महाराष्ट्र के गाँवों में भीषण जल संकट से जूझती जनता को क्या कभी राहत मिल सकेगी?

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हम आपको बता दें कि भीषण गर्मी के बीच महाराष्ट्र के मेलघाट पट्टी के कई गांव पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं जिस वजह से ग्रामीणों को गहरे कुंओं में उतरना पड़ रहा है और एक घड़ा पानी लाने के लिए नंगे पैर पर्वतीय क्षेत्र में लंबा चलना पड़ रहा है।

महाराष्ट्र के कुछ हिस्से इस समय भीषण जल संकट का सामना कर रहे हैं। एक ओर बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे लोग कड़ी धूप में चलकर दूरदराज से पानी लाने को मजबूर हैं तो दूसरी ओर राज्य के विधायक गण मुंबई के एक फाइव स्टार होटल में राज्यसभा चुनावों तक डेरा डाले हुए हैं। जनता पानी के लिए पसीने पसीने हो रही है और विधायक गण एसी की हवा खा रहे हैं। भीषण गर्मी में विधायक गण खरीद फरोख्त का शिकार होने से बचने के लिए मुंबई के फाइव स्टार होटल में जा रहे हैं तो दूसरी ओर जल संकट का सामना कर रहे गांवों के लोग हालात में सुधार होते नहीं देख अपना गांव छोड़कर जा रहे हैं। जल संकट वाले गांवों में रह रहे लोगों के लिए नयी मुश्किल यह भी हो रही है कि कोई अपनी बेटी की शादी उन गांवों में नहीं करना चाहता। हर माता-पिता जानता है कि बेटी को जल संकट वाले गांवों में भेजा तो उसकी जिंदगी रोजाना पानी का इंतजाम करने में ही बीत जायेगी।

हम आपको बता दें कि भीषण गर्मी के बीच महाराष्ट्र के मेलघाट पट्टी के कई गांव पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं जिस वजह से ग्रामीणों को गहरे कुंओं में उतरना पड़ रहा है और एक घड़ा पानी लाने के लिए नंगे पैर पर्वतीय क्षेत्र में लंबा चलना पड़ रहा है। हालांकि स्थानीय प्रशासन पानी के टैंकरों को भेजता है, लेकिन ग्रामीणों की शिकायत है कि आपूर्ति अपर्याप्त है और पानी पीने के लायक नहीं है। धरनी रोड पर खादीमल एक आदिवासी बहुल गांव है जो मेलघाट टाइगर रिजर्व से लगभग 50 किलोमीटर दूर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में स्थित है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, करीब 1,500 की आबादी वाले गांव में 311 घर हैं। गांव में पानी की किल्लत एक चिरस्थायी समस्या है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह नवंबर से शुरू होती है और फरवरी तक गंभीर हो जाती है। लेकिन सरकार ने इस समस्या के स्थायी हल के लिए कुछ नहीं किया। स्थानीय निवासी बताते हैं कि गांव में चार कुएं थे जो बहुत पहले सूख गए और गांव में एक बोरवेल है जो खराब पड़ा है। स्थानीय प्रशासन दिन में दो बार एक टैंकर भेजता है जो गांव में स्थित एक कुएं में पानी को डालता है। लोग बताते हैं कि सिर्फ एक घड़ा पानी लाने के लिए, वह गहरे कुएं में नीचे उतरते हैं और फिर सिर पर पानी के घड़े को रखकर संतुलित होते हुए ऊपर चढ़ते हैं। पानी के लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है।

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इस गांव के लोग एक झरने से पानी लाने के लिए इस भीषण गर्मी में तीन किलोमीटर पैदल चल कर जाते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि मवेशियों को भी कई बार प्यासा रहना पड़ता है। गांव वासी बताते हैं कि सरपंच उनकी परेशानी सुनने के लिए मुश्किल से ही आते हैं। ग्रामीण पानी की कमी की समस्या के समाधान के लिए पास में बांध बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है।

दूसरी ओर, नासिक के पिंपलपाड़ा गांव के लोग भी पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। उन्हें जंगल से पानी लाने के लिए रोजाना 4-5 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर होना पड़ता है। बताया जाता है कि गांव का कुआं सूख गया है, जिससे ग्रामीणों को जंगल से गंदा पानी लाने को मजबूर होना पड़ रहा है। ग्रामीण पानी और सड़क की सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि हमारे गांव में कुआं सूख गया है। हमारे गांव में सड़क भी नहीं है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि हमें पानी और सड़क की सुविधा प्रदान करें।

नासिक के कुछ और गांवों का भी यही सूरत ए हाल है। कई गांव पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। कई जगह जल स्तर कुएं के आधार से नीचे गिर गया है। ग्रामीण गहरे कुएं में उतरकर गंदा पानी लाने को मजबूर हैं। परिवार के लिए पानी लाने के लिए महिलाएं 3 किलोमीटर लंबी-लंबी पैदल यात्रा करती हैं।

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नासिक के हीरीपाड़ा गांव के हालात भी ऐसे ही हैं। यहां के लोग भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पानी की किल्लत के बीच लोग कुएं से पानी लाते हैं। पानी की भीषण किल्लत के कारण कई लोग गांव छोड़कर चले गए हैं। एक स्थानीय निवासी ने बताया कि "बाहर के लोग नहीं चाहते कि यहां पानी की समस्या के कारण हमारे गांव में उनके बच्चों की शादी हो और कई लोग इस समस्या के कारण गांव छोड़कर चले गए हैं।" 

बहरहाल, जल संकट महाराष्ट्र की मुख्य समस्याओं में से एक है। सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाये जाते। यही नहीं उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई नहीं की जाती जो गंदे पानी की आपूर्ति गांवों में करवाते हैं। जनता ने भी शायद इसे अपनी नियति मान लिया है इसीलिए सरकार से जवाब मांगने की बजाय जल के लिए दर-दर भटकने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है।

-नीरज कुमार दुबे

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