अब बीसीसीआई में भी ''दादा'' दिखाएंगे अपना जलवा

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अंकित सिंह । Oct 14 2019 5:57PM

खेल के मैदान से लेकर प्रशासन तक, गांगुली ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी है। लेकिन गांगुली बनना इतना आसान नहीं है। इसके लिए जुनून, जज्बा और लड़ने की क्षमता होनी चाहिए। गांगुली ने ना सिर्फ हमें जीतने के लिए लड़ना सिखाया बल्कि अपनी कप्तानी में एक के बाद एक कई जीत भी दिए हैं।

खेल के मैदान पर 11 खिलाड़ियों की कप्तानी करने वाला भारतीय क्रिकेट का दादा अब प्रशासनिक रूप से इस खेल की कप्तानी करेगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं पूर्व कप्तान सौरव चंडीदास गांगुली की। सौरव गांगुली का बीसीसीआई का अध्यक्ष बनना लगभग तय है। महज कुछ औपचारिकताएं पूरी की जानी है। जिसके बाद सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बन जाएंगे। बीसीसीआई में हुए सुधारों के बाद इसके अध्यक्ष बनने वाले पहले व्यक्ति होंगे सौरव गांगुली। हालांकि यह क्षण बीसीसीआई के लिए एक चुनौती भरा है। सौरभ गांगुली भी यह मानते हैं कि वह ऐसे समय में बीसीसीआई का अध्यक्ष बन रहे हैं जब इसकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। सौरव गांगुली ने कहा कि उनके लिये यह कुछ अच्छा करने का सुनहरा मौका है क्योंकि वह ऐसे समय में बोर्ड की कमान संभालने जा रहे हैं जब उसकी छवि काफी खराब हुई है। गांगुली ने अध्यक्ष पद की होड़ में बृजेश पटेल को पछाड़ दिया है और अब इस पद के लिये अकेले उम्मीदवार हैं। 

खेल के मैदान से लेकर प्रशासन तक, गांगुली ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी है। लेकिन गांगुली बनना इतना आसान नहीं है। इसके लिए जुनून, जज्बा और लड़ने की क्षमता होनी चाहिए। गांगुली ने ना सिर्फ हमें जीतने के लिए लड़ना सिखाया बल्कि अपनी कप्तानी में एक के बाद एक कई जीत भी दिए हैं। गांगुली ने खेल को लोगों से जोड़ा और एक कप्तान के तौर पर ऐसे खिलाड़ियों को उकेरा जो आज भी अपने हुनर से कई कमाल करते रहते हैं। वह गांगुली ही थे जिन्होंने एक कप्तान के तौर पर हरभजन सिंह, जहीर खान, वीवीएस लक्ष्मण, सुरेश रैना, गौतम गंभीर, युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ जैसे खिलाड़ियों को विश्व पटल पर लेकर आए। इतना ही नहीं धोनी को धोनी बनाने में भी गांगुली ने एक अहम किरदार निभाया है। लेकिन गांगुली का करियर इतना आसान नहीं रहा है। तमाम उतार-चढ़ाव के बीच गांगुली ने खुद के साथ-साथ टीम इंडिया को सजाया और संवारा। 8 जुलाई 1972 को कलकत्ता के एक रहीस परिवार में जन्में गांगुली 'महाराजा' कहा जाता था। 

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घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन कर गांगुली ने 1992 में ही टीम इंडिया में अपनी जगह बना ली थी। उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलने का मौका भी मिला। कुछ ही मुकाबलों के बाद उन्हें यह कहकर टीम इंडिया से बाहर कर दिया गया कि वह घमंडी है और उनमें अहंकार भरा हुआ है। यह गांगुली के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। फिर भी उन्होंने लड़ना जारी रखा। 1996 में एक बार फिर से टीम इंडिया में गांगुली की वापसी होती है और क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स में उन्होंने शानदार शतक जमाकर जबरदस्त वापसी की। बाएं हाथ के बल्लेबाज के तौर पर गांगुली अपनी छाप लगातार छोड़ते रहे और एक के बाद एक कई शानदार और धारदार प्रदर्शन भी करते रहे। 1999 के विश्व कप में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। यह ऐसा वक्त था जब गांगुली चॉकलेटी बॉय बन जाते हैं और एक खिलाड़ी के तौर पर इनके फैंस की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा था लेकिन गांगुली अपने पथ पर लगातार अग्रसर रहें। 

1999-2000 का दौड़ भारतीय टीम के लिए काफी बुरा रहा। कई खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के चार्ज लगे और उन्हें टीम से बाहर होना पड़ा। यह ऐसा वक्त था जब एक बनी बनाई टीम टूट चुकी थी। ऐसे में इस टीम की जिम्मेदारी मिली सौरव गांगुली को। सौरव गांगुली ने कुछ नए और कुछ पुराने खिलाड़ियों के साथ इस टीम को बनाया। अपनी कप्तानी में गांगुली ने आक्रामकता भी दिखाया, गुस्सा भी दिखाया और लड़ने का जज्बा भी दिखाया। शुरुआत से ही गांगुली अपनी टीम को एक सूत्र में बांधने की कोशिश की। नतीजा भी सकारात्मक रहा। ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को घर में मात दी तो 1983 के बाद 2003 में पहला मौका आया जब भारतीय टीम विश्व कप के फाइनल में पहुंची। 2002 के नेटवेस्ट ट्रॉफी में गांगुली का वो टी शर्ट उतारकर लॉट्स का चक्कर लगाना सभी को याद होगा। यह एक  कप्तान का ही हौसला था जिसने टीम को नई ऊचांई दी। ये वो दौर था जब गांगुली की तूती बोलती थी। 2000 से 2005 तक गांगुली ने टीम इंडिया की शानदार कप्तानी की। भारत के सबसे सफल कप्तानों में से एक गांगुली ने 49 टेस्ट मैचों में कप्तानी की है जिसमें से 21 में जीत मिली, 13 हारें जबकि 15 ड्रॉ हुए। वहीं 146 एकदिवसीय मैचों की कप्तानी करते हुए गांगुली ने 76 मैच में भारतीय टीम को जीत दिलवाई।  

2005 के बाद मानों गांगुली को किसी की नजर लग गई। 2005 में गांगुली जिंबाबवे के दौरे पर गए तो थे एक कप्तान के तौर पर। लेकिन अपने साथ लाते हैं तो विवादों का एक बड़ा पिटारा। उस वक्त टीम इंडिया के कोच ग्रेग चैपल और कप्तान गांगुली के बीच विवाद हो गया था। गांगुली का प्रदर्शन भी खराब रहा था। बीसीसीआई ने भी गांगुली का साथ नहीं दिया और उन्हें कप्तानी से हाथ धोने के साथ-साथ टीम से भी बाहर होने पड़ा। लेकिन गांगुली ने हार नहीं मानी। वह टीम इंडिया में शानदार वापसी करते हैं। धोनी की कप्तानी में खेलते भी हैं और आखिरी टेस्ट में दोहरा शतक बनाकर रिटायर भी होते हैं। एक खिलाड़ी के तौर पर गांगुली का सफर शानदार रहा। इसके बाद गांगुली ने आईपीएल भी खेला। पहले सीजन में कोलकाता के वह कप्तान थे। बाद में उन्होंने पुणे से भी खेला। लेकिन एकदिवसीय के सिक्सर किंग आईपीएल में कुछ खास कमाल नहीं कर सके। फिलहाल वह दिल्ली टीम के मेंटर है। गांगुली के प्रशासनिक अनुभव की बात करे तो जगमोहन डालमिया के निधन के बाद उन्होंने क्रिकेट बोर्ड ऑफ बंगाल की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने CAB के अध्यक्ष के तौर पर कई सफल आयोजन भी आयोजित किए। 

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इसके अलावा गांगुली उस टीम के भी हिस्सा थे जिनका दायित्व टीम इंडिया के कोच का चयन करना था। इसी दौरान गांगुली और रवि शास्त्री का विवाद भी सामने आया जब रवि शास्त्री को किनारे कर अनिल कुंबले को टीम इंडिया का कोच नियुक्त किया गया। हालांकि अनिल कुंबले के हटने के बाद रवि शास्त्री एक बार फिर से टीम इंडिया के कोच बन गए लेकिन गांगुली और रवि शास्त्री के बीच का विवाद लोगों में आ चुका था। गांगुली आईपीएल के आयोजन समिति का भी हिस्सा हैं। गांगुली की लोकप्रियता आज भी वैसी ही है जैसा पहले हुआ करती थी। गांगुली कई चैनलों पर क्रिकेट विशेषज्ञ के तौर पर अपनी राय रखते हैं। इसके अलावा क्रिकेट मैच के दौरान कमेंट्री भी करते हैं। साथ ही साथ कई चैनलों पर मनोरंजक प्रोग्राम भी होस्ट करते हैं। गांगुली कई बड़े ब्रांड के ब्रांड एंबेसडर हैं। इसके अलावा गांगुली पर नजर देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की भी है जो उन्हें राजनीति में लाने के लिए उतारू है। हालांकि इसका निर्णय गांगुली को ही लेना है। गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष के तौर पर अपना कामकाज संभालेंगे जरूर पर उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां भी होंगी। चुनौतियों से निपटना उन्हें आता है। ऐसे में हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि गांगुली की देखरेख में बीसीसीआई दिन रात तरक्की करेगी और टीम इंडिया लगातार आगे की ओर बढ़ती रहेगी।

- अंकित सिंह

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