एसडीजी क्या है? यह कब तक पूरा किया जाना है? इसके अंतर्गत राज्यों की कैसे तय होती है रैंकिंग?

SDG

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) द्वारा सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट-2021 प्रकाशित किया गया है। जो एसडीजी के कार्यान्वयन पर कोविड-19 के प्रभावों पर प्रकाश डालती है। साथ ही, उन क्षेत्रों की भी पहचान करती है जिन्हें तत्काल और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता होती है।

सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) एक वैश्विक पहल है, जिसमें सम्बन्धित राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति पर प्रदर्शन का आकलन किया जाता है। दरअसल, सतत विकास का यह संकल्प यूएन में लिया गया था, जिसको हर हाल में साल 2030 तक हासिल करना है। देखा जाए तो यह मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (2000-2015) का ही परिवर्तित रूप है।

भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने सतत विकास के लक्ष्यों पर अपनी तीसरी रिपोर्ट 2020-21 जारी की थी, जिसमें में केरल टॉप स्थान पर रहा, जबकि बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। बताते चलें कि संयुक्त राष्ट्र के विजन के अनुरूप नीति आयोग एसडीजी इंडिया इंडेक्स में राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में प्रगति को मापता है और इसी के आधार पर उनकी रैंकिंग करता है।

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#  जानिए, ये रिपोर्ट क्या होती है और क्यों जारी की जाती है? 

इस वर्ष भी संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) द्वारा सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट-2021 प्रकाशित किया गया है। जो एसडीजी के कार्यान्वयन पर कोविड-19 के प्रभावों पर प्रकाश डालती है। साथ ही, उन क्षेत्रों की भी पहचान करती है जिन्हें तत्काल और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता होती है। बता दें कि इस रिपोर्ट को सतत विकास पर उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) के 2021 सत्र के पहले दिन जारी किया गया था।

उल्लेखनीय है कि वैश्विक एसडीजी संकेतक डेटाबेस में डेटा और अनुमानों का उपयोग करके संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) द्वारा सालाना रिपोर्ट तैयार की जाती है। जिसमें आधिकारिक एसडीजी संकेतकों पर वैश्विक, क्षेत्रीय और विभिन्न देशों के डेटा और मेटाडेटा शामिल किये जाते हैं। यह डेटाबेस प्रत्येक एसडीजी संकेतक के लिए संरक्षक से जानकारी का उपयोग करता है, और निर्दिष्ट भी करता है कि क्या राष्ट्रीय डेटा समायोजित, अनुमानित, मॉडलिंग या वैश्विक निगरानी का परिणाम है।

दरअसल, यह रिपोर्ट ही इंगित करती है कि एसडीजी पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय डेटा की उपलब्धता में प्रगति हुई है। आपको पता होना चाहिए कि वैश्विक एसडीजी डेटाबेस में शामिल संकेतकों की संख्या 2016 में 115 से बढ़कर 2019 में लगभग 160 और 2021 में 211 हो गई है। इन विभिन्न संकेतकों की संख्या में इस वृद्धि के बावजूद, रिपोर्ट दुनिया भर में वैश्विक महामारी बाधित डेटा संचालन, जैसे जनसंख्या जनगणना, को इंगित करती है। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अत्यधिक गरीबी 20 से अधिक वर्षों में पहली बार बढ़ी है। कोविड-19 ने 2020 से 2021 के मध्य तक लगभग 119 से 124 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है। साथ ही लगभग 101 मिलियन बच्चे न्यूनतम पठन दक्षता स्तर से नीचे गिर गए हैं।

# ये हैं सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट-2021 के प्रमुख निष्कर्ष

सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट-2021 के अनुसार, एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय डेटा की उपलब्धता में प्रगति हुई है। वैश्विक एसडीजी डेटाबेस में शामिल संकेतकों की संख्या 2016 में 115 से बढ़कर 2021 में 211 हो गई है। हालांकि, कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में जनसंख्या जनगणना जैसे डेटा संचालन को बाधित कर दिया है। 

एसडीजी 1 : 2030 में वैश्विक गरीबी दर 7% होने का अनुमान है, इसके साथ गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य पाना कठिन होगा। 

एसडीजी 2: 5 साल से कम उम्र के 22% बच्चे अविकसित हैं, 7% वेस्टिंग से पीड़ित हैं, जबकि 5.7% अधिक वजन वाले हैं। 

एसडीजी 3: कोविड-19 ने स्वास्थ्य में प्रगति को रोक दिया है। इसने जीवन प्रत्याशा को कम कर दिया है। 

एसडीजी 4: ग्रेड 1-8 में 9% बच्चे 2020 में न्यूनतम पढ़ने की दक्षता के स्तर से नीचे आ गए हैं। 

एसडीजी 5 : 6% राष्ट्रीय सांसद महिलाएं हैं, 36.6% स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि हैं जबकि 28.2% प्रबंधकीय पदों पर हैं।

एसडीजी 6: 2 अरब लोगों के पास सुरक्षित पेयजल तक पहुंच नहीं है और 6 अरब लोग सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता से वंचित हैं। 

एसडीजी 7: 2.6 अरब लोग खतरनाक और अक्षम खाना पकाने की प्रणाली की चपेट में हैं। 

एसडीजी 8: कोविड-19 के कारण 255 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों का नुकसान हुआ है।

एसडीजी 9: 2020 में आर्थिक सुधार के लिए मध्यम और उच्च तकनीक वाले उत्पादों के निर्माण ने योगदान दिया।

एसडीजी 10: 2020 में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों में से 311शरणार्थी हैं। 

एसडीजी 11: दुनिया की आधी शहरी आबादी की सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच है।

एसडीजी 12: 2000 और 2017 के बीच वैश्विक सामग्री पदचिह्न (ग्लोबल मटेरियल फुटप्रिंट) 70% बढ़ गया है। 

एसडीजी 13: 2020 में वैश्विक औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस था। 

एसडीजी 14: डेड जोन 2008 में 400 से बढ़कर 2019 में 700 हो गए हैं। 

एसडीजी 15: 2000-2020 के दौरान 10 करोड़ हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए हैं। 

एसडीजी 16: बाल श्रम 2020 में बढ़कर 160 मिलियन हो गया है। 

एसडीजी 17: लगभग दुनिया की आधी आबादी अभी भी डिजिटल जागरूकता व शिक्षा से दूर है।

# एसडीजी रिपोर्ट 2020-21: केरल टॉप, बिहार फिसड्डी 

सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) की रिपोर्ट में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति पर प्रदर्शन का आकलन किया जाता है। इस बार की रिपोर्ट में केरल टॉप स्थान पर रहा है, जबकि बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। वहीं, झारखंड की स्थिति भी अच्छी नहीं है, फिर भी वह बिहार से ऊपर है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने दिल्ली में इस रिपोर्ट को लॉन्च करते हुए कहा था कि एसडीजी इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड के माध्यम से एसडीजी की निगरानी के हमारे प्रयास को दुनिया में पहचान मिल रही है और इस डेटा का उपयोग विकास के प्रोजेक्ट पर किया जा रहा है।

# केरल टॉप, दूसरे नंबर पर हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु, तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, उत्तराखंड, चौथे नंबर पर सिक्किम और पांचवें नंबर पर है महाराष्ट्र 

इस बार इस रिपोर्ट में 17 लक्ष्यों पर 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रदर्शन का आकलन किया गया है। इस रिपोर्ट में अगर पांच टॉप परफॉर्मर राज्यों की बात करें तो टॉप फाइव की लिस्ट में केरल प्रथम, दूसरे नंबर पर हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु, तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, उत्तराखंड, चौथे नंबर पर सिक्किम और पांचवें नंबर पर महाराष्ट्र है। केरल 2019 की रैंकिंग में भी पहले स्थान पर था।

# एसडीजी के 17 लक्ष्यों के विषय में जानिए

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूनाइटेड नेशन्स जेनेरल असेम्बली-यूएनजीए) में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया। यूएन ने विश्व के बेहतर भविष्य के लिये इन लक्ष्यों को महत्त्वपूर्ण बताया तथा वर्ष 2030 तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये इसके क्रियान्वयन की रूपरेखा सदस्य देशों के साथ साझा की गई। 17 सतत विकास लक्ष्‍य (एसडीजी) और 169 उद्देश्य सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के अंग हैं जिसे सितंबर 2015 में संयुक्‍त राष्‍ट्रमहासभा की शिखर बैठक में 193 सदस्‍य देशों ने अनुमोदित किया था। यह एजेंडा पहली जनवरी 2016 से प्रभावी हुआ है।

# यूएन चाहता है कि विकास लक्ष्य में 'कोई पीछे न छूटे'

असल में इसके द्वारा संयुक्त राष्ट्र ने इस धरती से गरीबी, भुखमरी को खत्म करने और सबको आगे बढ़ाने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। 2030 के लिए वैश्विक एजेंडा का मूल मंत्र सार्वभौमिकता का यह सिद्धांत है- ‘कोई पीछे न छूटे’। इन उद्देश्‍यों पर अमल के लिए जरूरी है कि ये सभी सरकारों और काम करने वालों के लिए प्रासंगिक होने चाहिए। विकास को अपने सभी आयामों में सभी के लिए, हर जगह समावेशी होना चाहिए और उसका निर्माण हर किसी की, विशेषकर सबसे लाचार और हाशिए पर जीते लोगों की भागीदारी से होना चाहिए।

# भारत में सतत विकास लक्ष्यों के बारे में राष्ट्रीय कार्रवाई

सतत विकास लक्ष्यों के बारे में तालमेल का काम भारत सरकार के नीति आयोग को सौंपा गया है। नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्यों औऱ उनके उद्देश्यों से जुड़ी योजनाओं की पहचान शुरू की है और हर उद्देश्य लिए अग्रणी एवं सहायक मंत्रालयों की भी पहचान कर ली है। उन्होंने समूचे सरकारी तंत्र में सतत विकास से जुड़ा दृष्टिकोण अपनाया है। इस बात पर जोर दिया है कि सतत विकास लक्ष्य, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं में परस्पर जुड़े हुए हैं। राज्यों को सलाह दी गई है कि वे भी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के साथ-साथ अपनी योजनाओं की भी इसी तरह पहचान करें।

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# देखिये, ऐसे बनती है एसडीजी की रैकिंग 

नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपना सूचकांक तैयार किया है। नीति आयोग हर साल यूएन के 232 सूचकांकों की प्रणाली पर आधारित 100 निजी सूचकांकों पर राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है, जिनमें शामिल हैं- आकांक्षी: 0–49, परफार्मर: 50-64, फ्रंट रनर: 65–99, अचीवर: 100, इस तरह 100 के पैमाने पर हासिल अंक के आधार पर राज्यों की रैंकिंग की जाती है।

# ये हैं एसडीजी के 17 लक्ष्य 

गरीबी की पूर्णतः समाप्ति, भुखमरी की समाप्ति, अच्छा स्वास्थ्य और जीवनस्तर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, साफ पानी और स्वच्छता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, अच्छा काम और आर्थिक विकास, उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा का विकास, असमानता में कमी, टिकाऊ शहरी और सामुदायिक विकास, जिम्मेदारी के साथ उपभोग और उत्पाद, जलवायु परिवर्तन, पानी में जीवन, भूमि पर जीवन, शांति और न्याय के लिए संस्थान और लक्ष्य प्राप्ति में सामूहिक साझेदार।

# एसडीजी में होती है राज्य सरकारों की निर्णायक भूमिका

सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति की कुंजी राज्य सरकारों के हाथ में है, क्योंकि वही जनहित को प्राथमिकता देने और यह सुनिश्चित करने में सबसे अधिक समर्थ हैं कि कोई पीछे न छूटे। सरकार के अनेक प्रमुख कार्यक्रम, जैसे, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया, सतत विकास लक्ष्यों के मूल में हैं। राज्य और स्थानीय सरकारें इनमें से अनेक कार्यक्रमों में मुख्य भूमिका निभाती हैं। दरअसल, 17 में से 15 सतत विकास लक्ष्यों का सीधा संबंध राज्य सरकारों की गतिविधियों से है। राज्य सरकारें सतत विकास लक्ष्यों पर अमल और उनकी निगरानी के लिए संकल्पना, नियोजन, बजट निर्धारण और विकास में गहरी रुचि ले रही हैं।

# एजेंडा-2030 में ऐसे शामिल हुआ भारत

गौरतलब है कि भारत सरकार ने पहली बार, न्यूयार्क में जुलाई, 2017 में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (हाई लेवल पोलिटिकल फोरम) पर अपनी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। यह वह मंच है जहाँ एजेंडा 2030 के अंतर्गत तय लक्ष्यों के सन्दर्भ में विभिन्न देशों द्वारा की गई प्रगति का आकलन किया जाता है। इस वर्ष भारत सहित 44 राष्ट्र इन लक्ष्यों के संबंध में की गई प्रगति की समीक्षा प्रस्तुत करेंगे। यह एजेंडा 2030 और इस संबंध में भारत द्वारा की गई प्रगति को समझने का एक उपयुक्त अवसर है।

# समझिए, क्या है एजेंडा 2030

विदित हो कि वर्ष 2015 से शुरू संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में अगले 15 वर्षों के लिये सतत विकास लक्ष्य निर्धारित किये गए थे। उल्लेखनीय है कि 2000-2015 तक की अवधि के लिये सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) की प्राप्ति की योजना बनाई गई थी जिनकी समयावधि वर्ष 2015 में पूरी हो चुकी थी।

तत्पश्चात, आने वाले वर्षों के लिये एक नया एजेंडा (एसडीजी-2030) को औपचारिक तौर पर सभी सदस्य राष्ट्रों ने अंगीकृत किया था। सतत विकास लक्ष्यों की बात करने से पहले यह जानना भी महत्त्वपूर्ण होगा कि सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य क्या थे?

# जानिए, क्या था सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी)

पहला, भुखमरी तथा गरीबी को ख़त्म करना। दूसरा, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल करना। तीसरा, लिंग समानता तथा महिला सशक्तिकरण को प्रचारित करना। चतुर्थ, शिशु-मृत्यु दर घटाना। पंचम, मातृत्व स्वास्थ्य को बढ़ावा देना। षष्टम, एचआईवी/एड्स, मलेरिया तथा अन्य बीमारियों से निजात पाना। सप्तम, पर्यावरण सततता। और अष्टम, वैश्विक विकास के लिये संबंध स्थापित करना।

गौरतलब है कि भारत ने लक्षित लक्ष्यों में से एचआईवी, एड्स, गरीबी, सार्वभौमिक शिक्षा तथा शिशु मृत्युदर में निर्धारित मानकों को 2015 तक प्राप्त कर लिया है। जबकि अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति में भारत अभी भी बहुत पीछे है। हालाँकि सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों को एजेंडा 2030 में निहित लक्ष्यों के अंतर्गत ही शामिल कर लिया गया है।

# सतत विकास लक्ष्य: एक जनवरी, 2016 से है लागू

'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को, जिसे सतत विकास लक्ष्यों के नाम से भी जाना जाता है। भारत सहित 193 देशों ने सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में इसे स्वीकार किया था और एक जनवरी, 2016 को यह लागू किया गया। इसके तहत 17 लक्ष्य तथा 169 उपलक्ष्य निर्धारित किये गए थे जिन्हें 2016-2030 की अवधि में प्राप्त करना है। 

उल्लेखनीय है कि इसमें से 8 लक्ष्य सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों से लिये गए है, जिन्हें और व्यापक बनाते हुए अपनाया गया है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के एजेंडा 2030, में कुल 17 लक्ष्यों  का निर्धारण किया गया था जो इस प्रकार से हैं: गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति। भूख समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा। सभी उम्र के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा। समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना। लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना। सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना। सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना। सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार, और सभ्य काम को बढ़ावा देना। लचीली बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा। देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना। सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण। स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना। जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई करना। स्थायी सतत विकास के लिये महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग। सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना। 

सतत विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेही बनाना ताकि सभी के लिये न्याय सुनिश्चित हो सके। सतत विकास के लिये वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को मज़बूत बनाना।

# एजेंडा 2030 में निहित हैं आमलोगों की उम्मीदें

सतत विकास से हमारा अभिप्राय ऐसे विकास से है, जो हमारी भावी पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतें पूरी करने की योग्यता को प्रभावित किये बिना वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सबके लिये समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण करना और विकास के तीनों पहलुओं, अर्थात सामाजिक समावेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य के बाद (जो 2000 से 2015 तक के लिये निर्धारित किये गए थे) विकसित इन नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँकम और आशाएँ अधिक हों।

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# एजेंडा 2030 के सन्दर्भ में सराहनीय है भारत की प्रगति

भारत लंबे अरसे से सतत विकास के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है और इसके मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में शामिल करता आ रहा है। भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत एजेंडा 2030 के एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गरीबी दूर करने के उद्देश्यपूर्ति के लिये सबसे निर्धन वर्ग के कल्याण को प्रमुखता दी गई है।

सरकार द्वारा कार्यान्वित किये जा रहे अनेक कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिनमें मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण और शहरी दोनों, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

# कैसे होगा भारत की प्रगति का आकलन?

केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की ज़िम्मेदारी, नीति आयोग को सौंपी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को संबंधित राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सौंपा गया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उन संकेतकों की पहचान करना, जो हमारे राष्ट्रीय संकेतक ढांचे के अंतर्गत अपनाए जा सकते हैं। 

फिर इससे जो परिणाम प्राप्त होंगे, उससे स्वैछिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रक्रिया में  उपयोग किया जाएगा। यह विचारणीय है कि भारत इसकी प्रमुख उपलब्धियों जैसे-स्वच्छ भारत, वित्तीय समावेशन आदि को उजागर करेगा। सरकार पहले ही मौजूदा कार्यक्रमों और नीतियों की पहचान कर चुकी है जिन्हें सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत विभिन्न लक्ष्यों से सम्बद्ध किया गया है। सरकार ने स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा के लिये नागरिक समाज से भी सुझाव मांगे हैं। परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) के ये सुझाव सरकार की रिपोर्ट का हिस्सा होंगे अथवा नहीं। स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रक्रिया एक ओर सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के संबंध में की गई प्रगति के आकलन का एक उपयुक्त मंच है लेकिन वर्ष 2016 की समीक्षा में सरकार ने यह बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का प्रयास किया था।

# 2030 तक है और अधिक प्रगति की अपेक्षा

उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद एजेंडा 2030 में तय लक्ष्यों के संबंध में भारत की प्रगति संतोषजनक नहीं कही जा सकती और इसके लिये भारत को निम्न बातों पर ध्यान देना होगा। सतत विकास लक्ष्यों को विकास नीतियों में शामिल करने के लिये हमें अनेक मोर्चों पर कार्य करना होगा ताकि पर्यावरण और हमारी पृथ्वी के अनुकूल एक बेहतर जीवन जीने की हमारे देशवासियों की वैध इच्छाओं को पूरा किया जा सके। 

वास्तव में, हमारे संघीय ढाँचे में सतत विकास लक्ष्यों की संपूर्ण सफलता में राज्यों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल होना चाहिये। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि भारत को यदि एजेंडा 2030 में तय लक्ष्यों को प्राप्त करना है, तो इस तरह की नीति बनानी पड़ेगी जो सभी क्षेत्रों में क्रियान्वित नीतियों से सामंजस्य स्थापित करती हो। साथ ही प्रशासनिक एवं छोटे स्तर पर इन नीतियों के क्रियान्वयन हेतु सामंजस्य तथा भागीदारी पर ध्यान देना होगा। गौरतलब है कि हम सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों को वर्ष 2015 तक नहीं प्राप्त कर सके थे तो इसका मुख्य कारण यह था कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिये तय नीतियों का क्रियान्वयन सशक्त नहीं था। सतत विकास के लक्ष्यों को यदि हम 2030 तक प्राप्त कर लेते हैं तो भारत एक विकसित तथा समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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