गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ खास कारणों के चलते गुपकार को 'गैंग' की संज्ञा दी है

amit shah
ललित गर्ग । Nov 19 2020 4:48PM

मोदी सरकार के सामने कश्मीर में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को स्थापित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। पर कुछ गुपकार से जुड़े स्वार्थी राजनेता एवं राजनीतिक दल किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए स्वार्थप्रेरित समानान्तर आदर्शों की वकालत कर रहे हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस और सीपीआईएम रूपी पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) नामक राजनीतिक मोर्चा पर तीखा हमला बोलते कहा कि गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर को फिर से आतंक, हिंसा, अशांति और उत्पात के दौर में ले जाना चाहता है। यह गुपकार राजनीतिक दल राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ रहा है। अभी तक कांग्रेस का इनके साथ घोषित तौर पर कोई समझौता नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर सीटों का तालमेल होने की चर्चा है। गुपकार की बढ़ती सक्रियता से कहीं कश्मीर में शांति, अमन एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर फिर से अंधेरे ना छाये?

इसे भी पढ़ें: क्या है गुपकार डिक्लेरेशन और क्या है इसका 'गुप्त' एजेंडा?

गृहमंत्री ने गुपकार को एक राजनीतिक दल की बजाय एक गैंग कहकर संबोधित किया है, इससे भले ही कुछ लोग सहमत न हों, लेकिन इसे गैंग कहने के कुछ तो कारण रहे होंगे। एक पूरा वातावरण जो मिल रहा है, परिवेश निर्मित किया जा रहा है, वह आतंक एवं अशांति को बढ़ाने वाला है, घटाने वाला बिलकुल नहीं लगता। क्यों आवश्यकता है कि राष्ट्र-विरोधी, आतंक एवं अशांतिमूलक गतिविधियों एवं विचारों को संक्रामक बनाया जाए? प्रांत की शांति व्यवस्था एवं विकास की प्रक्रिया को बाधित किया जाये। गुपकार की आक्रामक एवं राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के बीच हम कल्पना कैसे करें कि हिंसा नहीं बढ़ेगी, आतंक नहीं पनपेगा और अशांति नहीं बढ़ेंगी? इसलिए सबसे पहले ध्यान देना है कश्मीर के परिवेश पर, वहां के वातावरण पर। वहां के स्थानीय राजनीतिक दलों ने अपने चारों ओर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण कर रखा है? वह जब तक नहीं बदलेगा, तब तक हिंसा-आतंक को उत्तेजना देने वाली घटनाएं और निमित्त उभरेंगे।

आतंक एवं हिंसाग्रस्त इस प्रांत में शांति स्थापना के लिये भारत सरकार के प्रयत्न निश्चित ही जीवंत लोकतंत्र का आधार बने हैं। जरूरत है कश्मीर में राजनीतिक एवं साम्प्रदायिक संकीर्णता की तथाकथित आवाजों की बजाय सुलझी हुई सभ्य राजनीतिक आवाजों को सक्रिय होने का मौका दिया जाए, विकास एवं शांति के नये रास्ते उद्घाटित किये जायें, इसी दृष्टि से गृहमंत्री का गुपकार पर खास तौर पर हमलावर होना स्वाभाविक है। अगर ये दल राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं तो उनकी इस मांग से किस तरह और क्यों सहमत हुआ जा सकता है। भारत का संविधान और यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने की इजाजत देती है, लेकिन उनकी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां एवं बयान किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।

  

केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी यह कहती रही है कि अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधान खत्म करने का फैसला राज्य की जनता के हित में किया गया है, जिसकी लम्बे समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। अब चुनाव वह उपयुक्त मौका है जब भाजपा के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को इस फैसले की खूबियां समझा सकते हैं और उन्हें समझाना भी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संगठनों की अलोकतांत्रिक गतिविधियों एवं प्रांत में आतंक-अशांति एवं हिंसा को बल देने वाले बयानों एवं मनसूंबों का भी बेपर्दा करना चाहिए। इसी से वहां लोकतंत्र स्थापित हो सकेगा। दूर बैठकर भी हर भारतीय इस बात को गहराई से महसूस कर रहा है और देख रहा है कि जम्मू-कश्मीर में शांति, सौहार्द, विकास एवं सह-जीवन का वातावरण बन रहा है। वहां संविधान के साये में लोकतंत्र प्रशंसनीय रूप में पलता हुआ दिख रहा है। लेकिन गुपकार में सत्ताविहीन असंतुष्टों की तरह आदर्शविहीन असंतुष्टों की भी एक लम्बी पंक्ति है जो सत्ता की लालसा में शांति कम, खतरे ज्यादा उत्पन्न कर रही है। वे सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें, अच्छाई में भी बुराई खोजे, शांति एवं सौहार्द की स्थितियों को भी अशांत बताये, पर वे शांति का, सुशासन का, विकास का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते। हम गलतियां निकालें पर दायित्व स्वीकार नहीं करें। ऐसा वर्ग आज जम्मू-कश्मीर के लिये विडम्बना एवं त्रासदी बने मुद्दों को लेकर एक बार फिर सक्रिय है। वे लोग अपनी रचनात्मक शक्ति का उपयोग करने में अक्षम है, इसलिये स्थानीय निकाय के चुनावों में लोकतांत्रिक अधिकारों को आधार बनाकर अस्तव्यस्तता एवं अशांति को बढ़ाने में विश्वास करते हैं।

इसे भी पढ़ें: गुमराही गैंग बन गया है गुपकार गैंग, अपने स्वार्थ के लिए J&K के लोगों में भय-भ्रम का भूत कर रहा खड़ा: नकवी

भले ही इस राज्य में उग्रवाद के चरम उठान के दिनों में भी गुपकार से जुड़ी पार्टियां न केवल चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी रहकर राज्य में सरकार चलाती रही हैं बल्कि इनके सैंकड़ों नेता-कार्यकर्ता आतंकी हमलों में मारे गए हैं और अलग-अलग समय में ये केंद्र सरकार का भी हिस्सा रही हैं, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि इन्होंने आतंकवाद को पनपने का अवसर देते हुए, अशांति का वातावरण बनाते हुए एवं विकास को अवरूद्ध करके ही अपनी राजनीतिक हितों की रोटियां सेंकी हैं। यह भी एक सच है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन दलों के प्रमुख नेता कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष का समर्थन करते रहे हैं। आज भी ये स्थानीय चुनावों में पूरी शिद्दत से शामिल हो रहे हैं, चुनाव बहिष्कार की बात नहीं कर रहे। लेकिन ये दल राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं, पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हैं तो किस तरह उनसे सहमति बने? 

गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर के इन राजनीतिक संगठनों को आपराधिक गिरोह या गैंग करार किया है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति प्रतीत नहीं होती है। यह एक साहसभरा कदम है, साहस का परिचय तो कश्मीर में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर भी दिया, उससे भी अधिक उसने शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने की स्थितियों को निर्मित कर परिपक्वता का परिचय दिया है। अनुच्छेद-370 के हटने के बाद की नवीन स्थितियों में कश्मीर की जनता ने राहत की सांस ली है, नवीन परिवेश में वहां किसी बड़ी अप्रिय, हिंसक, आतंकी एवं अराजक स्थिति का न होना, वहां की जनता का केन्द्र सरकार में विश्वास का परिचायक है। प्रांत में हर कदम लोकतांत्रिक सावधानी, सूझबूझ एवं विवेक से उठाना, समय की मांग है, चाहे स्थानीय निकायों के चुनाव हों या उनमें सक्रिय गुपकार की राजनीतिक गतिविधियां। कहीं ऐसा न हो कि घाटी में गलत एवं अराजक राजनीतिक दलों को प्रश्रय देने से वहां हिंसा एवं आतंक का नया दौर शुरू हो जाये।

नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने कश्मीर में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को स्थापित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। पर कुछ गुपकार से जुड़े स्वार्थी राजनेता एवं राजनीतिक दल किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए स्वार्थप्रेरित समानान्तर आदर्शों की वकालत कर रहे हैं। यानी स्वस्थ परम्परा का मात्र अभिनय। प्रवंचना का ओछा प्रदर्शन। ऐसे लोग कहीं भी हो, उन्नत जीवन एवं सशक्त राष्ट्र की बड़ी बाधा है। कश्मीर में भी ऐसे बाधक लोग लोकतंत्र का दुरुपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं। कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअन्दाज करना मुश्किल होता है। चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडंगी लगाते हैं। सांप तो काल आने पर काटता है पर दुर्जन तो पग-पग पर काटता है। कश्मीर को शांति, विकास एवं सह-जीवन की ओर अग्रसर करते हुए ऐसे दुर्जन लोगों से सावधान रहना होगा। यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ की। भारत विविधता में एकता का ''मोजायॅक'' राष्ट्र है, जहां हर रंग, हर दाना विविधता में एकता का प्रतिक्षण बोध करवाता है। अगर हम हर कश्मीरी में स्थानीय निकाय के चुनावों में आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहिन असंतुष्टों यानी गुपकारों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे। और ऐसा होना कश्मीर में अशांति एवं आतंक की जड़ों को उखाड़ फेंकने का एवं शांति स्थापना का सार्थक प्रयत्न होगा।

-ललित गर्ग

(पत्रकार, स्तंभकार, लेखक)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़