वो भी दिन थे! बीजेपी की तीन धरोहर- अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर

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अजय कुमार । Aug 18 2018 1:14PM

भारतीय जनता पार्टी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, इसकी मूल सोच उसी जनसंघ के इर्दगिर्द घूमती है जिसकी स्थापना 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा भारतीय जनसंघ के रूप में की गई थी।

भारतीय जनता पार्टी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, इसकी मूल सोच उसी जनसंघ के इर्दगिर्द घूमती है जिसकी स्थापना 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा भारतीय जनसंघ के रूप में की गई थी। संभवतः 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तानाशाही रूख अख्तियार करते हुए देश में आपातकाल की घोषणा न की होती तो जनसंघ का वजूद खत्म नहीं होता। इंदिरा के तानाशाही रवैये के खिलाफ जब विपक्ष एकजुट हुआ तो जनता पार्टी का अस्तित्व सामने आया, जिसमें तमाम दलों के नेताओं को एक झंडे तले एकत्र किया गया था। तब जनसंघ का भी अन्य दलों के साथ जनता पार्टी में विलय हो गया। एकजुट विपक्ष ने 1977 में इंदिरा की सत्ता उखाड़ फेंकी। पहली बार देश में गैर कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980 में जनता पार्टी के नेताओं के बीच दरार पड़ गई जिसका नतीजा पार्टी की टूट के रूप में सामने आया। जनता पार्टी में टूट होते ही जनसंघ विचारधारा के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का निर्माण किया। मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने बीजेपी को मजबूती प्रदान करने का काम किया।

अटल−आडवाणी में इतनी अच्छी टियूनिंग थी कि उन्हें राम−लक्ष्मण की जोड़ी की उपमा दी जाती थी तो बीजेपी की त्रिमूर्ति के रूप में अटल−आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम लिया जाता था। इन नेताओं ने आगे चलकर कांग्रेस का तिलिस्म तोड़ने का काम किया। यह त्रिमूर्ति जानती थी 'छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।' बीजेपी को अपने इन नेताओं पर नाज था तो उस समय इन नेताओं की शान में नारा गूंजा करता था, 'बीजेपी की तीन धरोहर− अटल−आडवाणी−मुरली मनोहर।'

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तक महज दो सीटों तक सिमटी भाजपा 90 के दशक में अटल−आडवाणी के नेतृत्व में गांव गांव तक पहुंची। अगले आम चुनाव में भाजपा 'अटल−आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान' के नारे के साथ दो सीटों से 89 सीटों तक पहुंच गई। इसके बाद आडवाणी को हिन्दू पुरोधा जबकि वाजपेयी को भाजपा का उदारवादी नेता कहा जाने लगा। अटल अपनी पार्टी को भी नहीं बख्शते थे, कई बार पार्टी लाइन से उनकी राय अलग होती थी, परंतु पार्टी जो निर्णय ले लेती थी, उस पर अटल नुक्ताचीनी नहीं करते थे।

बात 2004 के आम चुनाव से पहले की है। रथ यात्रा के बाद आडवाणी का पार्टी में ग्राफ काफी बढ़ चुका था। पार्टी में एक धड़ा अटल की बजाय आडवाणी के नेतृत्व की दुहाई दे रहा था। अटल की उम्र का तकाजा देकर आडवाणी को आगे करने वालों का एक प्रस्ताव यह भी था कि बीजेपी चुनाव जीते तो आडवाणी को सरकार की कमान दी जाए, परंतु अटल के एक बयान ने पूरी बहस को निरर्थक बना दिया। उन्होंने कहा, 'न टायर्ड न रिटायर्ड' आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय के लिए प्रस्थान। इसे अटल की नाराजगी से जोड़कर देखा गया, लेकिन अगले चुनाव में दोनों फिर साथ दिखे। हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद वाजपेयी की और 2009 के बाद आडवाणी की सक्रियता काफी कम होती गई थी, लेकिन तब तक इतिहास के पन्नों में यह लिखा जा चुका था कि इस जोड़ी की बदौलत ही भाजपा सत्ता शीर्ष तक पहुंचे में सफल रही। करीब पांच दशक तक यह जोड़ी एक−दूसरे की पूरक बनी रही। इस दौरान कई बार पार्टी में वर्चस्व और मतभेद की खबरें सामने आईं। लेकिन तीनो नेताओं के बीच मतभेद की खाई कभी गहरी नहीं हुई। आडवाणी ने 90 के दशक में रथ यात्रा निकाली तो उनकी लोकप्रियता भी चरम पर थी, लेकिन अटल के नेतृत्व में वे सारथी की भूमिका में रहे। जब आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की अटकलें लगाई जा रही थीं तब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए खुद अटल का नाम प्रस्तावित किया। इसके बाद पार्टी की हर सरकार में अटल−आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की छाया बनी रही।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अटल−आडवाणी की राजनीतिक यात्रा एक दूसरे के सहयोग से ही आगे बढ़ी। बीच में त्रिमूर्ति के रूप में मुरली मनोहर जोशी का नाम आया। भारत मां की तीन धरोहर अटल आडवाली मुरली मनोहर का नारा चला। लेकिन अटल−आडवाणी की जोड़ी सहज स्वीकार्य बनी रही।

भारतीय जनता पार्टी को हिन्दुत्व के अलावा राम जन्म भूमि विवाद से नई ऊर्जा हासिल हुई। 1984 के आम चुनावों में बीजेपी केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13 दिन चली। 1998 में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम−चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 2004 के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले 10 वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई।

2014 के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। इसके अलावा बीते साढ़े चार सालों में भारत के 29 राज्यों में से 21 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सता में आ गई। निश्चित रूप से मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने सबसे बड़ी जीत हासिल की थी, परंतु अटल बिहारी वाजपेयी के समकक्ष पीएम मोदी ने अपने आप को कभी नहीं समझा। बीजेपी को सबसे बड़ी जीत दिलाने वाले 'नायक' नरेंद्र मोदी भी अटल जी के सामने नतमस्तक होने में गौरवान्वित होते हैं तो अटलजी की शख्सियत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

-अजय कुमार

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