Sri Lanka, Nepal, Pakistan Economic Crisis: भारत के पड़ोसी देशों के आर्थिक हालात पर एक नजर

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Prabhasakshi
गौतम मोरारका । Feb 26 2023 9:49AM

भारत के पड़ोसी देशों की आर्थिक स्थिति की बात करें तो सबसे पहले आपको पाकिस्तान के वर्तमान हालात से रूबरू कराते हैं। पाकिस्तान विभिन्न मोर्चों पर कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहा है, लेकिन इसके बढ़ते कर्ज के बोझ की अनदेखी नहीं की जा सकती।

भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जिस तरह से चीन के कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं या आईएमएफ से लोन लेने के लिए तरह-तरह के आश्वासन देकर अपनी जनता पर महंगाई बम फोड़ते जा रहे हैं वह बेहद खतरनाक स्थिति है। कर्ज का यह जाल इन देशों की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए तो मुश्किलें खड़ी करेगा ही साथ ही चीनी कर्ज के चलते आने वाले समय में इन देशों का भूभाग भी ड्रैगन हड़प सकता है। चीन के विस्तारवादी मंसूबों को देखते हुए ही भारत समय-समय पर पड़ोसी देशों की मदद करता रहा है ताकि वह चीन की साजिश के शिकार नहीं बनें। भारत की मदद से ही मॉलदीव आर्थिक संकट से बाहर निकला और चीन से पिंड छुड़ाया, भारत की बात बांग्लादेश को भी समझ आई और उसने चीन पर निर्भरता नहीं बढ़ाई, श्रीलंका के लिए भी भारत आईएमएफ समेत अन्य वित्तीय संस्थानों को तमाम तरह की गारंटी दे रहा है ताकि यह देश फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सके। लेकिन चीन का चेला पाकिस्तान और चीन समर्थक नेपाल सरकार के चलते यह दो देश बुरी स्थिति में फंसते जा रहे हैं। इसलिए अमेरिका ने भी चिंता जताई है कि चीन की ओर से भारत के निकटवर्ती पड़ोसी देशों को दिये जा रहे कर्ज के बदले ड्रैगन द्वारा बलपूर्वक लाभ लिया जा सकता है।

भारत के पड़ोसी देशों की आर्थिक स्थिति की बात करें तो सबसे पहले आपको पाकिस्तान के वर्तमान हालात से रूबरू कराते हैं। पाकिस्तान विभिन्न मोर्चों पर कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहा है, लेकिन इसके बढ़ते कर्ज के बोझ की अनदेखी नहीं की जा सकती क्योंकि यहां महंगाई चरम पर है और विदेशी मुद्रा भंडार गिर चुका है। पाकिस्तान आर्थिक बदहाली की कगार तक पहुंच गया है और इसे किसी चमत्कार का इंतजार है। पाकिस्तान ऐसे मसीहे की तलाश कर रहा है जो इसकी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर सके। ऐसे मसीहा के रूप में उसे अपना दोस्त चीन मिल भी गया है जिसने आईएमएफ से पहले ही 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद दे दी है। 

हम आपको बता दें कि सबसे अधिक आबादी वाला दुनिया का पांचवां देश पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट जैसी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है और ये समस्याएं इसे श्रीलंका जैसी स्थिति में धकेलने को तैयार खड़ी हैं। कोविड-19 महामारी की मार से उबर रहे पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने न केवल भूमि को, बल्कि इसकी जर्जर अर्थव्यवस्था को भी पूरी तरह डुबो दिया है। एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट की ओर से किये गये नये अध्ययन के अनुसार, पाकिस्तान पर ऋण की तलवार लटक रही है, जो इसकी आयात-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है तथा इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम होंगे। पाकिस्तान पर लोन कितना चढ़ चुका है इसको समझना हो तो आंकड़े के जरिये समझ सकते हैं जिसके मुताबिक पाकिस्तान का बाहरी ऋण और देयता करीब 130 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 95.39 प्रतिशत है।

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आर्थिक तंगी झेल रहे पाकिस्तान को अगले 12 महीनों में करीब 22 अरब डॉलर और साढ़े तीन साल में कुल 80 अरब डॉलर वापस करना है, जबकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार केवल 3.2 अरब डॉलर है तथा इसकी आर्थिक विकास दर महज दो प्रतिशत है। फिलहाल पाकिस्तान अपने केंद्रीय बजट का लगभग आधा हिस्सा ऋण चुकाने में इस्तेमाल कर रहा है। यद्यपि पाकिस्तान सरकार ने कर्ज का बोझ कम करने के लिए कई प्रकार के प्रयास किये हैं, लेकिन यह आसमान छूती महंगाई की पृष्ठभूमि में काफी नहीं है। पाकिस्तान के ऊपर ऋण का व्यापक बोझ नुकसानप्रद नीतियों और आर्थिक असंतुलन पर दबाव आदि का नतीजा है। इससे निपटने के लिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 22 कार्यक्रमों सहित विभिन्न आर्थिक सहयोगों एवं ऋणों पर निर्भरता बढ़ाता रहा है।

देखा जाये तो सरकारें पाकिस्तान को ऋण के चक्रव्यूह से बाहर निकालने के लिए कोई ढांचागत सुधार करने में विफल रही हैं। पाकिस्तान में अल्पावधि के उपाय केवल मौजूदा स्थिति को टाल सकते हैं, जबकि पाकिस्तान को दीर्घकालिक ढांचागत सुधार के उपायों की सख्त जरूरत है। यदि देश भविष्य की चूक से खुद को बचाने को तैयार है, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, उसे विशिष्ट विशेषाधिकारों को समाप्त करना होगा। लेकिन इसके कोई आसार नजर नहीं आते।

इस बीच, आर्थिक सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत को अंतिम रूप देने से पहले पाकिस्तान को चीन से 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर की बहुप्रतीक्षित सहायता राशि मिल गयी है। पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार ने ट्वीट करके बताया है कि 'स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान' को 'चाइना डेवलपमेंट बैंक' से 70 करोड़ डॉलर का फंड मिला। जिसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमत्री शहबाज शरीफ ने "विशेष मित्र" के प्रति आभार व्यक्त किया। शहबाज शरीफ ने कहा, "पाकिस्तान का एक सहयोगी देश है, हम सभी सोच रहे थे कि वे आईएमएफ समझौते की प्रतीक्षा कर रहे थे और फिर वे अपनी भूमिका निभाएंगे लेकिन उस सहयोगी देश ने कुछ दिन पहले हमें बताया कि 'हम आपको सीधे तौर पर वित्तीय मदद दे रहे हैं।''' शहबाज शरीफ ने कहा कि इन बातों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार, जो कुछ सप्ताह पहले 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर के निम्न स्तर तक गिर गया था, अब बढ़कर 4 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंच गया है।

जहां तक श्रीलंका के हालात की बात है तो आपको बता दें कि भारत का यह पड़ोसी देश वर्तमान में 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बेलआउट पैकेज को लेकर आईएमएफ के साथ बातचीत के अंतिम चरण में है। श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार बिल्कुल नहीं है जिससे बाहर से कुछ आयात नहीं हो पा रहा है और यह देश पूरी तरह भारत और अन्य देशों की मदद पर ही निर्भर है। हालात ऐसे हैं कि श्रीलंका के निर्वाचन आयोग ने कह दिया है कि स्थानीय निकाय चुनाव नहीं कराये जा सकते क्योंकि पैसे ही नहीं है। इस बीच, राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि राष्ट्रपति के रूप में उनका काम संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना है। श्रीलंका सरकार ने बार-बार संकेत दिया है कि विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है।

वहीं नेपाल की बात करें तो यदि नेपाल सरकार ने ‘ऋण जाल’ कूटनीति को लेकर बेहद सावधानी नहीं बरती, तो उसे भी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे आर्थिक हालात का सामना करना पड़ सकता है। पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के अलावा, नेपाल ने अभी-अभी दो प्रमुख परियोजनाओं- भैराहवा में गौतमबुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और राजधानी काठमांडू में चोभर ड्राई पोर्ट का निर्माण पूरा किया है। इनमें से कोई भी महंगी परियोजना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रही है। यदि किसी परियोजना की व्यावसायिक रणनीति अप्रभावी है या बिना कठोर तैयारी के स्थापित की गई है, तो यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भावी पीढ़ियों के लिए बेहद नकारात्मक संदेश है। यहां जोखिम यह है कि देश का राष्ट्रीय ऋण उस समय बहुत अधिक भारी साबित हो सकता है, जब नेपाल को गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश की आवश्यकता हो।

हम आपको बता दें कि वित्त वर्ष 2022-2023 के लिए, नेपाल सरकार को आंतरिक ऋण के तौर पर अधिकतम 256 अरब नेपाली रुपये (लगभग 2 अरब डॉलर) जुटाने की अनुमति है। बाहरी कर्ज पर लगाम लगाने का यह फैसला ऐसे समय में सामने आया है, जब श्रीलंका समेत कई देश कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं। ऐसे में नेपाली अधिकारी चीन से कर्ज लेने में खासी सतर्कता बरत रहे हैं और बीजिंग से ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ पहल के तहत परियोजनाओं के लिए ऋण के बजाय दान का अनुरोध कर रहे हैं।

बहरहाल, अब अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका को इस बात की गहरी चिंता है कि चीन की ओर से भारत के निकटवर्ती पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका को दिये जा रहे कर्ज के बदले बलपूर्वक लाभ लिया जा सकता है। दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भारत यात्रा से पहले पत्रकारों से कहा, “हम इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि भारत के निकटवर्ती देशों को दिये जा रहे चीनी ऋण का दुरुपयोग किया जा सकता है।” हम आपको बता दें कि एंटनी ब्लिंकन एक से तीन मार्च तक तीन-दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर नयी दिल्ली आ रहे हैं। डोनाल्ड लू ने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र के देशों से बात कर रहा है कि वे अपने फैसले खुद लें और किसी बाहरी साझेदार के दबाव में न आएं।

-गौतम मोरारका

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