नीतीश कुमार का फैसला देश के सियासी नक्शे को ही बदल सकता है

Nitish Kumar
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2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 22, लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 और राष्ट्रीय लोक समता दल ने तीन सीटें जीती थी। ये तीनों दल एनडीए का हिस्सा थे। यूपीए में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने क्रमशः 4 और 2 सीटें जीती थी।

बिहार में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ है। मुख्यमंत्री नहीं बदले हैं, गठबंधन सरकार बदली है। नीतीश कुमार का राष्ट्रीय जनता दल से एक बार फिर मोहभंग हुआ है और पुराने सहयोगी एनडीए गठबंधन से टूटा प्यार, एक बार फिर जुड़ चुका है। कभी एनडीए, कभी महागठबंधन, तो कभी इंडिया... बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कब सियासी फायदे की खातिर पलटी मार लेंगे, इसका अंदाजा लगा पाना भी बिल्कुल वैसा ही है, जैसे रेत के मैदान में एक सुई को ढूंढ़ना। करीब 2 साल तक पीएम नरेंद्र मोदी को कोसने वाले नीतीश को, मोदी के सहारे ही 24 की चुनावी नैया पार होती दिख रही है।

नीतीश कुमार ने नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। वास्तव में बीजेपी और आरजेडी दोनों की मजबूरी नीतीश कुमार हैं, उनके बिना सरकार बनाने का ख्वाब कोई नहीं देख सकता। उन्होंने न तो बीजेपी को इस हाल में छोड़ा है, न तो आरजेडी को कि बिना नीतीश के सरकार बना लें। बिहार की राजनीति के पन्ने पलटें तो नीतीश कुमार ने बेमेल गठबंधन पहली बार 2014 में किया। वह जंगलराज सरकार के धुर विरोधी थे, उन्होंने आरजेडी से गठबंधन कर लिया। यह गठबंधन बहुमत से चुनाव जीत गया। साल 2017 में नीतीश का मोह गठबंधन से भंग हो गया। उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का साथ उन्हें पसंद नहीं आया और भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्होंने बीजेपी से नाता जोड़ लिया।

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साल 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर लड़ा। जंगलराज सरकार का डर दिखाकर भी कुल 43 सीटें ही नीतीश बाबू हासिल कर सके। 2022 में बीजेपी फिर नीतीश कुमार को तानाशाह वाली पार्टी नजर आने लगी। नीतीश कुमार ने लालू परिवार के साथ मिलकर सरकार बनाई। तेजस्वी फिर डिप्टी बने। तेजस्वी ने वादा किया कि वे सरकारी नौकरियों की भरमार लगा देंगे। उन्होंने काम भी शुरू किया और क्रेडिट भी लेने लगे। नीतीश को यह रास नहीं आया और खटास बढ़ती गई।

लंबे वक्त तक भाजपा के साथ गठबंधन में रहने वाले नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को पानी पी-पीकर कोसा था, इसके बाद लालू की पार्टी के साथ मिलकर वो बिहार में सरकार बनाते हैं, मुख्यमंत्री बनते हैं और देखते ही देखते एक बार फिर लालू से पीछा छुड़ाकर भाजपा को गले लगा लेते हैं। 2019 का आम चुनाव एनडीए में रहते हुए लड़ते हैं। फिर 2020 का विधानसभा चुनाव भी साथ में लड़ते हैं, जिसमें उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, बावजूद इसके वो फिर से सीएम बनते हैं। मगर न जाने क्यों, नीतीश कुमार ने पलटी मार ली और फिर से लालू के साथ चले गए। अब एक फिर सीएम नीतीश ने साल 2017 वाला पलटीमार कांड दोहराया और उसी अंदाज मे लालू का साथ छोड़ भाजपा के साथ चले गए।

बिहार की 40 सीटों पर हुए पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा का बोलबाला रहा है। 2014 के चुनावी नतीजों में भाजपा ने अकेले 22 सीटें हासिल की थी, जबकि एनडीए गठबंधन ने 31 सीटें जीती थीं। हालांकि अगर 2019 के चुनावी नतीजों का जिक्र किया जाए तो 2014 की तुलना में भाजपा को 5 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था, मगर एनडीए गठबंधन ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। इस बार भाजपा के पास खुला मैदान था, जो नीतीश-लालू-कांग्रेस के साथ आमने सामने की लड़ाई लड़ती। मगर भाजपा को ये बात अच्छे से समझ आ रहा था कि अगर ऐसा होता है तो सबसे बड़ा नुकसान बिहार में झेलना पड़ सकता है। यहां जातीय समीकरण का बोलबाला है और लालू-नीतीश की जोड़ी को मात दे पाना शायद भाजपा के लिए मामूली बात नहीं होगी। इसीलिए बिहार में भाजपा इस कोशिश में लगी थी नीतीश कुमार को अपने साथ लाया जाए।

हां, ये बात जरूर है कि नीतीश के इस कदम से भाजपा को बड़ा फायदा होगा, जिसका उदाहरण 2019 का चुनाव है। नीतीश और मोदी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे, जिससे लालू की पार्टी को सबसे बड़ा झटका लगेगा और शून्य की चिंता सताएगी। आरजेडी नहीं चाहेगी कि उसे पिछली बार की तरह हार झेलनी पड़े। नीतीश के पलटी मारने से इंडिया गठबंधन का अस्तित्व भी खतरे में आ गया है। भाजपा को इस बात का एहसास था कि अगर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद बिहार में एकसाथ चुनाव लड़ते हैं, तो साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर 2024 के चुनाव में दिख सकता है। आपको याद दिला दें कि 2015 के नतीजों में आरजेडी को 80 सीटें, जदयू को 69 और भाजपा को सिर्फ 59 सीटें मिली थीं।

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 22, लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 और राष्ट्रीय लोक समता दल ने तीन सीटें जीती थी। ये तीनों दल एनडीए का हिस्सा थे। यूपीए में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने क्रमशः 4 और 2 सीटें जीती थी। जनता दल यूनाइटेड ने दो सीटें जीती थीं। 2019 के आम चुनाव में एनडीए के बैनर तले बीजेपी, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी ने चुनाव लड़ा और क्रमश 17, 16 और 06 सीटों पर विजय हासिल की। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को मात्र एक सीट पर जीत मिली। वो एक सीट पर कांग्रेस ने जीती थी। आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि नीतीश की पार्टी जेडीयू के लिए 2019 में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ना जीवनदान की तरह था। नीतीश कुमार ये समझते हैं कि भाजपा का साथ उनके लिए बेहद फायदेमंद है। शायद इसी लिए उन्हें विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल रहना रास नहीं आया। जो जेडीयू, कांग्रेस और आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली थी, वो अब ये मुकाबला आमने-सामने लड़ेगी।

सन् 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी बार-बार धोखा खाने के बावजूद नीतीश से हाथ मिला रही है। भाजपा इस बड़ी लड़ाई के लिए एक-एक सीट जीतना चाहती है। उधर, नीतीश को आखिरकार समझ आ गया है कि उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होने वाली है। वे अब सम्मान के साथ राजनीति की नाव से उतरकर घाट पर आराम करने के मूड में हैं। सन् 2025 का विधानसभा चुनाव उनका अंतिम चुनाव है। शायद वे उसमें चेहरा ही न हों। वे चाहेंगे कि उनकी पार्टी तब तक अपना वजूद क़ायम रखे। यह सारी भाग-दौड़ और पलटीबाजी उसी के लिए है।

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के बाद बड़ी लहर बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। नीतीश कुमार भी ये बखूबी समझते हैं कि ये ऐसा जनसमर्थन है जिससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। वहीं, कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च सम्मान देकर भी बीजेपी ने ओबीसी वोट पर बड़ी चोट की है। मोदी सरकार के लिए ये बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसीलिए नीतीश भी मोदी की तारीफ में ना केवल कसीदे पढ़ते हैं, बल्कि परिवारवाद पर हमला भी करते नजर आते हैं।

नीतीश कुमार के अरमान प्रधानमंत्री वाले ही थे। कहां वे इंडिया गठबंधन के अगुवा बन रहे थे, कहां बीजेपी के साथ गठजोड़ कर बैठे हैं। नीतीश कुमार 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ने जा रहे थे, लेकिन उनके रास्ते ही जुदा हो गए। देखने वाली बात यह है कि जिस बीजेपी को जमकर उन्होंने कुछ वर्षों से कोसा है, उसके साथ कितने दिन सरकार में रह सकते हैं। बहरहाल, नीतीश कुमार ने ऐसी सियासी पलटी मारी है, जिससे आरजेडी के साथ साथ पूरा इंडिया गठबंधन चित्त होता दिखाई दे रहा है। नीतीश का ये फैसला सिर्फ बिहार नहीं बल्कि पूरे देश का सियासी नक्शा बदलने वाला है।

- डॉ. आशीष वशिष्ठ

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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