साक्षात्कारः गौरैया को बचाने के लिए खास अभियान चला रहे भारत भूषण से खास बातचीत
‘इको-फ्रेंडली बर्ड होम’ के तहत हमने घोंसलों का निर्माण करवाया है। ऐसे घोंसले जिसमें गौरैया आके रह सके। स्वनिर्मित इन घोंसलों का हम निशुल्क वितरण करते हैं। उन्हें घरों को बालकनी, दीवारों, खुले स्थानों व छतों पर रखा जा सकता है।
गौरैया धीरे-धीरे विलुप्त होने को है। घर-आंगनों में चहलकदमी करने वाली यह अद्भुत चिड़िया अब कहीं दिखाई नहीं देती। इसके बिना आंगन भी सूने लगते हैं। चिड़िया को बचाने या फिर जो बची हैं उन्हें संरक्षित करने के लिए कुछ लोगों ने बीड़ा उठाया हुआ है। उन्हीं में भारत भूषण भी हैं। भारत भूषण दिल्ली मेट्रो में अधिकारी हैं, बावजूद इसके उन्होंने गौरिया को बचाने के लिए एक नायाब तरीका खोजा है। अपने निजी खर्चे से उन्होंने ‘इको-फ्रेंडली चिड़िया घरों’ का निर्माण करके उनका वितरण शुरू किया हुआ है। क्या है ये योजना और इससे कैसे होगा गौरिया का संरक्षण आदि को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
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प्रश्न- गौरैया संरक्षण के लिए आपके द्वारा संचालित ‘इको-फ्रेंडली बर्ड होम’ के संबंध में बताएं?
उत्तर- ‘इको-फ्रेंडली बर्ड होम’ के तहत हमने घोंसलों का निर्माण करवाया है। ऐसे घोंसले जिसमें गौरैया आके रह सके। स्वनिर्मित इन घोंसलों का हम निशुल्क वितरण करते हैं। उन्हें घरों को बालकनी, दीवारों, खुले स्थानों व छतों पर रखा जा सकता है। घर का निर्माण गौरैया के समुचित सुविधानुसार रहने को ध्यान में रखकर करवाया गया है। मकसद मात्र इतना है कि इससे गौरिया की प्रजाति को किसी तरह बचाया जा सके। मुझे लगता है ऐसा करने से गौरैया बच सकती है, वरना विलुप्त तो हो ही चुकी है।
प्रश्न- आप दिल्ली मेट्रो में कार्यरत हैं फिर इस काम में तालमेल कैसे बिठा पाते हैं?
उत्तर- कुछ करने का जज्बा अगर दिल में हो, तो कुछ भी किया जा सकता है। मैं पक्षी विशेषज्ञ नहीं हूं, पर पक्षी प्रेमी जरूर हूं। उसी प्रेम ने मुझे इस चिड़िया को बचाने के लिए आगे किया। इसका जबरदस्त फायदा भी हुआ। सबसे पहले मैंने अपने साथियों में ‘इको-फ्रेंडली बर्ड होम’ का वितरण किया, उन्होंने अपने घरों में बालकनी व छतों आदि में घोंसलों को रखा। देखते ही देखते उनके यहां गौरैया का आना शुरू हुआ। आज तकरीबन हर घोंसलों में गौरैया आपको दिखाई देंगी। रही बात काम के साथ तालमेल बिठाने की तो इसके लिए आपको अलग से समय देने की जरूरत नहीं। काम के साथ भी आसानी से किया जा सकता है।
प्रश्न- आपके मन में कैसे आया गौरैया के संरक्षण का विचार?
उत्तर- मन पक्षियों के प्रति कोमल तो हमेशा से रहा है। लॉकडाउन में मैंने कई पक्षियों को भूख-प्यास से चहकते देखा। वह वक्त ऐसा था जब समूची मानव जाति घरों में कैद थी। तब बेजुबान जानवरों-पक्षियों को ना खाना मिला और ना पानी। घरों के बाहर मैंने पक्षियों को तड़पते देखा, जिसमें छोटी चिड़िया गौरैया को भी। गौरैया वैसे भी नाम मात्र के लिए बची हैं। तभी मेरे मन में विचार आया कि गौरैया के लिए क्यों न स्थाई घर बनाया जाए और उसे लोगों में बांटा जाए। उसके बाद मैंने हजारों घरों को बनवाने का फैसला किया और दोस्तों व परिवारजनों में बांटा। वह सिलसिला अब भी लगातार जारी है। मेरी इस मुहिम से अब कई लोग जुड़ गए हैं।
प्रश्न- गौरैया के विलुप्त होने का कारण आप जानते हैं?
उत्तर- बहुत अच्छे से। एक जमाना था जब बुजुर्ग नियमित रूप से घर की छतों और आंगनों में चिड़ियों के लिए दाना डाला करते। जहां चिड़िया आकर अपना पेट भरतीं थीं। लेकिन अब न आंगन बचे और ना दाना डालने की लोगों में आदत। इसके अलावा सबसे बड़ा कारण बढता़ शहरीकरण, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग और तेज गति से फैलता प्रदूषण जिसने बड़े स्तर पर गौरैया को मारा। गौरैया के रहस्यमय एवं लुप्त होने के कुछ और भी कारण हैं, जैसे सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना, जिसके जलने पर मिथाइल नाइट्रेट नामक यौगिक तैयार होता है। पूरे हिंदुस्तान में गौरैया की नौ जाति हुआ करती थी। बीएनएचएस सर्वेक्षण जांच के आधार पर गौरैया की संख्या 2005 तक 97 प्रतिशत तक घट चुकी है।
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प्रश्न- दिल्ली में गौरैया को राज्य पक्षी का दर्जा भी प्राप्त है, बावजूद इसके ये हाल है?
उत्तर- मुझे लगता है इसमें सरकारों का दोष नहीं? आधुनिक युग में पक्के मकान, लुप्त होते बाग-बगीचे, खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा भोज्य-पदार्थ स्त्रोतों की उपलब्धता में कमी गौरैया के न रहने का प्रमुख कारक हैं। गौरैया एक बुद्धिमान चिड़िया है, जिसने घोंसला स्थल, भोजन तथा आश्रय परिस्थितियों में अपने को उनके अनुकूल बनाया है इन्हीं विशेषताओं के कारण विश्व में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चहचहाती चिड़िया कहलाती है। बसंत के मौसम में, फूलों की क्रूसेस, प्राइम रोजेस तथा एकोनाइट फूलों की प्रजातियां घरेलू गौरैया को ज्यादा आकर्षित करती हैं।
प्रश्न- आपको नहीं लगता, गौरिया को बचाने के लिए सरकार-समाज दोनों को संयुक्त रूप से प्रयास करने चाहिए?
उत्तर- मुझे याद है कि सरकार ने अप्रैल, 2006 में भारत में बर्ड्स संरक्षण के लिए एक कार्य योजना बनाई थी जिसमें चरणबद्ध ढंग से डाइक्लोफेनेक का पशुचिकित्सा इस्तेमाल पर रोक तथा बर्ड्स के संरक्षण और प्रजनन की बात कही गईं थी। पर, नतीजा कुछ खास नहीं निकला। कुछ वर्ष पहले दिल्ली सरकार ने गौरैया को बचाने के लिए एक विशेष अभियान भी चलाया था। दिल्ली सरकार ने गौरैया को विशेष दर्जा भी दिया हुआ है। मुझे लगता है चिड़िया को बचाने के लिए हम सभी को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
-बातचीत में जैसा पर्यावरणविद् भारत भूषण ने डॉ0 रमेश ठाकुर से कहा।
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