नवरात्रि में इस बार क्या है विशेष? जानिये घट स्थापना का मुहूर्त और पूजन विधि

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शुभा दुबे । Oct 9 2018 3:38PM

आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिन तक चलने वाले नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्रि की खास बात यह है कि प्रतिपदा और द्वितीया तिथि एक साथ है।

आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिन तक चलने वाले नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्रि की खास बात यह है कि प्रतिपदा और द्वितीया तिथि एक साथ है जिसकी वजह से माँ शैलपुत्री और माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा एक ही दिन होगी। यानि इस वर्ष पहला और दूसरा नवरात्रि दस अक्तूबर को मनायी जायेगी। इसके साथ ही इस वर्ष 13 और 14 अक्तूबर, यानि दो दिन पंचमी तिथि है। साथ ही इस बार नवरात्रि में दो गुरुवार पड़ रहे हैं और इसे माँ की पूजा के लिए अत्यंत उत्तम माना गया है।

घट स्थापना का समय

इस बार घट स्थापना के लिए मात्र एक घंटे दो मिनट का ही समय है। घट स्थापना 10 अक्तूबर को प्रातः 6.22 से लेकर 7.25 के भीतर ही करनी होगी। यदि इसके बाद घट स्थापना की गयी तो वह द्वितीया में मानी जायेगी।

घट स्थापना कैसे करें

इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करके मंदिर में जाकर माता की पूजा करनी चाहिए या फिर घर पर ही माता की चौकी स्थापित करनी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभदायक बताया गया है। माता की चौकी को स्थापित करने के दौरान जिन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है उनमें गंगाजल, रोली, मौली, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल की माला, बिल्वपत्र, चावल, केले का खम्भा, चंदन, घट, नारियल, आम के पत्ते, हल्दी की गांठ, पंचरत्न, लाल वस्त्र, चावल से भरा पात्र, जौ, बताशा, सुगन्धित तेल, सिंदूर, कपूर, पंच सुगन्ध, नैवेद्य, पंचामृत, दूध, दही, मधु, चीनी, गाय का गोबर, दुर्गा जी की मूर्ति, कुमारी पूजन के लिए वस्त्र, आभूषण तथा श्रृंगार सामग्री आदि प्रमुख हैं। कलश रखने से पहले उस पर स्वास्तिक बनाएं फिर उस पर मौली बांध कर जल भरें। कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र और पंचरत्न और सिक्का डालें। चौकी पर अक्षत रख कर उस पर कलश को स्थापित करें। इसके साथ ही कलश के ऊपर चुन्नी में लपेट कर जटा वाला नारियल रखें।

पूजन विधि

-वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करें।

-वेदी के ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करें।

-भगवती की प्रतिमा रत्नमय भूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित, शुभलक्षण सम्पन्न और सौम्य आकृति की हो। वे कल्याणमयी भगवती शंख−चक्र−गदा−पद्म धारण किये हुये हों और सिंह पर सवार हों अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी को प्रतिष्ठित करें।

-पीठ पूजा के लिये पास में कलश भी स्थापित कर लें। वह कलश पंचपल्लव युक्त, तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिये। घटस्थापन के स्थान पर केले का खंभा, घर के दरवाजे पर बंदनवार के लिए आम के पत्ते, हल्दी की गांठ और 5 प्रकार के रत्न रखें। 

-नवरात्रि के पहले दिन ही जौ, तिल को मिट्टी के बरतन में बोया जाता है, जो कि मां पार्वती यानी शैलपुत्री के अन्नपूर्णा स्वरूप के पूजन से जुड़ा है।

-पास में पूजा की सब सामग्रियां रखकर उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्यों की ध्वनि भी करानी चाहिये।

-हस्त नक्षत्र युक्त नन्दा तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। 

-कथा सुनने के बाद माता की आरती करें और उसके बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करें। देवीसूक्तम का श्रद्धा व विश्वास से पाठ करने पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है। माता की आरती के बाद सभी को प्रसाद का वितरण करें।


माँ दुर्गा की महिमा

भगवती दुर्गा ही संपूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति तथा सरसता प्रदान करती हैं। इन्हीं की शक्ति से देवता बनते हैं, जिनसे विश्व की उत्पत्ति होती है। इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं। दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं। ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, श्रीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गितनाशिनी मेनकापुत्री दुर्गा हैं। ये ही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री हैं।

शारदीय नवरात्रि की महत्ता

शारदीय नवरात्रि के बारे में कहा जाता है कि सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने इस पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। मान्यता है कि तभी से असत्य पर सत्य की जीत तथा अर्धम पर धर्म की विजय की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा पर्व मनाया जाने लगा। देश भर में इस दौरान माँ भगवती के नौ रूपों की विधि विधान से पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्र में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। कहा जाता है कि ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर नहीं पड़े इसीलिए साधना के बहाने ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया था। नवरात्रि का समापन विजयादशमी के साथ होता है।

-शुभा दुबे

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