लॉकडाउन के बीच भी सकारात्मक रहा ग्रामीण भारत, राष्ट्र निर्माण में देता रहा योगदान

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अंकित सिंह । Jun 27 2020 9:08PM

लॉकडाउन के दौरान जब पूरा देश ठप्प था तब भी ग्रामीण भारत में कृषि गतिविधियां चलती रही। हालांकि देश में कोरोना के मामले बढ़ते रहें और लॉकडाउन भी बढ़ता रहा। जब सरकार को इस बात की समझ हुई कि अगर स्थितियां इसी प्रकार रही तो देश का जन जीवन और अर्थव्यवस्था दोनों चौपट हो जाएगी।

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कई ऐसी खबरें भी है जो राहत प्रदान करने वाली हैं। यह खबरें ग्रामीण भारत की खासियत को दर्शाती हैं। कोरोनावायरस के भारत में दस्तक के बाद जो लॉकडाउन लगाया गया था उससे ऐसा लग रहा था कि अब भारत की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालने में वक्त लगेगा। अब भारत में एक बार फिर गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई अपने चरम पर होगी। कुछ लोग तो यह भी मान बैठे थे कि इस लॉकडाउन के कारण ग्रामीण भारत की स्थिति बद से बदतर हो सकती है। खास करके इस बात को बल तब मिला जब उत्तर भारत के काफी तादात में प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य लौटने लगे। ऐसा लग रहा था कि अब तो जीवन थम सा जाएगा। जो लोग भारी तादाद में कोरोना संकटकाल में अपने गृह राज्य को लौट रहे थे, इस बात की उम्मीद छोड़ चुके थे कि वह दोबारा अपनी जीवन नैया को पार लगाने के लिए कहीं काम करने जाएंगे। जैसे-जैसे वक्त बिता, स्थितियां समझ में आने लगी। वैसे वैसे भारत में भी चीजें बदलने लगी खासकर के ग्रामीण भारत में।

लॉकडाउन के दौरान जब पूरा देश ठप्प था तब भी ग्रामीण भारत में कृषि गतिविधियां चलती रही। हालांकि देश में कोरोना के मामले बढ़ते रहें और लॉकडाउन भी बढ़ता रहा। जब सरकार को इस बात की समझ हुई कि अगर स्थितियां इसी प्रकार रही तो देश का जन जीवन और अर्थव्यवस्था दोनों चौपट हो जाएगी। इसी सोच के तहत देश में लॉकडाउन की स्थिति में कुछ ढील दी जाने की शुरुआत हुई। अब जब देश अनलॉक एक का दिशा में आगे बढ़ रहा है तब ऐसा लग रहा है कि भले ही करोना के मामले बढ़ रहे लेकिन हम भारतवासी अपने कार्य को भी निरंतर बढ़ाने में जुटे हुए हैं। ताकि हमारी आमदनी और अर्थव्यवस्था दोनों ही बरकरार रहे। गांव में रवि की फसल की कटाई जारी रही। सरकार ने फसलों पर एमएसपी भी बढ़ा दी। इसी के साथ-साथ गांव में बनी मिले भी अपने कार्य को निरंतर करती रही। गांव की आमदनी बरकरार रही।

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उदाहरण के तौर पर बिहार के फारबिसगंज के एक गांव में चलते है। बंगाल की जूट मिल बंद हो जाने से भले ही यहां के किसानों को दिक्कतें झेलनी पड़ी हो लेकिन अब ये अपनी आमदनी का नया जरिया ढूंढ चुके है। दरअसल, इन गांवों में धान, मक्का और मखाने की खेती अच्छी तादात में होती है जिन्हें वे बेचते हैं और उन्हें अच्छी कीमत मिल भी जाती है। हालांकि जूट मिल बंद हो जाने से जूट की खेती तो बंद हो गई लेकिन धान का पैदावार बढ़ गया। इसी को देखते हुए गांव में अब छोटी-छोटी धान कुटाई की मिल भी लग गई है। इन मिलों में एफसीआई धानों को भेजता है और यहीं से चावल वापस मंगाता है। इस काम से मिल मालिकों को अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है। इन गांवों में रहने वाले किसान भी अपने धान से चावल बना कर एफसीआई को बेचते है जिससे उनकी आमदनी होती है। एफसीआई भी इन किसानों को इनके फसल की अच्छी कीमत देता है। इस प्रक्रिया के तहत यहां के किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत तो मिलती ही है साथ ही साथ यहां के विकास में भी इसका अहम योगदान हो जाता है। जूट मिल के बंद होने से जो इनके अंदर की जो नकारात्मकता थी वह अब धीरे-धीरे खत्म भी होने लगी है।

दूसरी ओर देखें तो बिहार में अब प्रवासी मजदूरों की भी स्थिति भी सामान्यता की ओर बढ़ रही है। सबसे पहले तो जिन मजदूरों ने दूसरे राज्यों से अपने काम धंधे छोड़कर गृह राज्य लौटने का फैसला लिया था उन्हें एक बार फिर से उनकी कंपनी के द्वारा बुलावा भेजा गया है। इन श्रमिकों के लिए कंपनियां स्पेशल बस भेज रही हैं। इतना ही नहीं पहले की तुलना में इन्हें दोगुना वेतन पर बुलाया जा रहा है। साथ ही साथ इनके परिवार को सिक्योरिटी मनी भी दी जा रही है। उधर, गुजरात सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जिससे अब वहां बसने वाले प्रवासी प्रवासी नहीं रहेंगे बल्कि उनके पास अपना घर हो सकता है। दक्षिण भारत की कंपनियों ने बिहार में चार्टर प्लेन भेजने शुरू कर दिए हैं ताकि अपने मजदूरों को वह दोबारा काम पर बुला सके। भले ही जब भारी तादाद में मजदूर पैदल या किसी अन्य साधन के जरिए अपने गृह राज्य लौट रहे थे तो हम सब ने ऐसा सोचा था कि शायद अब इनकी स्थिति नहीं बदलेगी। अब हमारी नकारात्मकता में एक सकारात्मक पहलू निकल कर सामने आ रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ कंपनियां ही इन्हें बसों या ट्रेन या फिर फ्लाइट के जरिए वापस बुला रही हैं बल्कि अब यह भी अपने काम पर लौटने के इच्छुक हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि पहले की तुलना में अब लोगों में कोरोना का डर कम हो रहा है। यही कारण है कि प्रवासी अब वापस अपने काम की ओर लौटने लगे हैं। गोरखपुर से मुंबई के लिए हर रोज लगभग 3 से 5 ट्रेनें चलती हैं। इन ट्रेनों में आने वाले 15 दिनों के लिए टिकट उपलब्ध नहीं है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह अब अपने काम पर लौटने को लेकर मजदूर सक्रिय हो गए है। 

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भारी तादाद में प्रवासियों के लौटने के बाद राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार भी इन्हें इनके गृह राज्य में ही नए अवसर प्रदान करने के लिए कई कदम उठाने लगी है। इसी के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गरीब कल्याण रोजगार योजना लांच की। योजना के तहत प्रवासी मजदूरों को अपने घर के पास ही काम मिलेगा। यह एक तरह का अभियान है जो 125 दिन तक चलेगा और इसके तहत 116 जिलों में हर जिले में 25000 प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिया जाएगा। उधर, उत्तर प्रदेश की सरकार की ओर से सुबे में वापस लौटे मजदूरों को यहां ही काम दिया जा रहा है। इसी के तहत यूपी सरकार के आत्मनिर्भर यूपी रोजगार अभियान की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआत की। मध्य प्रदेश शासन के द्वारा प्रवासी श्रमिकों के कल्याण एवं विकास के लिए प्रवासी श्रमिक आयोग गठित कर दी गई है। प्रवासी मजदूरों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकारों ने योग्यता के अनुसार इन्हें काम देने की शुरुआत कर दी है। साथ ही साथ मनरेगा के तहत इन्हें पहले की तुलना में ज्यादा दिहाड़ी मिल रहा है जिससे कि अब इनकी दिनचर्या सामान्य होने लगी है। मनरेगा के तहत भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार जबरदस्त तरीके से काम करवा रही है। इस कोरोना संकट के दौरान हम इतना जरूर कह सकते है कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और हमारे काम करने की क्षमता हीं एक बार फिर हमारे देश को नई दिशा और दशा प्रदान करने के लिए आगे बढ़ चुकी है।

- अंकित सिंह

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