Kushagrahani Amavasya 2023: कुशाग्रहणी अमावस्या व्रत से सभी समस्याओं का होता है अंत
हिंदू धर्म में भाद्रपद अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन दान-धर्म और पितरों का तर्पण किया जाता है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन को दान-धर्म करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
आज कुशाग्रहणी अमावस्या है, इसे पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है, इस अमावस्या पर दान का विशेष महत्व होता है तो आइए हम आपको कुशाग्रहणी अमावस्या व्रत की विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें कुशाग्रहणी अमावस्या के बारे में
हिंदू धर्म में भाद्रपद अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन दान-धर्म और पितरों का तर्पण किया जाता है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन को दान-धर्म करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भाद्रपद महीने में पड़ने वाली इस अमावस्या को कुशोत्पाटिनी या कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस अमावस्या का बहुत महत्व है। इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों, अनुष्ठानों और श्राद्ध आदि कार्यों के लिए कुश इकट्ठा किया जाता है। साथ ही इस दिन स्नान-दान, जप, तप और व्रत आदि का भी महत्व है।
कुशाग्रहणी अमावस्या का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद अमावस्या तिथि का आरंभ- 14 सितंबर 2023 को सुबह 4 बजकर 48 मिनट से
भाद्रपद अमावस्या तिथि का समापन- 15 सितंबर 2023 को सुबह 7 बजकर 9 मिनट पर
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हिंदू धर्म में कुश का महत्व
हमारे शास्त्रों में सभी प्रकार के शुभ या धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों आदि में कुश का उपयोग किया जाता है। किसी को दान देते समय, सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय और अन्य कई कार्यों में भी कुश का उपयोग किया जाता है। इसलिए कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन कुश ग्रहण करने का या कुश को इकट्ठा करने का विधान है। भाद्रपद अमावस्या के दिन प्रत्येक व्यक्ति को जितनी मात्रा में हो सके कुश ग्रहण जरूर करना चाहिए।
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन कुश से जुड़े इन बातों का रखें ध्यान
भाद्रपद अमावस्या के दिन स्नान आदि के बाद उचित स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके दाहिने हाथ से कुश तोड़नी चाहिए। कुश तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- 'ऊँ हूं फट्- फट् स्वाहा।' कुश तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कुश कटा-फटा नहीं होना चाहिए, वह पूर्ण रूप से हरा भरा होना चाहिए। कुशा ग्रहिणी अमावस्या पर पूजा पाठ में सुबह के समय दाएं हाथ से कुशा को जड़ से उखाड़ कर पूजा में इस्तेमाल किया जाता है।
कुशाग्रहणी अमावस्या पर जरुर करें ये काम
भाद्रपद अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान, दान के अलावा कुशा घास जरुर एकत्रित करें। कुश देवताओं और पितर देवों के पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ होती है। मान्यता है कि ये कुश सालभर में पूजा, पाठ पितरों के श्राद्ध कर्म में इस्तेमाल की जाए तो समस्त कार्य बिना विघ्न के पूरे हो जाते हैं। कुशा घास की अंगूठी पहनकर श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है। इसे बहुत पवित्र माना गया है और कुश के आसन पर बैठकर पूजा करने से देवी-देवता जल्द पूजा स्वीकार करते हैं।
कुश निकालने के नियम
कुश एक प्रकार की घास होती है। भाद्रपद की अमावस्या पर कुश घास इकट्ठा की जाती है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन कुशा को निकालने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। ध्यान रखें जो कुश इकट्ठा कर रहे हैं, उसमें पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो। ऐसी कुश देवताओं और पितर देवों के पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ होती है। कुश घास इकट्ठा करने के लिए सूर्योदय का समय शुभ माना जाता है। कुशा को किसी औजार से ना काटा जाए, इसे केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिए और उसकी पत्तियां अखंडित होना चाहिए। यानी पत्तियों का अग्रभाग टूटा हुआ नहीं होना चाहिए। कुशा एकत्रित करने के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके लिए उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें और दाहिने हाथ से एक बार में ही कुशा को निकालें।
कुशाग्रहणी अमावस्या पर करें ये शुभ काम
इस तिथि पर देवी लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें। पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। हनुमान मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। पीपल को जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इस अमावस्या पर किसी गौशाला में धन और हरी घास का दान भी करना चाहिए। पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। इस दिन पितरों को तर्पण भी किया जाता है। इससे पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
कुशाग्रहणी अमावस्या का महत्व
इस दिन पूजा-पाठ, जप-तप के साथ स्नान-दान का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और अन्य पूजन कार्य करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं, इसीलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और दान-पुण्य का बहुत महत्व होता है। धार्मिक दृष्टि से इस अमावस्या को कुश ग्रहण करने एवं पूजा में कुश के प्रयोग का विशेष महत्व है। इस दिन वर्ष भर पूजा,अनुष्ठान या श्राद्ध कराने के लिए नदी,मैदानों आदि जगहों से कुशा नामक घास उखाड़ कर घर लाते है।धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली यह घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह वर्ष भर तक पुण्य फलदायी होती है। बिना कुशा घास के कोई भी धार्मिक पूजा निष्फल मानी जाती है। इसलिए कुशा घास का उपयोग हिन्दू पूजा पद्धति में प्रमुखता से किया जाता है। इस दिन तोड़ी गई कोई भी कुशा वर्ष भर तक पवित्र मानी जाती हैं।अत्यंत पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। मत्स्य पुराण के एक प्रसंग के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को पुनः स्थापित किया। उसके बाद उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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