‘रूद्रम’ उड़ाएगी दुश्मन की रक्षा प्रणाली की धज्जियां, युद्ध के मैदान में बनेगी अजेय योद्धा

दुश्मन के रडार तथा उसकी वायु सुरक्षा प्रणाली की धज्जियां उड़ाने में सक्षम रूद्रम की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसे अपना निशाना खोजने में महारत हासिल है। यह दुश्मनों के रडार को निशाना बनाकर उसे ध्वस्त कर देती है।
एलएसी पर चीन के साथ तनाव के बीच भारत स्वदेशी तकनीकों द्वारा निर्मित मिसाइलों के लगातार सफल परीक्षण कर पूरी दुनिया को अपनी मिसाइल शक्ति का स्पष्ट अहसास करा रहा है। मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत ने हाल ही में एक और ऊंची छलांग लगाई है। खासतौर से भारतीय वायुसेना के लिए डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) द्वारा बनाई गई ‘रूद्रम’ नामक एंटी रेडिएशन मिसाइल का गत 9 अक्तूबर को ओडिशा के बालासोर में इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आइटीआर) में सफल परीक्षण कर डीआरडीओ ने रक्षा क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दिया है। इस मिसाइल को डीआरडीओ के वैज्ञानिकों द्वारा सुखोई एसयू-30एमकेआई फाइटर जेट के जरिये छोड़ा गया और ‘रूद्रम’ अपने निशाने को पूरी तरह से नष्ट करने में सफल रही। यह देश में ही बनी अपनी तरह की नई पीढ़ी की पहली एंटी रेडिएशन मिसाइल है, जिसकी रेंज 100 से 150 किलोमीटर के बीच है।
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जमीन से हवा में मार करने वाली यह पहली ऐसी मिसाइल है, जो दुश्मन के हवाई ठिकानों को पलक झपकते ही ध्वस्त कर सकती है और जिसकी रेंज अलग-अलग परिस्थितियों में बदल सकती है। इस मिसाइल के जरिये दुश्मन के सर्विलांस रडार, ट्रैकिंग और कम्युनिकेशन सिस्टम को आसानी से टारगेट किया जा सकता है। फिलहाल डीआरडीओ द्वारा रूद्रम का परीक्षण सुखोई एसयू-30 के साथ किया गया है लेकिन इसे पूरी तरह विकसित करने के बाद मिराज 2000, जगुआर, एचएएल तेजस तथा एचएएल तेजस मार्क 2 के साथ जोड़ने की भी योजना है।
दुश्मन के रडार तथा उसकी वायु सुरक्षा प्रणाली की धज्जियां उड़ाने में सक्षम रूद्रम की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसे अपना निशाना खोजने में महारत हासिल है। यह दुश्मनों के रडार को निशाना बनाकर उसे ध्वस्त कर देती है, जिसके चलते दुश्मनों के लिए इस मिसाइल का पता लगा पाना असंभव हो जाता है। टारगेट को ढूंढ़कर निशाना बनाने में सक्षम ‘रूद्रम’ में एक रडार डोम है, जिसकी मदद से जमीन पर मौजूद दुश्मन के रडार को ध्वस्त किया जा सकता है। रेडियो सिग्नल तथा रडार के साथ एयरक्राफ्ट में लगे रेडियो भी इसके निशाने पर रहेंगे। यही कारण है कि अनेक विशेषताओं से लैस इस मिसाइल को ‘युद्ध के मैदान का अजेय योद्धा’ माना जा रहा है। भारत में निर्मित पहली एंटी रेडिएशन मिसाइल ‘रूद्रम’ की गति मैक-2 से मैक-3 तक जा सकती है अर्थात् यह मिसाइल ध्वनि की गति से भी दो से तीन गुना तेज गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़कर उसे भेद सकती है। यह किसी भी प्रकार के सिग्नल तथा रेडिएशन को पकड़कर रडार को नष्ट करने में सक्षम है। डी-जी बैंड के बीच ऑपरेट करने वाली इस नई एंटी रेडिएशन मिसाइल की बड़ी विशेषता यह है कि यह 100 किलोमीटर की दूरी से ही यह पता लगा सकती है कि रेडियो फ्रीक्वेंसी कहां से आ रही है।
अब यह भी जान लेते हैं कि एंटी रेडिएशन मिसाइलें आखिर होती क्या हैं? ये ऐसी मिसाइलें होती हैं, जिन्हें दुश्मनों के कम्युनिकेशन सिस्टम को ध्वस्त करने के उद्देश्य से ही बनाया जाता है। इन मिसाइलों में सैंसर्स लगे होते हैं, जिनके जरिये रेडिएशन का स्रोत ढूंढ़ने के पश्चात् उसके पास जाते ही मिसाइल फट जाती है। ये दुश्मन के रडार, जैमर्स और बातचीत के लिए इस्तेमाल होने वाले रेडियो के खिलाफ भी इस्तेमाल हो सकती हैं। इस तरह की मिसाइलों का इस्तेमाल किसी युद्ध के शुरूआती चरण में होता है। इसके अलावा ये मिसाइलें अचानक आने वाली जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के खिलाफ भी छोड़ी जा सकती हैं।
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रूद्रम की लम्बाई करीब साढ़े पांच मीटर और वजन 140 किलोग्राम है और इसमें सॉलिट रॉकेट मोटर लगी है। यह 100 से 250 किलोमीटर की रेंज में किसी भी टारगेट को उड़ा सकती है। यह विमानों में तैनात की जाने वाली पहली ऐसी स्वदेशी मिसाइल है, जिसे किसी भी ऊंचाई से दागा जा सकता है। इस मिसाइल को 500 मीटर की ऊंचाई से लेकर 15 किलोमीटर तक की ऊंचाई से लांच किया जा सकता है और इसकी बेहद तेज रफ्तार इसे युद्ध के मैदान में एक अजेय योद्धा बनाती है। यह 250 किलोमीटर तक की रेंज में हर ऐसी वस्तु को निशाना बना सकती है, जिससे रेडिएशन निकल रहा हो। इसमें अंतिम हमले के लिए आइएनएस-जीपीएस नेविगेशन के साथ प्राइमरी गाइडेंस सिस्टम के तौर पर अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर लक्ष्यों की पहचान और उन्हें वर्गीकृत कर निशाना साधने के लिए उपयोग किए जाने वाले पैसिव होमिंग हेड (पीएचएच) भी मौजूद हैं। ब्रॉडबैंड क्षमता से लैस पीएचएच से मिसाइलों को एमिटर्स में से अपना टारगेट चुनने की विशेषता मिलती है। रूद्रम का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना द्वारा दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम के अलावा उन रडार स्टेशनों को उड़ाने में भी किया जा सकता है, जो डिटेक्शन से बचने के लिए अपने आपको शटडाउन कर लेते हैं। निष्क्रिय होमिंग हेड से लैस रूद्रम रेडिएशन के कई प्रकार के स्रोतों को ट्रैक करने के बाद उन्हें लॉक देती है। ऐसे में मिसाइल के लांच होने के बाद अगर दुश्मन अपने रडार को बंद भी कर देता है, तब भी दुश्मन का रडार रूद्रम के निशाने पर रहेगा। रूद्रम को लांच करने के बाद भी इसे टारगेट के लिए लॉक किया जा सकता है।
रूद्रम को रक्षा शक्ति की दिशा में एक बड़ा कदम इसीलिए माना जा रहा है क्योंकि दुनिया के कई प्रमुख देश अब ऐसे हथियार विकसित करने में जुटे हैं, जिनके जरिये किसी युद्ध के शुरूआती दौर में ही दुश्मन के सिग्नल और रडार को नष्ट किया जा सके और रूद्रम भी इसी पैमाने पर खरी उतरती है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि रूद्रम के जरिये भारतीय वायुसेना के पास इतनी क्षमता आ गई है कि वह दुश्मन के इलाके में सीमा के भीतर घुसकर उसकी हवाई शक्ति को तहस-नहस कर सकती है, साथ ही इस मिसाइल की मदद से भारतीय वायुसेना को बिना किसी रूकावट के अपना मिशन पूरा करने में भी मदद मिलेगी। भारत के लिए इस समय रूद्रम जैसी एंटी रेडिएशन मिसाइलों की इसलिए सख्त जरूरत है क्योंकि पड़ोसी दुश्मन देश अपनी-अपनी सीमाओं पर रडार तथा निगरानी तंत्र को मजबूत करते हुए भारत के लिए लगातार चुनौतियां बढ़ा रहे हैं। ऐसे में रूद्रम जैसी उच्च तकनीक की एंटी रेडिएशन मिसाइलें विकसित करना समय की मांग है और देश के लिए गर्व करने की बात यही है कि हम अब अपने वैज्ञानिकों की प्रतिभा की बदौलत दुश्मन देश के वायु रक्षा ढांचे को तहस-नहस करने में सक्षम होने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामरिक मामलों के लोकप्रिय विश्लेषक तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं। इनकी इसी वर्ष ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ तथा ‘जीव जंतुओं का अनोखा संसार’ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं)
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