यूपी निकाय चुनाव में भाजपा नेताओं ने कई जगह 'जेबी' लोगों को टिकट देकर कार्यकर्ताओं का हक मार दिया

BJP
ANI

'भाजपा' के शीर्ष नेतृत्व की नगर निकाय के चुनावों के टिकट वितरण में हस्तक्षेप ना करने की लाख चेतावनियों के बावजूद भी जिस तरह से नेताओं ने खुलेआम अपने लोगों की पैरवी करने का कार्य किया है, उससे टिकट वितरण में पार्टी के कार्यकर्ताओं का हक बड़े पैमाने पर मारा गया है।

भारत के राजनीतिक गलियारों में 'भारतीय जनता पार्टी' की देश के आम मतदाता के बीच एक विशेष पहचान बनी हुई है, वह अपने अनुशासन, आदर्श, सरलता व सभ्यता के लिए पहचानी जाती है। हालांकि देश में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भी 'भाजपा' को एक तरफ तो सनातन धर्म व संस्कृति और हिन्दुत्व विचारधारा के कट्टर समर्थक के तौर पर देखना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ वह उसे राजनीति में ईमानदारी, शुचिता व सभ्यता के सिद्धांतों पर चलने वाली एक कैडर आधारित पार्टी भी मानता है। वैसे धरातल पर देखा जाए तो इसके चलते ही देश में लंबे समय से सार्वजनिक मंचों से 'भारतीय जनता पार्टी' का शीर्ष नेतृत्व ताल ठोंक कर के 'भाजपा' की इस विशेषता को बता कर के देश के मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने का कार्य भी निरंतर करता रहता है। वैसे भी बड़ी संख्या में देश के आम जनमानस का भी यह मानना है कि 'भाजपा' अपनी इस विशेष पहचान व राजनीतिक शुचिता के अपने सिद्धांतों पर चलते हुए ही आज देश की अन्य पार्टियों के जनाधार के बीच भी तेजी के साथ मजबूत पैठ बनाने का कार्य करती जा रही है, जो भाजपा के लिए एक अच्छा संकेत है।

लेकिन हाल ही में चल रहे उत्तर प्रदेश नगर निकाय के चुनावों में टिकट वितरण के बाद जिस तरह से घमासान हुआ वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चिंतित कर देना वाला है। 'भाजपा' के शीर्ष नेतृत्व की नगर निकाय के चुनावों के टिकट वितरण में हस्तक्षेप ना करने की लाख चेतावनियों के बावजूद भी जिस तरह से नेताओं ने खुलेआम अपने लोगों की पैरवी करने का कार्य किया है, उससे टिकट वितरण में पार्टी के कार्यकर्ताओं का हक बड़े पैमाने पर मारा गया है। प्रदेश स्तरीय नेताओं ने कार्यकर्ताओं की जगह अपने जेबी लोगों को टिकट दिलवाने के चक्कर में जिस तरह से 'साम दाम दण्ड भेद' की नीति को अपनाकर के पार्टी का अहित करने का कार्य किया है, उसने स्थिति को धरातल पर खराब करने का कार्य किया है। चंद राजनेताओं के द्वारा कार्यकर्ताओं की जगह केवल अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की इस अंधाधुंध होड़ में ही जगह-जगह टिकट वितरण पर नाम घोषित होने के बाद जमकर हंगामा बरपा है। नगर निकाय के टिकट वितरण विवाद के इस घमासान पर नज़र डालें, तो उससे धरातल पर आम जनमानस की 'भाजपा' के संदर्भ में बनाई गई सकारात्मक छवि की धारणा को जबरदस्त नुक़सान पहुंचाने का कार्य पार्टी के ही चंद राजनेताओं के द्वारा अपने-अपने क्षणिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए किया गया है। वहीं इन नेताओं की हरकतों ने पार्टी के आम कार्यकर्ताओं का हक मारकर उनको निराश करने का कार्य किया है। टिकट वितरण के बाद उत्पन्न आक्रोश और नारेबाजी बंद कमरों और पार्टी कार्यालय तक तो ठीक थी, लेकिन आक्रोश को कुचलने के लिए जिस तरह से मीडिया के सामने व पार्टी के दिग्गज राजनेताओं के सामने ही चंद राजनेताओं के इशारों पर उनके गुर्गों ने कार्यकर्ताओं के साथ गाली-गलौज, धक्का-मुक्की व मारपीट करने की घटनाओं को घटित करने का दुस्साहस किया है, यह स्थिति पार्टी के लिए आज के समय के साथ-साथ भविष्य के लिहाज से भी बेहद नुकसानदायक है और आम जनमानस के बीच पार्टी की छवि को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करने का कार्य बखूबी कर रही है, जो कि पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के हित में बिल्कुल भी उचित नहीं है। वहीं साथ ही इन लोगों की हरकत 'भाजपा' को सबसे अलग व अनुशासित पार्टी बताने के दावे पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने का कार्य कर रही है। इन चंद राजनेताओं को समय रहते समझना चाहिए कि राजनीति में हमारे आपस में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन यह कभी भी मनभेद में तब्दील नहीं होने चाहिए, क्योंकि आपस में मनभेद होना पार्टी व व्यक्ति दोनों के हित में ही उचित नहीं है। 

जिस तरह से यूपी नगर निकाय के दूसरे चरण के चुनावों के नामांकन के अंतिम दिन गाजियाबाद में आपस में मार-पिटाई हुई है, वह 'भाजपा' के लिए उचित नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो जब शीर्ष नेतृत्व के द्वारा खोड़ा नगर पालिका परिषद के सभासद पद हेतु घोषित उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल देने में ना-नुकुर की गयी, तो इस विवाद के समाधान के लिए देश के पूर्व सेनाध्यक्ष, केन्द्रीय राज्यमंत्री व गाजियाबाद के सांसद जनरल डॉक्टर वी.के. सिंह की बेटी भाजपा के चुनाव कार्यालय पर पहुंची, जहां पर राजनीतिक विरोध में अंधे हो चुके चंद राजनेताओं व उनके गुर्गों ने एक महिला के सामने कैसे बात की जाती है, इस गरिमा तक का जरा भी ध्यान ना रखते हुए जमकर के गाली-गलौज करने का कार्य किया, हालांकि बाद में टकराव वाली यह स्थिति मार-पिटाई की शर्मनाक घटना में बदल गई। लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि देश के एक बेहद सम्मानित परिवार की बेटी के सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देना बेहद शर्मनाक आपराधिक कृत्य है, वहीं इस स्थिति पर वहां पर उपस्थित अन्य राजनेताओं का तमाशबीन बन करके खड़े रहना बिलकुल ही समझ से परे है।

इसे भी पढ़ें: Nikay Chunav 2023: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौतरफा मुकाबले में बीजेपी मार सकती है बाजी

हालांकि बाद में काफी छिछालेदर होने के बाद भाजपा को अपनी बपौती मानकर बैठे इन चंद मठाधीशों को खोड़ा नगर पालिका के उन सभी सभासद पद के प्रत्याशियों को पार्टी का सिंबल देना ही पड़ा, तब कहीं जाकर यह विवाद शांत हुआ। लेकिन चुनावी माहौल होने के चलते मार-पिटाई की इस घटना की वीडियो बहुत ही तेजी से वायरल होने के चलते, उसने वहां उत्पन्न स्थिति की पोल देश व दुनिया के सामने खोलने का कार्य करते हुए, पार्टी की छवि को बट्टा लगाने का कार्य तब तक कर दिया। वैसे इस स्थिति पर विचारणीय तथ्य यह है कि किस तरह से 'भाजपा' के संगठन में बैठे चंद लोग अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी 'भाजपा' की छवि को पलीता लगाने का कार्य कर रहे हैं और शीर्ष नेतृत्व की पार्टी को मजबूत करने के लिए की जा रही मेहनत को खराब करने का दुस्साहस कर रहे हैं।

इस शर्मनाक स्थिति पर पार्टी के आम कार्यकर्ताओं का नाम ना छापने की शर्त पर विचारों का सार यह है कि आज उत्तर प्रदेश 'भाजपा' में छोटे व बड़े पदों पर आसीन कुछ भ्रष्ट मौकापरस्त लोगों ने पार्टी की छवि को खराब करके उस पर बट्टा लगाने का ठेका ले लिया है, वह पार्टी को मजबूत करने की जगह निरंतर गलत हथकंडे अपनाकर के धन एकत्र करने में व्यस्त हैं। आज धरातल पर आलम यह है कि इन चंद लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पार्टी को मजबूत करने के लिए की जा रही दिन-रात मेहनत पर पानी फेरने का ठेका ले लिया है, जिस स्थिति को 'भाजपा' को अपने खून पसीने से सींचने वाला आम कार्यकर्ता बिल्कुल भी सहन नहीं करने के मूड़ में है।

कार्यकर्ताओं का आरोप है कि 'भाजपा' के कुछ राजनेताओं ने यूपी नगर निकाय चुनावों के टिकट वितरण में जमकर के बंदरबांट का खेल करके, 'भाजपा' के शीर्ष नेतृत्व को गुमराह करने का दुस्साहस करते हुए, कार्यकर्ताओं के हक को मारकर के उनको छलने का कार्य किया है, उन्होंने टिकट वितरण में जेबी लोगों व पैसे वालों को तरजीह देकर के 'भाजपा' के कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का कार्य बहुत ही चालाकी से भाजपा में रहते हुए ही बखूबी कर दिया है। खैर जो भी हो लेकिन यह स्थिति मन को झकझोर देती है कि जिन नेताओं को एक सेना के सर्वोच्च पद पर आसीन बेहद सम्मानित व्यक्ति की सुपुत्री के सामने बात करने तक की सभ्यता ना हो, वह लोग भी 'भाजपा' जैसी पार्टी में राजनेता बन करके सार्वजनिक मंचों से देश व समाज की सेवा करने, सभ्य होने व पार्टी के प्रति पूर्ण रूप से वफादार होकर के समर्पित होने का झूठा दंभ कितनी आसानी से भरते हैं। लेकिन अब देखने वाली बात यह है कि 'भाजपा' का शीर्ष नेतृत्व अपने ऐसे राजनेताओं पर क्या कोई कार्यवाही करता है या नहीं, या फिर 'भाजपा' को अन्य राजनीतिक दलों के पदचिन्हों पर चलने के लिए यूं ही छोड़ देता है।

-दीपक कुमार त्यागी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़