राष्ट्रीयता के महानायक सरदार पटेल के मनोबल को प्रणाम !

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ललित गर्ग । Dec 15 2019 4:40PM

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में हुआ। वे कृषक परिवार से थे। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल एवं माता का नाम लाडबा देवी है। वे उनकी चौथी संतान हैं। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे।

जीवन जीना एक बात है, विशिष्ट एवं यादगार जीवन जीना महत्वपूर्ण बात है। कुछ व्यक्तियों का जीवन विलक्षण होता है, वे अपने जीवन काल में तथा उसके बाद प्रेरणास्रोत बने रहते हैं। इतिहास अक्सर ऐसे महान् लोगों से ऐसा काम करवा देता है जिसकी उम्मीद नहीं होती। और जब राष्ट्र की आवश्यकता का प्रतीक ऐसे महान् इंसान बनते हैं तो उसका कद सहज ही बड़ा बन जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ऐसे ही विराट व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक राजनेता ही नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि इस देश की आत्मा थे। राष्ट्रीय एकता, भारतीयता एवं राजनीति में नैतिकता की वे अद्भुत मिसाल थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू−राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। उन्हें 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। भले ही वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन वे इस माटी के लिए किये गये उल्लेखनीय अवदानों के लिए सदियों तक याद किये जायेंगे। 15 दिसम्बर उनका निर्वाण दिवस है।

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सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में हुआ। वे कृषक परिवार से थे। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल एवं माता का नाम लाडबा देवी है। वे उनकी चौथी संतान हैं। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। सरदार पटेल का स्मृति दिवस हमारे लिये प्रेरणा दिवस है। उनकी शिक्षाएं, जीवन−आदर्श एवं राष्ट्र को प्रदत्त अवदान हमें प्रेरणा देते रहेंगे। उनके विचार एवं सोच हमारे लिये जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने का आधार है। वे कहते थे कि अगर कोई चीज मुफ्त मिलती है तो उसकी कीमत कम हो जाती है जबकि परिश्रम से पाई हुई चीज की कीमत ठीक तरीके से लगाई जाती है। लोगों को मेहनत और कर्म के लिए प्रेरित करते हुए वे कहा करते थे कि यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं लेकिन इससे भी बड़ा सच यह है कि किनारे पर ही खड़े रहने वाले लोग तैरना भी नहीं सीखते। 

अहिंसा का समर्थन करते हुए सरदार पटेल का कहना था कि कायरों की अहिंसा का कोई मूल्य नहीं है। जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसकी अहिंसा सच्ची अहिंसा होती है। वह कहते थे कि आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिए और अपने मजबूत हाथों से अन्याय का डटकर सामना कीजिए। पटेल सदैव कहते थे कि गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। उनका कहना था कि हमारा सिर कभी न झुकने वाला होना चाहिए। हमें केवल भगवान के आगे झुकना चाहिए, दूसरों के आगे नहीं। 

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जीवन कैसे जीना चाहिए, इसका भी सरदार पटेल ने सम्पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि जो कोई भी सुख और दुरूख का समान रूप से स्वागत करता है, वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीवन जीता है। हमें सदैव ईश्वर और सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए। यहां तक कि अगर हम हजारों की दौलत भी गंवा दें और हमारा जीवन बलिदान हो जाए तो भी हमें मुस्कुराते रहना चाहिए। बहुत बोलने से कोई लाभ नहीं होता बल्कि हानि ही होती है। उन्हें देश के छोटे से छोटे स्तर के व्यक्ति की भी कितनी चिंता थी, उसी को व्यक्त करते हुए उन्होंने एकबार कहा था कि उनकी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भी व्यक्ति अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा न रहे। 

सरदार पटेल का जीवन और दर्शन भातीयता को सुदृढ़ करने में नियोजित करने में लगा रहा है। एकता में सबसे बड़ा बाधक स्वहित है। आज के समय में स्वहित ही सर्वोपरि हो गया है। आज जब देश आजाद है, आत्मनिर्भर है तो वैचारिक मतभेद उसके विकास में बेडि़याँ बनी हुई हैं। आजादी के पहले इस स्वार्थी दृष्टिकोण एवं स्वहित की भावना का फायदा अंग्रेज उठाते थे और आज देश के राजनीतिक लोग। देश में एकता के स्वर को सबसे ज्यादा बुलंद सरदार पटेल ने किया था। उनकी सोच, उनका दर्शन, उनकी राष्ट्रीयता के कारण ही आज हम एकसूत्रता में बंध हुए हैं। उनकी सोच आज के युवा जैसी नयी सोच थी। वे सदैव देश को एकता का संदेश देते थे। राष्ट्रीयता को उन्होंने केवल परिभाषित ही नहीं किया बल्कि उसे संगठित करके दिखाया। वे अपनी निजी त्याग, राष्ट्रीयता के प्रति सर्वस्व बलिदान कर देने की भावना एवं कठिन जीवनचर्या को वर्चस्व बनाकर किसी पर नहीं थोपते अपितु व्यक्ति की स्वयं के कमजोरियों को उसे महसूस करवाकर उससे उसको बाहर निकालने का मानवीय स्पर्श करते थे। आपने 'साल' का वृक्ष देखा होगा− काफी ऊंचा 'शील' का वृक्ष भी देखें− जितना ऊंचा है उससे ज्यादा गहरा है। सरदार पटेल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में ऐसी ही ऊंचाई और गहराई थी। जरूरत है इस गहराई को मापने की। उन्हें भारतीय राजनीति का आदर्श बनाकर प्रस्तुत करने की। 

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क्रिमिनल लॉयर के रूप में उनकी यश और कीति चारों ओर फैली, खूब नाम कमाया। अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे। उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धि दिनों−दिन बढ़ती चली गई। गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर−तरीकों लिए भी जाने जाते थे। वे अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी, समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे। उनके इन गुणों का साक्षात्कार तब हुआ जब सन् 1909 में वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया। बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हो गया है तब उन्होंने सरदार पटेल से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि "उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था।" ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही मिलती है। इससे बड़ा चरित्र और क्या हो सकता है? वे अपनी विलक्षण सोच एवं अद्भुत कार्यक्षमता से असंख्य लोगों के प्रेरक बन गए। उनका जीवन एक यात्रा का नाम है− आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई देने की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की यात्रा, परतंत्रता से स्वतंत्रता की यात्रा, बिखराव से जुड़ाव की यात्रा। उनका अभियान सफल हुआ और यह देश एकता के सूत्र में बंधा। उस महापुरुष के मनोबल को प्रणाम।

- ललित गर्ग

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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