Hal Shashthi 2025: संतान की निरोगी और लंबी उम्र के लिए करें हल षष्ठी व्रत

Hal Shashthi 2025
Creative Commons licenses
शुभा दुबे । Aug 14 2025 2:48PM

हल षष्ठी व्रत पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। इस व्रत को करने से उनकी संतान निरोगी तथा दीर्घायु होती है। व्रत करने वाली स्त्रियों के लिए इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना मना है। इस दिन स्त्रियां प्रातःकाल उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर आंगन को लीप कर या सफाई कर वहां एक छोटा तालाब बनाती हैं।

भगवान बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में हल षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। इस व्रत को हल षष्ठी इसलिए कहा जाता है क्योंकि बलरामजी का मुख्य शस्त्र हल तथा मूसल है। किसानों के लिए इस दिन हल पूजा का विशेष महत्व है। ग्रामीण अंचलों में इस त्योहार की धूम रहती है तथा मंदिरों में भी हल धारी भगवान बलरामजी की पूजा की जाती है। बलरामजी भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता हैं। उनका जन्म जन्माष्टमी से कुछ दिन पूर्व हुआ था।

यह व्रत पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। इस व्रत को करने से उनकी संतान निरोगी तथा दीर्घायु होती है। व्रत करने वाली स्त्रियों के लिए इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना मना है। इस दिन स्त्रियां प्रातःकाल उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर आंगन को लीप कर या सफाई कर वहां एक छोटा तालाब बनाती हैं। तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक−एक शाखा बांध के बनाई गई हरछठ को गाड़ा जाता है। इसके बाद विधिवत इसकी पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद भैंस के दूध से बने हुए मक्खन से हवन करें और भगवान से निवेदन करें कि वह आपको और आपके परिवार को सुखी और स्वस्थ रखें तथा आपके जीवन में कोई कष्ट नहीं आए। इसके बाद ध्यान लगाकर कथा सुननी चाहिए।

इसे भी पढ़ें: Balarama Jayanti 2025: संतान की लंबी आयु और सुख की कामना से किया जाता है ये व्रत, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि

कथा− प्राचीन काल की बात है। एक गर्भवती स्त्री का प्रसव होने वाला था। उसे प्रसव पीड़ा भी शुरू हो गई थी लेकिन उसका सारा ध्यान इस बात पर था कि उसने गाय और भैंस का जो दूध निकाल कर रखा है उसका क्या होगा। यदि बच्चा अभी हो गया तो यह सब दूध बेकार जाएगा दूसरी ओर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा भी हो रही थी जिससे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। आखिरकार उसने निर्णय लिया कि वह गाया का दूध बेचने जाएगी और उसने दूध और दही के घड़े अपने सिर पर रखे और उसे बेचने के लिए चल दी। लेकिन बीच राह में ही उसकी प्रसव पीड़ा और तेज हो गई तो उसने पेड़ों की ओट में एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। स्त्री का मोह अब भी दूध के प्रति कम नहीं हुआ और वह बच्चे को वहीं छोड़ निकट के गांव में दूध बेचने के लिए गई। वहां जाकर उसने गाय और भैंस के मिलावटी दूध को सिर्फ भैंस का दूध बताते हुए बेच दिया जिससे उसे अच्छी आमदनी हुई।

उधर उस नवजात पर आई विपत्तियां कम होने का नाम नहीं ले रही थीं एक तो जन्म के बाद उसकी मां उसे यूं ही जंगल में अकेला छोड़ कर चली गई थी दूसरी ओर पास ही के खेत में काम कर रहे किसानों के बैल भड़क गये जिससे हल का फल उस नवजात के सीने में धंस गया और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। किसान ने जब यह देखा तो बहुत दुखी हुआ उसने उस नवजात के सीने में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर अपने स्थान को चला गया।

जब नवजात की मां वहां पहुंची और बच्चे को इस हालत में पाया तो उसे एकदम से सब कुछ समझ आ गया कि यह सब उसके पापों की सजा है। उसने जो दूध झूठ बोलकर गांव वालों को बेचा है उसकी सजा उसे मिल गई है। उसके अंतर्मन ने उसे प्रायश्चित करने को कहा तो वह गांव वापस गई और वहां गली−गली में घूमकर अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे उसने झूठ बोलकर दूध बेचा और कैसे उसका नवजात बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसकी बात सुनकर लोगों को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे माफ करते हुए आशीर्वाद दिया।

इसके बाद जब वह ग्वालिन वापस उसी स्थान पर पहुंची जहां उसने अपने बच्चे को छोड़ा था तो वहां यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि उसका बच्चा जीवित है। उसी क्षण उसने निर्णय लिया कि आगे से वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगी और झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझेगी।

- शुभा दुबे

All the updates here:

अन्य न्यूज़