किन्नरों की ओर से की जाने वाली नेग वसूली की समस्या बढ़ती जा रही है

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अशोक मधुप । Mar 22 2022 2:03PM

किन्नरों ने अपने सूचना तंत्र विकसित कर रखे हैं। पुलिस को भले ही अपराध की या किसी घटना की सूचना नहीं हो, किंतु किस परिवार में कब शादी हुई है, कब बच्चा हुआ है, ये इन्हें पता होता है। परिवार शादी करके दुल्हन को लेकर पहुंचता है कि कुछ देर बात ये आ धमकते हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद के बंदाहेड़ी की ग्राम पंचायत पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन सकती है। इस पंचायत ने एक देश की बड़ी समस्या के निदान की दिशा में बड़ा काम किया है। पंचायत बुलाई गई थी विवाह−शादी के खर्च के नियंत्रण के लिए। इसी के बीच बात उठी विवाह शादी या बच्चा होने पर किन्नरों के नेग की। कहा गया कि किन्नर शादी वाले, या बच्चा होने वाले परिवार की आर्थिक हालत भी नहीं देखते। मनमानी रकम मांगते हैं। कहीं ये रकम 51 हजार होती है तो कहीं एक लाख। न देने पर ये परिवार से बदतमीजी करते हैं। पुरानी चली आ रही परंपराओं के कारण लोग इनके शाप से डरते हैं। चाहे कर्ज उठाएं या कुछ अन्य करें पर इनकी मांग पूरी करनी पड़ती है। कई जगह मांग पूरी न होने पर झगड़े होते हैं, विवाद होता है। पंचायत ने समस्या की गंभीरता समझी। पंचायत ने तय किया कि अब बधाई देने वाले  किन्नरों को 500 से एक हजार रुपया ही नेग दिया जाएगा। कोई परिवार इससे ज्यादा नहीं देगा।

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सहारनपुर जनपद की छोटी-सी ग्राम पंचायत ने ये काम किया। यह कार्य नगर पालिकाएं और नगर निगम में क्यों नहीं होता। सरकारी स्तर पर किन्नरों के रेट क्यों नहीं निर्धारित होते। मुहल्ला और वार्ड कमेटी भी इस कार्य को कर सकती हैं। किन्नरों ने मुहल्ले, वार्ड और सोसायटी में अपने सूचना तंत्र विकसित कर रखे हैं। पुलिस को भले ही अपराध की या किसी घटना की सूचना नहीं हो, किंतु किस परिवार में कब शादी हुई है, कब बच्चा हुआ है, ये इन्हें पता होता है। परिवार शादी करके दुल्हन को लेकर पहुंचता है कि कुछ देर बात ये आ धमकते हैं। ये नेग चौथ वसूली की तरह करते हैं। या तो परिवार इनकी मुंह मांगी रकम देता है, नहीं तो हंगामा और अपमान झेलता है। कमाई का अच्छा धंधा देख अब तो नकली किन्नर भी पैदा हो गए हैं। इनमें अब झगड़े मारपीट होने लगे हैं। कई बार कत्ल भी हुए हैं।

शायद ही कोई परिवार होगा, जिसे किन्नर का आंतक न झेलना पड़ हो। इनकी चौथ वसूली का सामना न करना पड़ा हो। अब तो किन्नर मोटी रकम के साथ सोने के जेवर की भी मांग करने लगे हैं। बस, ट्रेन और रेड लाइट के चौराहों पर भी ये मांगते मिल जाते हैं। ट्रेन में भी कई बार अप्रिय स्थिति पैदा हो जाती है। हम सब रोजमर्रा की जिंदगी में यह होते देखते हैं, पर चुप हो जाते हैं। किसी तरह अपना पीछा छुड़ाते हैं किंतु समाज की इस बड़ी समस्या की ओर गंभीरता से नहीं सोचते।

इसका बड़ा कारण यह भी है कि अभी तक किन्नरों की शिक्षा और सामाजिक स्तर में सुधार के लिए कुछ नहीं हुआ। संसद तक मांग पहुंची। कानून बना। इससे आगे कुछ नहीं हुआ। जबकि इन पर काम होना चाहिए था। कुछ राज्यों ने किन्नर आयोग बनाए। ये भी कागजों तक ही सीमित रहे। यदि इन किन्नर को मृत होती जाती कलाओं से जोड़ा जाता तो इनका स्तर भी सुधरता। ऐसा नहीं हुआ। इन्हें सांस्कृतिक नृत्य सिखाया जा सकता है। गायन और डांस ये जानते ही हैं यदि इनसे कव्वाली गवाई जाए तो इनकी खूब मांग होगी। अभी तक पुरूष और महिला कव्वाल ही होते हैं, किन्नर भी कव्वाल बनें तो नर्इ बात होगी। हमारे सामाजिक संगठन, एनजीओ भी इस समस्या से नजर मूंदे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समाज के विभिन्न क्षेत्र में काम कर रहा है, उसके किसी अनुषांगी संगठन को इनकी शिक्षा, प्रशिक्षक और जीवन स्तर सुधार के लिए लगाया जा सकता है। देश ने विधवा समस्या, बाल विवाह, बालिका भ्रूण हत्या जैसी समस्या पर काबू पा लिया, किंतु इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया।

    

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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