52 साल बाद फिर आया नस्लीय जिन्न ? नीतियों के चलते ICC ने लगाया था प्रतिबंध, डिकॉक ने BLM से खुद को किया अलग

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सीएस ने क्विंटन डिकॉक के व्यक्तिगत फैसले का संज्ञान लिया है। क्विंटन डिकॉक ने पहले भी इस पहल में शामिल नहीं होने के संकेत देते हुए कहा था कि यह हर किसी का फैसला होना चाहिए, जीवन में किसी को कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मैं चीजों को इस तरह देखता हूं।

साउथ अफ्रीका के विकेटकीपर बल्लेबाज क्विंटन डिकॉक ने खुद को ब्लैक लाइव्स मैटर (BLM) से अलग करते हुए क्रिकेट साउथ अफ्रीका (CSA) का आदेश मानने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने टी-20 विश्व कप में वेस्टइंडीज के ‌खिलाफ खुद को अनुपलब्ध करार दिया था। दरअसल, सीएसए ने सभी खिलाड़ियों को ब्लैक लाइव्स मैटर अभियान में शामिल होने का निर्देश दिया था। 

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इस मामले में सीएस ने क्विंटन डिकॉक के व्यक्तिगत फैसले का संज्ञान लिया है। क्विंटन डिकॉक ने पहले भी इस पहल में शामिल नहीं होने के संकेत देते हुए कहा था कि यह हर किसी का फैसला होना चाहिए, जीवन में किसी को कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मैं चीजों को इस तरह देखता हूं।

आपको बता दें कि अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड के एक श्वेत पुलिस कर्मी के हाथों मारे जाने के बाद दुनियाभर में ब्लैक लाइव्स मैटर अभियान की शुरुआत हुई। इसको लेकर अमेरिका में भी काफी प्रदर्शन हुआ था। इस मुद्दे को लेकर साउथ अफ्रीका की टीम भी बटी हुई दिखाई दे रही है। मैच से पहले कुछ खिलाड़ियों ने घुटने के बल बैठकर अभियान का समर्थन किया तो कुछ ने खड़े होकर।

पुराना है नस्लीय जिन्न

साउथ अफ्रीका की टीम में भेदभाव वाला नस्लीय जिन्न कोई पहली बार नहीं जागा है यह काफी पुराना है और इसके चलते उन्हें क्रिकेट से भी दूर रहना पड़ा था। साउथ अफ्रीका ने साल 1968-69 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज खेलने से इनकार कर दिया था क्योंकि इंग्लैंड की टीम में एक अश्वेत खिलाड़ी थी। इसके बाद साल 1970 में आईसीसी ने रंगभेद नीति को लेकर साउथ अफ्रीका टीम के खिलाफ वोट किया था। दरअसल, यह वोटिंग साउथ अफ्रीका टीम को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से निलंबित करने के लिए की गई थी। 

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साउथ अफ्रीका की सरकार ने रंगभेद को लेकर नीति का निर्माण किया था। जिसके तहत उनकी टीम श्वेत देशों के साथ ही मुकाबला खेल सकती थी। इसके अलावा उनकी यह भी शर्त रहती थी कि विपक्षी टीम में श्वेत खिलाड़ी ही खेलें। साउथ अफ्रीका की इस नीति की वजह से वहां के क्रिकेट को काफी नुकसान पहुंचा। हालांकि 21 साल बाद उन्होंने रंगभेद वाली नीति को समाप्त किया। जिसके बाद साल 1991 में एक बार फिर साउथ अफ्रीका टीम की वापसी हुई।

अश्वेतों के लिए आरक्षण हुआ था लागू

साउथ अफ्रीका टीम में अश्वेत खिलाड़ियों के लिए आरक्षण लागू किया गया था। जिसके तहत टीम में 4 अश्वेत खिलाड़ियों का रहना जरूरी थी। हालांकि साल 2007 में आरक्षण को समाप्त कर दिया गया। लेकिन मौजूदा टीम में अगर आप नजर डालेंगे तो साउथ अफ्रीका के स्टार गेंदबाज कगिसो रबाड़ा अश्वेत हैं और कप्तान तेम्बा बावुमा भी।

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