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किसान उदय योजना: सरकारी पंप सेट से सिंचाई करना होगा आसान
- कमलेश पांडेय
- दिसंबर 14, 2020 17:27
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सरकार ‘किसान उदय योजना’ के जरिए किसानों के सिंचाई पम्प सेट को मुफ्त में 5 और 7.5 बीएचपी क्षमता के एनर्जी एफिशिएंट पम्प से बदल रही है। इस एनर्जी एफिशिएंट पम्प से बिजली के बिलों में 35% तक की कमी आएगी।
किसान उदय योजना उत्तरप्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसके तहत पात्र किसानों को सिंचाई हेतु ऐसे आधुनिक पंप प्रदान किये जा रहे हैं जिनमें बिजली खपत बहुत कम होती है। साथ ही इन पम्पों को सोलर ऊर्जा के सहारे भी चलाया जा सकेगा। बता दें कि समकालीन परिवेश में किसानों को खेती-बाड़ी की हर ज़रूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। वैसे भी हमारे देश को कृषि प्रधान देश माना जाता है, जिसके हर एक राज्य में किसी न किसी प्रकार की खेती-बाड़ी होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश को कृषि प्रधान राज्य कहा जाता है, जिसकी सबसे अधिक आबादी गांव में रहती है और जिनका मुख्य कार्य खेती करना है।
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यही वजह है कि यहां की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए कई सरकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। इन्हीं में से एक किसान उदय योजना है, जो उन किसानों को बहुत राहत देगी, जिन्होंने अभी तक पंपों की सहायता से सिंचाई का लाभ नहीं उठाया है। इसके अलावा, उन किसानों को भी राहत मिलेगी, जिनकी बिजली खपत काफी होती है। क्योंकि आधुनिक सोलर पंप सौर ऊर्जा के साथ साथ बिजली से भी चलेंगे।
लिहाजा, सबकी जेहन में एक ही सवाल उपज रहा है कि आखिर में क्या है किसान उदय योजना और आप कैसे उठा सकते हैं किसान उदय योजना का लाभ? इसलिए आपको स्पष्ट कर दूं कि यूपी किसान उदय योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की नियमित आय अर्थात आमदनी बढ़ाना है और साथ ही साथ आवश्यक कृषि उपकरणों के बारे में जानकारी भी देना है। बताया जाता है कि राज्य सरकार का लक्ष्य है कि साल 2022 तक किसानों को लगभग 10 लाख सिंचाई पंप बांटे जाएं। क्योंकि इन पंपों के द्वारा किसान बहुत आसानी से खेत की सिंचाई कर सकता है। खास बात है कि इन पंपों में बिजली की कम से कम खपत होगी, क्योंकि इनको इस तरह से तैयार किया गया है कि यह कम बिजली में ज़्यादा फ़ायदा दे पाएं।
बता दें कि किसान उदय योजना के तहत वितरित किये जाने वाले सोलर पंप की कुछ खास विशेषताएं हैं। अमूमन, इस योजना के तहत राज्य सरकार दो तरह के ऊर्जा कुशल पंप सेट बांटेगी। यह पंप सेट सरकार द्वारा दो हॉर्स पावर में बांटे जाएंगे। इसमें एक पंप 5 हॉर्स पावर और दूसरा पंप 7.5 हॉर्स पावर का रहेगा। किसानों को पंप के साथ स्मार्ट किट भी दी जाएगी, जिनके द्वारा किसान अपने मोबाइल फोन से ही अपने पंप को चला और बंद कर सकते हैं। इन पंप के रखरखाव का खर्च योगी सरकार देगी, जिसमें कम बिजली की खपत होगी।
इस योजना को लेकर किसानों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिरकार किसको मिलेगा इसका लाभ। इसके लिए सरकार ने कुछ पात्रताएँ तय की हैं, जिसके तहत यह निर्धारित किया गया है कि किसान उत्तर प्रदेश का निवासी होना चाहिए। वह खेती-बाड़ी भी करता हो। यदि किसान के पास पहले से ही पंप है, तो वह इस योजना का लाभ नहीं ले पाएगा। वहीं, सरकार ने कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ भी निर्धारित किये हैं, जिसके अंतर्गत ज़मीन के कागजात, आधार कार्ड की कॉपी, राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र और फसल का विवरण महत्वपूर्ण है।
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जहां तक किसान उदय योजना के रजिस्ट्रेशन का सवाल है तो इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसानों को राज्य की कृषि विभाग की वेबसाइट http://upagriculture.com/Default_ENG.aspx को खोलना होगा। उसके बाद यूपी किसान उदय योजना 2020 के लिए पंजीकरण के लिंक पर क्लिक करना होगा। जिसके बाद आपके सामने आवेदन फार्म खुलेगा। इस फार्म में आपको अपनी सारी जानकारी भरनी होगी। ध्यान रहे कि इस जानकारी में आपको अपना नाम, अपने गांव का नाम, अपने ब्लॉक या तहसील का नाम भी भरना होगा। फिर पूरा आवेदन फार्म भरने के बाद आपको सबमिट बटन पर क्लिक करना होगा। इस तरह आप ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के बाद आपको जल्द ही विभाग द्वारा संपर्क किया जाएगा और आपकी पात्रताएँ सत्यापित होने के पश्चात आपको इस योजना का लाभ मिलना सुनिश्चित हो जाएगा।
सरकार ‘किसान उदय योजना’ के जरिए किसानों के सिंचाई पम्प सेट को मुफ्त में 5 और 7.5 बीएचपी क्षमता के एनर्जी एफिशिएंट पम्प से बदल रही है। इस एनर्जी एफिशिएंट पम्प से बिजली के बिलों में 35% तक की कमी आएगी। वहीं, सरकार 2022 तक प्रदेश में 10 लाख किसानों को मुफ्त में एनर्जी एफिशिएंट पम्प उपलब्ध कराएगी। इसके अलावा, अगले 5 साल तक इन पम्पों के रखरखाव का खर्च भी विद्युत वितरण कंपनियां उठाएंगी।
आपको बता दें यूपी सरकार ने किसानों के लिए बागपत में इस योजना का आरंभ किया था। तब उद्घाटन कर्ता ने कहा कि सरकार ऊर्जा बचाने के लिए किसानों को ऊर्जा कुशल पंप प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि इस योजना को 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि कम लागत में किसान भाइयों को पंप दिए जाएंगे। इससे जहां ऊर्जा की बचत होगी, वहीं खेती-बाड़ी में भी बढ़ावा होगा।
जहां तक किसान उदय योजना के कार्यान्वयन का सवाल है तो यह जानना बेहद जरूरी है कि यूपी सरकार द्वारा इस योजना को पूर्व प्रधानमंत्री, चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन 23 दिसम्बर को वर्ष 2017 को लॉन्च किया गया था। इसके बाद, राज्य सरकार ने 2022 तक 10 लाख पंपों का वितरण करने के लिए विभिन्न चरणों में इस योजना को लागू करने की पहल की थी। वहीं, पहले चरण में 6 जिलों को कवर किया गया है जिसमें गाजीपुर, गोरखपुर, वाराणसी, अम्बेडकरनगर, मथुरा व अलीगढ़ प्रमुख हैं। कमोबेश यह योजना आम जनता को भी लाभ प्रदान करेगी, क्योंकि ऊर्जा को संरक्षित किया जाएगा।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
डिजिटल मीडिया पर सरकार की नई गाइडलाइंस को आसान भाषा में समझें
- मिथिलेश कुमार सिंह
- मार्च 4, 2021 17:35
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यहाँ तक कि सरकार से बातचीत के दौरान ही ट्विटर द्वारा इस पर एक ब्लॉग लिख दिया गया, जिसके बाद सरकार नाराज नजर आई, और उसकी नाराजगी तब खुलकर झलकी, जब कई सरकारी अकाउंट और बड़े लीडरों के अकाउंट कू ऐप पर नज़र आने लगे।
काफी समय तक विचार-विमर्श करने के बाद भारत सरकार ने आख़िरकार डिजिटल मीडिया को लेकर एक गाइडलाइन जारी कर दी है। बहुत समय से इस पर लोग सवाल उठा रहे थे कि जिस प्रकार से फिल्मों का कंटेंट देखने और उसकी गाइडलाइंस के लिए सेंसर बोर्ड है, उसी प्रकार इंटरनेट पर कंटेंट को भी फिल्टर और कटगराईज करने की आवश्यकता है।
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हाल ही में दो बड़ी घटनाएं हुईं और इन्हीं घटनाओं के मद्देनजर सरकार एक्शन में नजर आई है।
पहली घटना देश के बाहर से थी और अमेरिका में जिस प्रकार कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थक प्रदर्शनकारी चढ़ गए थे, उसे वैश्विक स्तर पर 'लोकतंत्र का काला धब्बा' माना गया, परंतु असली बात यह है कि तमाम बड़ी अमेरिकी कंपनियां जिनमें ट्विटर है, फेसबुक है, यूट्यूब है, वह सक्रिय भूमिका में इस तरह के कंटेंट को फिल्टर करती नजर आईं।
यहां तक कि खुद तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तक का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया।
दूसरी घटना थी भारत में किसान आंदोलन के दौरान, लाल किले पर कुछ अराजक तत्वों के चढ़ने और अपना धार्मिक झंडा लहराने की। इसे लेकर भी बड़ी आलोचना हुई, किंतु सरकार के अनुसार जब उसने ट्विटर और कुछ अन्य प्लेटफार्म को इस घटना के मद्देनजर सपोर्ट करने वाले पोस्ट्स की निगरानी करने और उनके अकाउंट पर कार्रवाई करने के लिए कहा, तो यह कंपनियां टालमटोल करती नजर आईं।
यहाँ तक कि सरकार से बातचीत के दौरान ही ट्विटर द्वारा इस पर एक ब्लॉग लिख दिया गया, जिसके बाद सरकार नाराज नजर आई, और उसकी नाराजगी तब खुलकर झलकी, जब कई सरकारी अकाउंट और बड़े लीडरों के अकाउंट कू ऐप पर नज़र आने लगे।
बहरहाल, अब नई गाइडलाइंस आ गई हैं और नई गाइडलाइंस के साथ संभवतः इन्हीं चीजों को साधने की कोशिश की जा रही है।
हाल-फिलहाल सरकार ने बड़ी सावधानी के साथ कदम बढ़ाया है, जिससे यह मैसेज ना जाए कि सरकार इंटरनेट पर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर और विदेशी कंपनियों पर अंकुश रखना चाहती है। अपने वक्तव्य में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बार-बार यह कहा है कि सोशल मीडिया का सरकार वेलकम करती है, किंतु उनका नियमन जरूरी है, खासकर तब, जब इससे देश को खतरा हो।
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प्रश्न उठता है कि इंटरनेट कोई आज से तो चल नहीं रहा है!
लगभग 3 दशक से अधिक समय हो गया है और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी 2 दशक से पूरी तरह से एक्टिव हैं, फिर आज तक इस के नियमन के प्रयास क्यों नहीं हुए?
अगर आप इसकी तह में जाएंगे, तो आपको पता चलेगा कि इसका नियमन बेहद कठिन है।
कंटेंट को देखने, कंटेंट को फिल्टर करने, उसे कटगराईज करने और उसे आगे बढ़ाने या नहीं बढ़ाने का निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल होने वाली है, और इसी को लेकर हालिया गाइडलाइन्स पर इंडस्ट्री के रोनित राय ने भी सवाल उठाया है।
चूंकि फिल्म इंडस्ट्री का सेंसर बोर्ड हर वक्त ही विवादित रहा है।
किस सीन को काटना है, किसको नहीं काटना है, इसे लेकर हमेशा ही सवाल उठे हैं और क्रिएटिव इंडस्ट्री में इस तरह के सवाल उठना लाजमी भी हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब ओटीटी के मुकाबले, नंबर्स में चंद फिल्मों को लेकर कभी एक आम राय नहीं बन सकी, तो इंटरनेट का असीमित कंटेंट, जिसमें तमाम विदेशी कंटेंट भी शामिल हैं, उसे लेकर किस प्रकार फिल्ट्रेशन होगी?
हालांकि यह प्रक्रिया की शुरुआत भर है और सरकार को इस बात को लेकर कहीं ना कहीं बधाई अवश्य ही देनी चाहिए कि सावधानी से ही सही, इसकी शुरुआत तो उसने की, पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह किसी पतले तार पर सर्कस दिखाने के समान है।
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नियमन के चक्कर में कहीं हम क्रिएटिविटी का गला ही न घोंट दें!
नियमन के चक्कर में कहीं हम इन ओपन स्थानों / संस्थानों पर इतना अंकुश न लगा दें कि निवेश, टेक्नोलॉजी और बड़ी इनोवेटिव कंपनियां ही हमारे देश में आने से कतराने लगें।
हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम न्यूज पोर्टल, तमाम यूट्यूब वीडियो चैनल सरकार के खिलाफ अपनी बातें करते हैं और सरकार कहीं विरोध को दबाने के लिए हालिया नियमों का सहारा न लेने लगे।
हम सभी जानते ही हैं कि ट्रेडिशनल मीडिया पर सरकार का घोषित- अघोषित, किस स्तर तक का दबाव रहता है।
अब जब सरकार डिजिटल मीडिया के लिए नियम ला रही है और कानून बनाने की बात हो रही है, तो अपने विरोध में सक्रिय किसी यूट्यूब चैनल या सोशल मीडिया अकाउंट को सरकार बंद करने के लिए ना कहने लगे। उसके अधिकारी हालिया नियमों और आने वाले डिजिटल मीडिया सम्बंधित कानून का दुरुपयोग ना करने लगें, इसका भी हमें खास ध्यान रखना होगा।
हालांकि अभी बहुत बारीकी से बात कही गई है, किंतु भविष्य को लेकर हमें सजग रहना ही होगा।
- मिथिलेश कुमार सिंह
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- जे. पी. शुक्ला
- मार्च 1, 2021 16:54
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कृषि न केवल देश की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को ही पूरा करती है, बल्कि कृषि-उद्योग को कच्चा माल भी प्रदान करती है, जिससे निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा भी अर्जित होती है और रोजगार भी पैदा होते हैं।
सरकार ने किसानों को उनकी उपज की बिक्री पर प्रतिबंधों से मुक्त करने और व्यापारियों के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए कृषि सुधारों की शुरुआत की है। इसने किसानों को निर्यातकों और खुदरा विक्रेताओं जैसे बड़े खरीदारों के साथ सौदे करने की अनुमति देकर निजी पूंजी के लिए भी खिड़की खोल दी है। इसके द्वारा इस क्षेत्र को उत्प्रेरित करने, आवश्यक निजी निवेश लाने और ग्रामीण आय को बढ़ावा देने की उम्मीद की जा रही है।
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किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 का उद्देश्य
- इस अधिनियम का उद्देश्य एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है, जहां किसान और व्यापारी को किसान की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित विकल्प की स्वतंत्रता होती है, जो प्रतिस्पर्धी व्यापारिक चैनलों के माध्यम से पारिश्रमिक कीमतों की सुविधा देता है।
- किसान की उपज को राज्य के अंदर और राज्य के बाहर और विभिन्न राज्यों के कृषि उपज मंडी विधानों के तहत अधिसूचित बाजारों के परिसरों या डीम्ड बाजारों के बाहर कुशल, पारदर्शी और बाधा रहित व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देना है।
- इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए और आकस्मिक मामलों के लिए एक सुविधाजनक ढांचा प्रदान करना है।
कानून की मूलभूत विशेषताएं इस प्रकार हैं:
किसान की उपज की बिक्री के लिए स्वतंत्रता
बिचौलियों को खत्म करते हुए, यह कानून किसानों को थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, अंतिम-उपयोगकर्ताओं, मूल्य-वर्धक, निर्माताओं, निर्यातकों, आदि (जिनके पास स्थायी खाता संख्या (पैन) या सरकार द्वारा अधिसूचित दस्तावेज है) अपनी उपज (कच्चे कपास और पशुओं के चारे के अलावा पशुधन, पोल्ट्री, और मानव उपभोग के लिए डेरी प्रोडक्ट्स) स्वतंत्र रूप से कृषि उपज बाजार समिति (APMC) के विकल्प के रूप में बेचने का अधिकार देता है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रतिस्पर्धी कीमतों को लाता है।
न तो पंजीकरण और न ही शुल्क
किसानों को व्यापार क्षेत्र में अपनी उपज बेचने के लिए कहीं भी पंजीकरण करने की आवश्यकता नहीं है। और कोई कमीशन, बाजार शुल्क या उपकर या लेवी, किसी भी राज्य के कानून के तहत किसी भी किसान या व्यापारी से, यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और लेन-देन प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने पर भी कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके अलावा, किसानों को फसल के बाद के नुकसान को कम करने के साथ, जिससे उनकी परिवहन लागत कम हो, अपनी उपज को दूर के बाजारों में नहीं ले जाना होगा।
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ई-प्लेटफ़ॉर्म पर फेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और इंटरनेट, जिसमें 'उचित व्यापार प्रथाओं' के दिशानिर्देशों का अनुपालन होता है (जैसे कि व्यापार का तरीका, शुल्क, तकनीकी पैरामीटर, रसद व्यवस्था, गुणवत्ता मूल्यांकन, समय पर भुगतान, आदि) आत्मविश्वास पैदा करता है और समय की बचत के साथ एक सहज पारदर्शी व्यापार सुनिश्चित करता है। सार्वजनिक हित में, सरकार लेन-देन और नियमों के तौर-तरीकों वाले व्यापारियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण की प्रणाली भी निर्धारित कर सकती है।
भुगतान
किसानों के साथ लेन-देन करने वाले व्यापारियों को, यदि प्रक्रियात्मक रूप से आवश्यक हो, उसी दिन या अधिकतम तीन कार्य दिवसों के भीतर भुगतान करने की आवश्यकता होती है। केंद्र सरकार किसान हित में 'मूल्य सूचना और बाजार प्रसार प्रणाली' विकसित करने के अलावा भुगतान की प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकती है।
समयबद्ध विवाद निपटान
किसान और व्यापारी, उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तत्वावधान में एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में कॉंसिलिएशन बोर्ड (जिसमें दोनों पक्षों के समान प्रतिनिधि हों) के माध्यम से 30 दिनों के भीतर अपने विवादों का निपटारा कर सकते हैं। यदि बोर्ड द्वारा 30 दिनों के बाद विवाद अनसुलझा रहता है तो एसडीएम आवेदन प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर उसका निपटारा करेगा। पीड़ित पक्ष को 30 दिनों में निपटान के लिए कलेक्टर / अपर कलेक्टर से अपील करने का अधिकार रहता है।
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जुर्माना
कोई भी व्यक्ति, जो किसान के साथ ई-प्लेटफॉर्म पर व्यापार कर रहा है, जो कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, उसे दंड के रूप में, जो पचास हजार रुपये से कम नहीं होगा, भुगतान करना होगा, जो दस लाख रुपये तक भी बढ़ सकता है। इस प्रकार किसान का हित सुरक्षित है।
कृषि न केवल देश की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को ही पूरा करती है, बल्कि कृषि-उद्योग को कच्चा माल भी प्रदान करती है, जिससे निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा भी अर्जित होती है और रोजगार भी पैदा होते हैं।
इस तरह किसानों को बाजारों से जोड़ने वाला यह कानून किसी भी तरह से एपीएमसी या एमएसपी खरीद को अस्थिर नहीं करता है; मौजूदा प्रणाली बिना किसी बदलाव के पहले की तरह ही काम करती रहेगी।
- जे. पी. शुक्ला
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- जे. पी. शुक्ला
- फरवरी 26, 2021 17:26
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यह अधिनियम मोटर वाहनों के चालकों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, यातायात पर नियंत्रण, मोटर वाहनों के बीमा और मोटर वाहनों से जुडी दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजे के लिए क्लेम ट्रिब्यूनल की स्थापना के लिए प्रावधान करता है।
मृत्यु के मामले में हर्जाने का दावा करने के अधिकार को आम कानून के तहत वर्ष 1846 की शुरुआत में मान्यता मिली थी। आगे कानून विकसित हुआ और भारत में घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 लागू हुआ। इसके बाद मोटर वाहन अधिनियम, 1939 को विशेष रूप से मोटर वाहन से होने वाली दुर्घटनाओं से निपटने के लिए लागू किया गया था। इसके बाद, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 को मोटर वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं से संबंधित कानून को मजबूत करने और संशोधित करने के लिए लागू किया गया था।
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मोटर वाहन अधिनियम का उद्देश्य
यह अधिनियम मोटर वाहनों के चालकों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, यातायात पर नियंत्रण, मोटर वाहनों के बीमा और मोटर वाहनों से जुडी दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजे के लिए क्लेम ट्रिब्यूनल की स्थापना के लिए प्रावधान करता है। सड़क दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु या शारीरिक चोट से संबंधित मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को 3 महीने के भीतर क्लेम ट्रिब्यूनल को आवश्यक प्रारूप में (धारा 159) रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है।
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 को निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अधिनियमित किया गया है:
- देश में वाणिज्यिक वाहनों और व्यक्तिगत वाहनों दोनों की तेजी से बढ़ती संख्या का ध्यान रखना
- सड़क सुरक्षा मानकों और प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए खतरनाक और विस्फोटक पदार्थों के परिवहन के लिए मानक
- यातायात अपराधियों पर नज़र रखने के प्रभावी तरीकों की आवश्यकता
- ड्राइविंग लाइसेंस प्रदान करने और इसकी वैधता की अवधि से संबंधित कड़ी प्रक्रियाएं
- सामान्य बीमा निगम द्वारा सोलाटियम योजना
- "नो फॉल्ट लायबिलिटी" के मामलों में त्वरित मुआवजे के लिए और “हिट एंड रन” मोटर दुर्घटनाओं के लिए प्रावधान
- मोटर दुर्घटनाओं के पीड़ितों को बीमाकर्ता द्वारा मुआवजे के वास्तविक भुगतान का प्रावधान चाहे किसी भी तरह की व्हीकल हो
- बिना लंबी प्रक्रिया के सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा प्रदान करना
- यातायात अपराधियों के लिए दंड को बढ़ाना
- हिट एंड रन मामलों के पीड़ितों के मुआवजे की राशि में वृद्धि
- सड़क दुर्घटना पीड़ितों द्वारा मुआवजे के लिए आवेदन भरने के लिए समय सीमा को हटाना
- कुछ मामले में अपराधों की सजा को सख्त बनाना
- सड़क दुर्घटना पीड़ितों को उम्र / आय के आधार पर मुआवजे के भुगतान के लिए फॉर्मूला बनाना, जो अधिक उदार और तर्कसंगत हो
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मुआवजे के अनुदान के लिए आवेदन कैसे करें?
क्षतिपूर्ति के लिए आवेदन, मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत 10 रुपये के कोर्ट-शुल्क टिकटों के रूप में किया जाता है।
मुआवजे के अनुदान की मांग करने वाले क्लेमेंट के आवेदन के लिए निम्नलिखित विवरण दिए जाने चाहिए:
1. घायल / मृत व्यक्ति का नाम और पिता का नाम (विवाहित महिला और विधवा के मामले में पति का नाम)
2. घायल / मृत व्यक्ति का पूरा पता
3. घायल / मृत व्यक्ति की आयु और उसका व्यवसाय
4. बीमाधारक / मृतकों के एम्प्लायर का नाम पता, यदि कोई हो
5. घायल / मृत व्यक्ति की मासिक आय
6. वह व्यक्ति जिसके मुआवजे का दावा किया गया हो, वह आयकर का भुगतान करता है या नहीं
7. दुर्घटना की जगह, तारीख और समय
8. उस पुलिस स्टेशन का नाम और पता जिसके अधिकार क्षेत्र में दुर्घटना हुई या पंजीकृत किया गया था
सीमा अवधि
क्षतिपूर्ति के लिए कोई भी आवेदन तब तक अटेंड नहीं किया जाएगा जब तक कि वह दुर्घटना की घटना के छह महीने के भीतर नहीं किया जाता है।
मुआवजे के लिए आवेदन कहाँ दायर करें?
- उस क्लेम ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में जिसमें दुर्घटना हुई
- क्लेम ट्रिब्यूनल के स्थानीय सीमा के भीतर जिसके अधिकार क्षेत्र में दावेदार निवास करता है या व्यवसाय करता है
- जिनके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमा के भीतर प्रतिवादी रहता है
मोटर वाहन अधिनियम के तहत दंडात्मक प्रावधान
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दंडात्मक प्रावधान होते हैं, जिसमें उल्लंघन करने वालों पर सजा या जुर्माना या दोनों लगाया जाता है। यहां तक कि आपराधिक कानून भी होते हैं, जब वाहन चालक की लापरवाही से कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है, जिससे पीड़ित की मौत हो जाती है।
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मोटर वाहन अधिनियम जनता के लिए विभिन्न नियम और विनियम प्रदान करता है और ऑटोमोबाइल उद्योग में प्रगति के कारण हमारे समाज में इसका व्यापक महत्व भी है। यदि अधिनियम के किसी भी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो अपराधी को गंभीर दंड भी दिया जाता है।
मृत्यु / स्थायी विकलांगता के मामले में देय एकमुश्त मुआवजे का भुगतान
मोटर दुर्घटना का शिकार या उसके कानूनी उत्तराधिकारी, निम्नलिखित राशियों के एकमुश्त मुआवजे का दावा कर सकते हैं (धारा 164):
(i) मृत्यु के मामले में रु 5 लाख
(ii) गंभीर चोट के मामले में रु 2.5 लाख
इस अधिनियम में हिट एंड रन मोटर दुर्घटना के मामले में मृत्यु के मामले में रु. 2 लाख और गंभीर चोट के मामले में रु 50,000 के मुआवजे की निश्चित राशि के भुगतान का प्रावधान है।
मुआवजे की राशि मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच उनकी निकटता के आधार पर वितरित की जाती है। यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अदालत द्वारा किया जाता है।
- जे. पी. शुक्ला
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