नर-नारी समानता के इस युग में हो रहे बदलाव मात्र बाहरी एकरूपता प्रतीत हो रहे हैं

Gender Man Dress
Prabhasakshi

पचास साल पहले जब मैं लंदन में पढ़ता था तो मुझे स्काटलैंड के छात्रों को देखकर भ्रम हो जाया करता था, क्योंकि उनमें से कुछ स्कर्ट पहने रहते थे। दुनिया के दर्जनों देश हैं, जिनमें लोगों की वेशभूषा अपने तरह की अनूठी होती है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने मुखपृष्ठ पर एक खबर छापी है कि अमेरिका में कई आदमी अब औरतों का वेश धारण करने लगे हैं और औरतें तो पहले से ही वहां आदमियों की वेशभूषा पहनते रही हैं। उनका कहना है कि कपड़ों में भी औरत-मर्द का भेद क्या करना? वह जमाना लद गया जब औरतों के लिए खास तरह की वेशभूषा, जेवर और जूते-चप्पल पहनना अनिवार्य हुआ करता था। उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती थी। घूंघट और बुर्का लादना आवश्यक माना जाता था।

हमारे संस्कृत नाटकों को देखें तो कालिदास और भवभूति जैसे महान लेखकों की रचनाओं में उनकी महिला पात्राएं संस्कृत में नहीं, प्राकृत में संवाद करती थीं। महिलाओं को पुरुषों के समान न हवन करने का अधिकार था और न ही जनेऊ धारण करने का! वेदपाठ करना तो उनके लिए असंभव ही था। आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती की कृपा से भारतीय स्त्रियों को इन बंधनों से मुक्ति मिली लेकिन यूरोपीय इतिहास की लगभग एक हजार साल की अवधि को वहाँ अंधकार-युग कहा जाता है।

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उस युग में पोप लीला के कारण औरतों पर अत्याचार की हद हो रखी थी लेकिन अब इसी ईसाई यूरोप और अमेरिका में आधुनिकता की ऐसी लहर चली है कि आदमी लोग औरतों की तरह लंबे-लंबे बाल रखने लगे हैं, स्कर्ट ब्लाउज पहनने लगे हैं और उनके पारंपरिक जेवर भी अपने शरीर पर सजाने लगे हैं। इसे वे लिंग-भेद का निराकरण कहते हैं लेकिन वास्तव में औरत-औरत होती है और आदमी-आदमी।

हमारे यहां तो भाषा और व्याकरण में भी वह भेद प्रतिबिंबित होता है। उसे सिर्फ वेशभूषा बदलने से नहीं मिटाया जा सकता है। कई देशों में उनके पुरुष भी अपना अधोवस्त्र स्त्रियों-जैसा ही सदियों से पहनते आ रहे हैं। जब पहली बार अपने राष्ट्रपति भवन में भूटान नरेश से लगभग 30 साल पहले मेरी भेंट हुई तो मैं उन्हें स्कर्ट-जैसा अधोवस्त्र पहने देखकर दंग रह गया।

पचास साल पहले जब मैं लंदन में पढ़ता था तो मुझे स्काटलैंड के छात्रों को देखकर भ्रम हो जाया करता था, क्योंकि उनमें से कुछ स्कर्ट पहने रहते थे। दुनिया के दर्जनों देश हैं, जिनमें लोगों की वेशभूषा अपने तरह की अनूठी होती है। इसीलिए यदि अब अमेरिका की कुछ नामी-गिरामी कंपनियां ऐसी वेशभूषा बनाने लगी हैं, जो अब तक स्त्रियों की मानी जाती थीं, लेकिन अब उन्हें पुरुष भी पहनने लगे हैं तो इसमें बुराई क्या है? यह नर-नारी समता का नया युग शुरू हो रहा है। इसे हम ऊपरी या बाहरी एकरूपता कहें तो बेहतर होगा।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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