Sheetla Saptami: संतान के उत्तम स्वास्थ्य हेतु होता है शीतला सप्तमी व्रत

Sheetla Saptami
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शीतला सप्‍तमी पर मां दुर्गा के स्‍वरूप शीतला माता की पूजा की जाती है। साथ ही उन्‍हें बासी और ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है। इस व्रत को करने आरोग्‍य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्‍चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा करते हैं।

आज शीतला सप्तमी है, यह व्रत संतान की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है, तो आइए हम आपको शीतला सप्तमी व्रत के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें शीतला सप्तमी के बारे में 

भारत में चिकन पॉक्स जैसी संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए शीतला सप्तमी का व्रत किया जाता है। शीतला सप्‍तमी होली के सात दिन बाद चैत्र मास के कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी को होती है और शीतला अष्‍टमी को बासी खाने का भोग लगाकर शीतला माता की पूजा की जाती है। इस साल शीतला सप्‍तमी 14 मार्च को है। य‍ह व्रत माताएं प्रमुख रूप से बच्‍चों के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। दक्षिणी राज्यों में देवी शीतला को देवी पोलरम्मा कहा जाता है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में शीतला सप्तमी एक समान त्यौहार के रूप में मनाया जाता है उसे पोलाला अमावस्या कहा जाता है। 

शीतला सप्तमी पर चूल्हा नहीं जलाने की है खास प्रथा

पंडितों का मानना है कि शीतला सप्तमी पर घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन देवी की कृपा से पर्यावरण को शुद्ध रखा जाता है। शुद्ध पर्यावरण में ही सेहतमंद संतान निवास करती है। 

शीतला सप्‍तमी का महत्‍व

शीतला सप्‍तमी पर मां दुर्गा के स्‍वरूप शीतला माता की पूजा की जाती है। साथ ही उन्‍हें बासी और ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है। इस व्रत को करने आरोग्‍य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्‍चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा करते हैं। बच्‍चों की हर बुरी नजर से रक्षा होती है। इस त्‍योहार को कई स्‍थानों पर बासौड़ा भी कहते हैं। माताएं इस दिन गुलगुले बनाती हैं और शीतला अष्‍टमी के दिन इन गुलगुलों को अपने बच्‍चों के ऊपर से उबारकर कुत्‍तों को खिला दिया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि ऐसा करने से बीमारियां बच्‍चों से दूर रहती हैं।

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ऐसे करें शीतला सप्तमी की पूजा

शीतला सप्तमी का दिन बहुत खास होता है, इसलिए इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठें और ठंडे पानी से स्नान करें। उसके बाद शीतला माता मंदिर जाकर प्रार्थना कर पूजा आरम्भ करें। पूजा सम्पन्न करने के लिए शीतला माता व्रत की कथा पढ़े और सुनाएं। पंडितों के अनुसार कुछ लोग देवी के सम्मान में मुंडन भी कराते हैं। इस दिन भक्त केवल सामान इकट्ठा करते हैं। घर में खाना नहीं बनाया जाता है। शीतला सप्तमी के दिन ताजा और गर्म खाना निषिद्ध होता है। 

शीतला सप्तमी पर पूजा करते समय थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, मठरी और नमक पारे रखें। दूसरे थाली में आरती का सामान भी रखें। हमेशा दोनों थालियों के साथ ठंडे पानी का लोटा भी रखें। उसके बाद पूजा कर परिवार के सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं। शीतला मां को जल अर्पित करें एवं जल चढ़ाने के बाद बचे जल को घर में छिड़कें। उसके बाद पूजा में बचे सामान को ब्रह्माण या गाय को दान दे दें। 

शीतला सप्‍तमी का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की शीतला सप्तमी 13 मार्च 2023 को रात 9 बजकर 27 मिनट से आरंभ होगी और इसका समापन 14 मार्च को रात 8 बजकर 22 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि की मान्‍यता के अनुसार इसका व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा।

शीतला माता का स्‍वरूप होता है खास 

स्‍कंद पुराण में शीतला माता के स्‍वरूप का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शीतला माता गधे की सवारी करती है और हाथों में कलश, झाड़ू, सूप धारण किए रहती हैं। ऐसी मान्‍यता है कि माता शीतला की पूजा करने से बच्‍चों को निरोग रहने का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है। बच्‍चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। मां को बासी खाने का भोग लगाया जाता है, इसके पीछे ऐसा संदेश दिया जाता है कि अब पूरे गर्मियों के मौसम में ताजा ही खाने का प्रयोग करना है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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