जो जज्बा देशवासियों ने दिखाया है, उसे बरकरार रखकर ही भारत को महाशक्ति बना सकते हैं

Independence day
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अशोक मधुप । Aug 17 2022 11:39AM

देश की आजादी पाने से ज्यादा, विभाजन में जान गईं। करोड़ों लोगों को अपने घर−जमीन संपदा छोड़कर, जान बचाकर अपने मुल्क से भागना पड़ा। जो घर, संपदा और सामान उन्होंने अपने लिए खून पसीना एक कर एकत्र किया था, जो उनका खुद का वतन था।

देश को आजाद हुए 75 साल हो गए। 75 साल एक युग होता है। एक लंबा समय। इसमें हमने बहुत कुछ देखा। बहुत कुछ झेला। खोया। बहुत कुछ सीखा। समझा। बर्दाश्त किया। इसके बावजूद देश के विकास का रथ रुका नहीं। हमने इन 75 साल में बहुत उपलब्धि हासिल की। दूसरे देश में अनाज आयात करने की प्रक्रिया को रोक कर अपने यहां ही उत्पादन के कीर्तिमान मनाए। स्कूल बनाए, कॉलेज बनाए, विश्वविद्यालय स्थापित किए। अस्पताल बनाए। मेडिकल कॉलेज खोले। आज प्रत्येक जिला मुख्यालय पर मेडिकल कॉलेज खोलने का अभियान अंतिम चरण में है। प्रदेश स्तर पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान खुल रहे हैं। देश ने डॉक्टर और इंजीनियर तैयार किए। देश में कल-कारखाने शुरू हुए। तोप ही नहीं बनाई, टैंक बनाए, महा विनाशक मिसाइल बनाईं। परमाणु बम तैयार किया। इन 75 साल में देश को आत्म निर्भर बनाने के लिए बहुत बड़ा काम हुआ। रेलवे लाइन ही नहीं बिछाईं बल्कि पूरे देश में सड़कों का जाल बना। एक्सप्रेस-वे बने भी। बन भी रहे हैं। दुश्मन से मुकाबले को हमने एक्सप्रेस−वे के किनारे हवाई पट्टी बनाने की नई शुरुआत की। नहरें निकलीं। बड़े शहरों में इक्का, रिक्शा और ट्राम में सफर करने वाले मैट्रो में कब सफर करने लगे, ये पता ही नहीं चला। ब्लैक एंड व्हाइट से होता टीवी कब कलर के रूप में आकर घर−घर तक पहुंच गया, ये मालूम ही नहीं चला। कभी लैंडलाइन फोन विलासिता के सामान में शामिल था। मोबाइल कब हाथ में आकर सबकी जरूरत बन गया, महसूस ही नहीं हुआ। एक नहीं, एक फोन में दो सिम शामिल हो गए। हवाई अड्डे बने। कभी हवाई यात्रा लोगों के लिए सपना थी। आज देश के महानगरों के लिए पहुंच का साधन बन गई।

नदियों पर डैम बन रहे हैं। देश के बिजलीघर अपनी जरूरत के लिए बिजली पैदा करने में सक्षम हैं। हम पास के देश नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान के विकास में योगदान कर रहे हैं। विदेश में शिक्षा कभी बड़े  रईसों के लिए ही थी। आज देश की युवा पीढ़ी देश में पढ़कर दुनिया भर में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। गर्व की बात है कि दुनिया भर में प्रवासियों की संख्या के मामले में आज भारत सबसे आगे है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में दुनिया भर में भारतीय प्रवासियों की संख्या एक करोड़ 75 लाख थी। अमेरिका के टूर के दौरान न्यूयार्क में हम क्रूज पर सफर कर रहे थे। उसके चालक की इस घोषणा से मुझे गर्व महसूस हुआ कि आप भारत से हैं या नेपाल से। बंगलादेश से हैं या पाकिस्तान से, आपको गर्व महसूस होना चाहिए कि यहां जो भव्यता आप देख रहे हैं, उसमें आपके देशवासियों और आपके पूर्वजों का बड़ा योगदान है। यह सब उनका बनाया है। उनका विकसित किया है।

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आज हालत यह है कि देश के इंजीनियर ने कश्मीर की वादियों में चिनाब नदी पर सबसे ऊंचा पुल बनाया। यह ब्रिज एफिल टावर से तकरीबन 35 मीटर ऊंचा है। इसके आर्क की चिनाब नदी के जलस्तर से ऊंचाई 359 मीटर है। तो लड़ाकू विमान तेजस भी बनाए। अन्य देशों के साथ अमेरिका भी तेजस को खरीदने में रूचि दिखाता है। कोराना आने के समय देश में उससे बचाव की कोई तैयारी नहीं थी। इसके बाद हमने मास्क, सैनेटाइजर, पीपीपी किट और वैंटीलेटर ही नहीं बनाए। कोराना की दो वैक्सीन भी ईजाद की। इस वैक्सीन की कई देशों को आपूर्ति की तो अपने देश में भी निःशुल्क टीकाकरण किया। इतना ही नहीं देशवासियों को सबसे ज्यादा वैक्सीन लगाने का रिकार्ड भी बनाया।

दुनिया के कई देश भारत की चिकित्सा सुविधा का आज लोहा मान रहे हैं। सस्ती चिकित्सा होती देख बाहर से व्यक्ति आज उपचार के लिए भारत आ रहे हैं। धार्मिक पर्यटन के साथ ही देश का मेडिकल टूरिज्म तेजी से बढ़ रहा है। आज भारतीय दुनिया भर में अपनी विद्वता को लोहा मनवा रहे हैं। पूणे महाराष्ट्र के एक अनाथालय से निकली लड़की आस्ट्रेलियन दंपत्ति के गोद लेने के बाद लैला से लीजा बनी। गर्व की बात यह है कि वह लावारिस लड़की आज आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम की कैप्टेन है। उधर भारतंवशी ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में बहुत आगे हैं।

पिछले 75 साल के सफर में घर की चाहरदीवारी से बेटी, बहु, माताएं बाहर आईं। वे पढ़−लिखकर परिवार को रोटी−रोजी उपलब्ध कराने में बराबर की भागीदार बन गईं। आदमी से कदम से कदम मिलाकर चलने लगीं। इंदिरा गांधी के रूप में वे देश की प्रधानमंत्री बनीं तो महिलाएं देश के सर्वोच्च पद तक भी पहुंचीं। अकेली प्रतिभा पाटिल ही देश की राष्ट्रपति नहीं बनीं। देश के आदिवासी समाज की एक बेटी द्रौपदी मूर्मु आज राष्ट्रपति के पद को सुशोभित कर रही हैं। किसान का बेटा आज उपराष्ट्रपति है। आजादी के 75 साल के सफर में देश रजवाड़ेशाही से बाहर निकला। राजे−महाराजे बीते युग की बात हो गए। परिवारवाद का  तिलस्म खत्म हो रहा है। अब राजा का बेटा राजा नहीं बनता। अब दलित की बेटी मायावती भी सबसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री बन जाती हैं। देश के लोकतंत्र के बूते चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बनता है तो एक संन्यासी मुख्यमंत्री बनता है। गर्व की बात यह है कि मेरी पीढ़ी इस सब की प्रत्यक्षदर्शी है। गवाह है। आईये आप आगे की यात्रा के माझी बनिये। रखवाले बनिए। खेवनहार बनिए।

देश की आजादी के 75 साल के इस सफर के मौके पर, इस पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से तिरंगा फहराने और तिरंगा यात्रा निकालने का आह्वान किया था। देश में जगह-जगह तिरंगा यात्रा निकाली गयी। भवनों के ऊपर तिरंगा ध्वज फहराया गया। स्कूलों में ही नहीं मदरसों में भी ध्वजारोहण हुआ। कॉलेज सजाए गये। विश्वविद्यालयों में रोशनी की गयी। सभी जगह उत्साह का माहौल रहा। एक बड़े उत्सव को दुनिया ने देखा। देश का हिंदू ही नहीं मुस्लिम समाज भी तिरंगा यात्रा में बढ़−चढ़ कर भाग लेते दिखा। कभी कश्मीर में तिरंगा फहराने के लिए भाजपा को आह्वान करना पड़ा था। कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा लहराने की कोई सोच भी नहीं सकता था। कश्मीर आतंकवाद की जद से बाहर निकला। आज यहां जगह−जगह तिरंगा फहराया जा रहा है। कश्मीर यूनिवर्सिटी में कभी अलगाववादियों का बोलबाला था। यहां भारत का तिरंगा नहीं लहर पाता था। यहां के शिक्षकों का एक बड़ा समूह पढ़ाई कम, अलगाववादी-आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहा करता था। वहां भी आज भारत का तिरंगा लहरा रहा है। कौमी तराना गाया जा रहा है। देश में बदलाव की बयार है। देश भक्ति जनता में हिलोरे मार रही है।

देश को आजादी ऐसे ही नहीं मिली। जैसी आज घर पर तिरंगा लहराने और तिरंगा यात्रा के लिए दीवानगी दिखी, ऐसी ही दीवानगी की बदौलत ही हमें आजादी मिली। मुफ्त में अंग्रेजों ने आजादी हमें नहीं सौंप दीं। वे खुशी−खुशी देश छोड़कर जाने वाले नहीं थे। इसके लिए पूरे देश ने कुर्बानियां दीं। बहुत बड़ा त्याग किया। बहुत सारे युवा देश की आजादी के लिये हंसते−हंसते फांसी पर झूल गए। आजादी के आंदोलन में किसी एक ने हिस्सेदारी नहीं की। किसी एक का बलिदान इसमें शामिल नहीं है। लाखों करोड़ों लोगों ने इस जंग में भाग लिया। हिंदू हो या मुसलमान या सिख सब में ही आजादी पाने के लिए दीवानगी थी। पढ़े-लिखे ही नहीं, बे−पढ़े भी आजादी के आंदोलन में शामिल थे। किसान थे, तो मजदूर भी। अधिकारी थे तो कर्मचारी भी। कवि−शायर देश की आजादी के तराने लिख रहे थे। गायक इन तरानीं को गाने में मशगूल थे। देश के युवा आजादी के तराने गाते, तिरंगा फहराते, जिंदाबाद और जय हिंद के नारे लगाते खुशी−खुशी फांसी पर चढ़ रहे थे। उन्हें सिर्फ चिंता थी तो इस बात की कि आजादी कैसे मिले, देश पर भारतवासियों का शासन कैसे हो। लाल किले, राष्ट्रपति भवन, भारतीय संसद और सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा कैसे लहराया जाए? देश ने कितनी ही शहादत दी। कितने नौजवान फांसी पर झूल गए। कितने जलियांवाला कांड हुए।  बलिदान का सिलसिला और फांसी पर झूल जाने की दीवानगी तब तक नहीं रुकी, जब तक अंग्रेज भारत से भाग नहीं गये। देश को मिली आजादी किसी एक व्यक्ति की देन नहीं है। एक व्यक्ति के बलिदान का परिणाम नहीं है। बल्कि सबके सामूहिक प्रयास का प्रतिफल है।

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15 अगस्त पर आजादी का पर्व मनाते समय हम बलिदान को याद करते हैं। देश पर शहीद हुए क्रांतिकारियों का स्मरण करते हैं। उन्हें सजदा करते हैं। सिर झुकाते हैं। श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। उनकी दीवानगी की बदौलत, कुरबानी की बदौलत, इस आजादी की लड़ाई के प्रतिफल में हमें आजादी तो मिली। पर एक बहुत बड़ा घाव दे गई। बंटवारे का घाव, देश के सीने पर एक ऐसी लकीर खींच गई, जिसे बार−बार    महसूस किया जा सकता है। मिटाया नहीं जा सकता।

देश की आजादी पाने से ज्यादा, विभाजन में जान गईं। करोड़ों लोगों को अपने घर−जमीन संपदा छोड़कर, जान बचाकर अपने मुल्क से भागना पड़ा। जो घर, संपदा और सामान उन्होंने अपने लिए खून पसीना एक कर एकत्र किया था, जो उनका खुद का वतन था। उसे छोड़कर उन्हें भागना पड़ा। उनका घर, शहर और देश एक झटके में उनके लिए वीरान और बेगाना हो गया। जो जवानी देश के काम आती, देश के विकास में लगती, वह बंटवारे की भेंट चढ़ गई। उन्मादी जुनून ने एक दूसरे के खून का प्यासा कर दिया।

आजादी के 75 साल में हमने बहुत कुछ देखा। देश को फिर से बांटने की कोशिश की गई। देश में प्रांत, जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर उन्माद फैलाए गए। हमारे एक पड़ोसी ने हमारी पींठ में छुरा घोंपा तो अलग हुए छोटे भाई ने बार-बार अपने ही खून को शर्मसार किया। बार-बार हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। देश में उन्माद फैलाने की जद्दोजहद उसकी आज भी जारी है। उसकी देश को बांटने और कमजोर करने की कोशिश लगातार हो रही है।

देश की आजादी के लिए जिस तरह का जोश−खरोश और एकता देश में थी, आज तिरंगा फहराने और तिरंगा यात्रा के लिए जो दीवानगी दिखी, वैसी दीवानगी देश को और मजबूत और अखंड बनाने के लिए होना  जरूरी है। छोटी चूक और लापरवाही देश के विकास के रथ को दलदल में धकेल सकती है। जरूरी है कि यही जोश देश के युवा से लेकर बच्चे और बुजुर्ग में भी हर पल, हर क्षण बना रहना चाहिए। हमारी जद्दोजहद देश को दुनिया का सबसे ताकतवर और मजबूत देश बनाने की रहनी चाहिए। संघर्ष इस बात के लिए हो कि सुई से लेकर हवाई जहाज तक सब हम बनाएं। हम किसी पर निर्भर न हों। इतने ताकतवर बनें कि दुश्मन हमारी ओर आंख उठाकर देखता हुआ भी डरे। 1954 में बनी फिल्म जागृति की का यह गीत आज भी महत्वपूर्ण है− हम लाए हैं तूफानों से कश्ती निकाल के, मेरे देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के। देश को संभालने का काम आज सभी को करना होगा। देश की मातृ शक्ति तो आज जंगी जहाज उड़ा रही है और सीमाओं पर दुश्मन से जंग करने को भी तैयार है। एक बात और देश के विकास की यात्रा में घर में छुपे भेदियों और दुशमनों पर ज्यादा नजर रखनी होगी। हमलावर को उसकी भाषा में इजराइल की तरह उसके घर में घुसकर मारना होगा। दुश्मनों को बताना होगा कि कहीं भी जा छुपो, तुम्हें भारत और भारतवासी माफ नहीं करेंगे।

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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