढंग से उनको परिभाषित करता है। लेकिन इतना सत्य है कि दुनिया में सबसे ज्यादा उद्धृत किये जाने वाले महापुरुषों में अम्बेडकर हैं जिन्होंने साधारण से असाधारण तक का सफर कुछ इस तरह किया कि लाखों अति साधारण आज अत्यन्त असाधारण बन सके। फिर भी हमारे समाज के एक बड़े वर्ग के मन में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भेदभाव का भाव अभी तक मिटा नहीं है। एक ही उदाहरण समझिये। हमारे देश में 9 करोड़ से अधिक वाल्मीकि हैं। लेकिन हर शहर, संस्थान और गांव में सफाई कर्मचारी के नाते वाल्मीकि ही क्यों मिलते हैं ? दुनिया में इससे बढ़कर अभिशाप किसी और जाति को मिला है कि जो जन्मते ही सफाई कर्मचारी बन जाये ? पाकिस्तान की सेना ने पिछले दिनों एक विज्ञापन छापा था कि उन्हें सेना में सफाई कर्मचारी के लिए हिन्दू वाल्मीकि जाति के लोग चाहिये। हिन्दू धर्म की बात करने वाले लोगों का उस समय खून नहीं खौला। वह तो नरेंद्र मोदी की कौशल विकास और अनुसूचित जाति को कौशल क्षेत्र में लाने का नतीजा है कि भारत में अब वाल्मीकि युवक-युवतियां ग्राफिक डिजाइनर, सेल्स मैनेजर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर ओर एमबीए भी दिख रहे हैं।

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लेकिन मीडिया के क्षेत्र में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के युवाओं की विराट अनुपस्थिति किसी को खलती क्यों नहीं ? जो लोग सब क्षेत्रों में इस वर्ग के आरक्षण की मांग करते हैं वे मीडिया में उनकी अनुपस्थिति से परेशान क्यों नहीं होते ? कुल 28 प्रतिशत जनसंख्या होने के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग मीडिया में एक प्रतिशत से भी कम दिखते हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर केवल सामाजिक परिवर्तन के ही पुरोधा नहीं थे बल्कि उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में वेदना के शब्दों का मीडिया धर्म निभाया और मूक नायक, बहिष्कृत भारत एवं अंग्रेजी में डिप्रेस्ड इंडिया जैसी पत्रिकाओं द्वारा अनुसूचित जाति समाज में स्वाभिमान और संघर्ष की अलख जगाई। उन्होंने कहा था कि भारत में एक समय पत्रकारिता मिशन होती थी जो जनता के दुख-दर्द को प्रकट करने के लिए निर्भीकता से सत्य को प्रकट करती थी लेकिन आज पत्रकारिता व्यवसाय में तब्दील हो गई है जो समझौते करती है और मुनाफे के लिये सच्चाई प्रकट करने से हिचकिचाती है। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के दर्द को व्यक्त करने के लिए कितने संपादक व पत्रकार सामने आते हैं ? और कितने अपने यहां इस वर्ग के युवाओं को काम करने या प्रशिक्षण लेने का मौका देते हैं ?

वास्तव में भारत में धनपतियों के लिए हर प्रकार की शिक्षा के केंद्र खोले जाते हैं। करोड़पति लोग इतने बड़े-बड़े विद्यालय जिनमें वातानुकूलित कक्षाएं होती हैं तथा लाखों रुपये सालाना की फीस ली जाती है खोलते हैं ताकि ना तो उन्हें अपनी कमाई पर टैक्स देना पड़े और बिना विशेष मेहनत के उनका धन कई गुना बढ़ता रहे। इनमें 90-95 प्रतिशत हिन्दू ही होते हैं। पर वे अपने ही समाज के उस वर्ग की शिक्षा के लिए प्रयास करते कभी दिखते नहीं। जो वर्ग ना केवल सबसे ज्यादा रामभक्त है बल्कि आदि रामकथा के रचयिता कवि भगवान वाल्मीकि के वंशज हैं। वाह रे राम भक्तों !! राम की भक्ति में सबसे आगे पर राम के भक्तों की दुर्दशा में भी सबसे आगे ? ऐसी परिस्थिति में देश के कुछ संपादकों व पत्रकारों ने अपनी पहल पर एक ऐसे डॉ. अम्बेडकर मीडिया सशक्तीकरण विद्यालय की रचना की है जिसमें देश के श्रेष्ठ पत्रकारिता विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रम ही नहीं बल्कि आर्टिफिशल इंटेलीजेंस और एथीकल हेकिंग और साइबर सिक्योरिटी के विषय भी शामिल किये हैं। सबसे पहले देहरादून, पुणे और गुवाहाटी के बाद पटना, औरंगाबाद और तमिलनाडु और उत्तर पूर्वांचल के राज्यों में भी इनकी शाखाएं खोलने की मांग है।

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इन पंक्तियों के लिखे जाते समय वाल्मीकि समुदाय के अनेक युवाओं ने मीडिया में आने की इच्छा दर्शाने वाले फोन किये तो मुझे लगा जाति की कारा तोड़ना ही अम्बेडकर को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। इससे बढ़कर देश और समाज पर कोई कलंक नहीं हो सकता कि किसी जाति को जन्मते ही उनके लिए सदियों से रूढ़िवादियों द्वारा निर्धारित कर्म सौंप दिया जाये। वह दिन इस देश के लिए सबसे बड़ा शौर्य और पराक्रम का दिन होगा जब हमारे समाज में सब लोग जाति के आधार पर भेदभाव को त्याग कर इस सिद्धांत पर काम करें कि जिसके हाथ में कौशल वही आगे बढ़ेगा और जिसके पास जाति का भेदभाव वह नीचे जायेगा। कौशल जाति नहीं पूछता। भगवान जाति नहीं पूछता। धर्म जाति नहीं पूछता। केवल हम ही लोग हैं जो धर्मराज से लेकर यमराज तक अपने देवी देवता को जातियों में बांट देते हैं।

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मीडिया में अम्बेडकर वास्तव में सामाजिक समरसता और समता के लिए एक मीडिया सत्याग्रह प्रतीत होता है जिसमें जुड़ने के लिए हर जाति के लोग शामिल हो रहे हैं। वास्तव में यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि अगर इस देश में सबसे ज्यादा जाति रहित या जाति के भेदभाव से विमुक्त कोई समुदाय है तो वह मीडिया का समुदाय है। मीडिया सत्याग्रह के माध्यम से अनुसूचित जाति और जनजाति के युवा अपनी वेदना और संघर्ष को ही सिर्फ बेहतर ढंग से व्यक्त नहीं कर पायेंगे बल्कि समाज में समता का भाव उसी तीव्रता से फैला पायेंगे जिस तीव्रता के साथ संपादक एवं पत्रकार डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बढ़ाया था। इस मीडिया सत्याग्रह को रंगभेद और राजनीति के भेद से परे जिस प्रकार का समर्थन मिल रहा है वह कलम के धन और शब्द की शक्ति के लिए शुभ है।

-तरुण विजय

(लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं।)

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