Vallabhacharya Jayanti 2024: श्रीकृष्ण के प्रबल अनुयायी थे श्री वल्लभाचार्य

Shri Vallabhacharya
Prabhasakshi

वल्लभ संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत आता है। 16वीं शातब्दी में इस संप्रदाय की स्थापना वल्लभ आचार्य के द्वारा की गई थी। इस दिन श्रीनाथ जी के मंदिरों में प्रसाद चढ़ाया जाता है और वितरण भी किया जाता है।

आज वल्लभाचार्य जयंती है, श्री वल्लभाचार्य को भारत के धार्मिक भक्ति आंदोलन का अग्रदूत भी माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से प्रेरित श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है, तो आइए हम आपको वल्लभाचार्य जयंती के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।  

वल्लभ या पुष्य संप्रदाय की स्थापना से जुड़ी बातें भी जानें 

वल्लभ संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत आता है। 16वीं शातब्दी में इस संप्रदाय की स्थापना वल्लभ आचार्य के द्वारा की गई थी। इस दिन श्रीनाथ जी के मंदिरों में प्रसाद चढ़ाया जाता है और वितरण भी किया जाता है। वल्लभ आचार्य जयंती एकादशी तिथि को पड़ती है इसलिए इस तिथि का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है।

वरूथिनी एकादशी के दिन मनायी जाती है वल्लभाचार्य जयंती 

वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को वरूथिनी एकादशी के साथ ही श्री वल्लभ आचार्य जयंती भी मनाई जाती है। आचार्य वल्लभ एक दार्शनिक थे। इन्हें पुष्य संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। लोकप्रचलित मान्यातओं के अनुसार वल्लभाचार्य ही वे व्यक्ति थे जिन्हें श्रीनाथ जी के रूप में भगवान श्री कृष्ण से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। इन्हें अग्नि देवता का पुर्नजन्म माना जाता है।

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वल्लभाचार्य के शुरूआती जीवन से जुड़ी रोचक बातें 

वल्लभाचार्य का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम इल्लमागारू और पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था। ऐसा कहा जाता है कि वल्लभाचार्य जी का जन्म माता इल्लमागारू के गर्भ से अष्टमास में हुआ था। उन्हें मृत जानकर उनके माता पिता ने छोड़ दिया था। जिसके बाद श्री नाथ जी माता इल्लमागारू के सपने में आए और कहा कि जिस शिशु को तुम मृत जानकर छोड़ आए हो वह जीवित है। वह स्वंय ही श्री नाथ जी हैं जिन्होंने आपके गर्भ से जन्म लिया है जिसके बाद वल्लभाचार्य जी के माता पिता फिर से उसी स्थान पर गए और देखा कि अग्निकुंड के बीच में वह अंगूठा चूस रहे थे।

वल्लभाचार्य ने अपना जीवन भगवान कृष्ण को अर्पित किया

पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण ने वल्लभाचार्य से एक-दो बार स्वर्ग जाने के लिए कहा। 1530 ई. में, 52 वर्षीय वल्लभाचार्य ने श्री कृष्ण की बात रखी और काशी के हनुमान घाट के पास पवित्र गंगा नदी में समाधि ले ली। वह हनुमान घाट पर एक पत्ते की बनी झोपड़ी में रहे और अपने अंतिम दिनों में श्री कृष्ण के नाम का जाप किया। उनके परिवार के सदस्यों सहित कई उपासक उनकी अंतिम सलाह लेने के लिए उनके पास इकट्ठे हुए। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों को रेत पर लिखकर उनके सामने रखा। इसके अलावा, हिंदू धर्म को मनाने वालों का कहना है कि भगवान कृष्ण खुद मृत वल्लभाचार्य को अपने साथ बैकुंठ लेने आए थे। यही कारण है कि हम उन्हें याद करने के लिए उनकी जयंती मनाते हैं।

धूमधाम से मनायी जाती है वल्लभाचार्य जयंती

श्री कृष्ण भक्ति के भक्तिकालीन प्रणेता श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती भारत में किसी लोकप्रिय त्योहार से कम नहीं है। श्री वल्लभाचार्य की जंयती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। लोकप्रिय पौराणिक धारणा है कि इस दिन भगवान कृष्ण को श्रीनाथजी के रूप में वल्लभाचार्य ने देखा था, जिन्हें पुष्टि संप्रदाय के संस्थापक कहा जाता है। इसलिए, श्रीनाथजी के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा की गई और जिसे वल्लभाचार्य ने उचित ठहराया, जो वैष्णव संप्रदाय के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थे। इस तथ्य के कारण, वल्लभाचार्य जयंती हर साल श्री वल्लभाचार्य और भगवान कृष्ण के भक्तों द्वारा बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था। इस वर्ष महाप्रभु वल्लभाचार्य की जंयती 4 मई (शनिवार) को मनाई जा रही है।

वल्लभाचार्य जयंती के अवसर पर हमारे देश में कुछ खास परंपराओं के साथ उत्सव मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों और सभी धार्मिक स्थलों को फूलों से सजाया जाता है। भक्त सुबह-सुबह भगवान कृष्ण का अभिषेक करते हैं। अभिषेक की विधि पूरी होने के बाद आरती शुरू की जाती है जिसमें मंदिर के पुजारी और सभी भक्त भगवान श्री कृष्ण के गीत गाते हैं। इसके बाद रथ यात्रा के लिए भगवान श्री कृष्ण की तस्वीर को रथ पर रख दिया जाता है। जिसके बाद इस झांकी को आसपास के इलाकों में घुमाया जाता है। जिससे सभी को रथ यात्रा की झांकी के दर्शन हो सके। इसके बाद अंत में सभी भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है और दिन के समापन श्री वल्लभाचार्य के पौराणिक कार्यों को स्मरण करने और उनकी प्रशंसा करने के साथ होता है।

वल्लभाचार्य का सिद्धांत भी है रोचक 

वल्लभाचार्य का चिंतन आदि शंकराचार्य के सिद्धांत से पृथक है। शंकाराचार्य के अनुसार ब्रह्म सत्य एवं जगत मिथ्या है। जगत केवल प्रतीती मात्र है। वल्लभाचार्य का दर्शन इससे भिन्न है यहां अस्तित्व और अस्तित्वहीन की लड़ाई में न पड़कर संसार को खेल है। अपने इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए वल्लभाचार्य ने तीन बार भारत का भ्रमण किया। यह यात्राएं सिद्धांतों के प्रचार के लिए थीं जो करीब 19 सालों में पूरी हुईं। 

श्री वल्लभाचार्य की रचनाएं भी हैं खास 

श्री वल्लभाचार्य अपनी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी प्रमुख सोलह रचनाओं को षोडष ग्रंथ के नाम से भी जाना जाता है। इन रचनाओं में प्रमुख है यमुनाष्टक, बालबोध, सिद्धांत मुक्तावली, पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, सिद्धांत रहस्य, नवरत्न स्तोत्र, अंतःकरण प्रबौध, विवेक धैर्याश्रय, श्री कृष्णाश्रय, चतुःश्लोकी, भक्तिवर्धिनी, जलभेद, पन्चपद्यानि, सन्यास निर्णय, निरोध लक्षण, सेवाफल इत्यादि। 

क्यों मनाई जाती है वल्लभाचार्य जयंती 

शास्त्रों के अनुसार वल्लभाचार्य जी श्रीकृष्ण के प्रबल अनुयायी थी। उन्होंने भक्ति आंदोलन के लिए भारत में कई स्थानों पर यात्रा की। वह श्रीनाथ जी की भक्ति में लीन रहते हैं उनका मानना था कि मोक्ष का रास्ता ईश्वर की सच्ची भक्ति से होकर ही प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख कृष्ण एकादशी के शुभ दिन पर ही भगवान श्रीनाथ जी वल्लभाचार्य जी के सामने प्रकट हुए थे। इसलिए ये दिन बहुत खास माना जाता है।

वल्लभाचार्य का पुष्टिमार्ग

जब वल्लभाचार्य गोकुल आए, तो उन्होंने कई भक्तों को भक्ति की सही दिशा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने श्री कृष्ण को याद किया, जो उन्हें श्रीनाथजी के रूप में प्रकट हुए थे। दामोदरदास, उनके शिष्य, उस समय उनके बगल में सो रहे थे। वल्लभाचार्य ने अगली सुबह दामोदरदास को अपने अनुभव के बारे में बताया और पूछा कि क्या दमला ने कल रात कोई आवाज सुनी है। जवाब में, दमला ने उनसे सहमति जताई कि उन्होंने कुछ सुना। वल्लभाचार्य ने तब मंत्र की शक्ति के बारे में स्पष्ट किया।

वल्लभाचार्य ने भगवान के प्रति समर्पण के अपने पुष्टिमार्ग संदेश का प्रचार करने का निर्णय लिया। उन्होंने तीर्थयात्राओं के लिए तीन बार भारत की यात्रा की। उन्होंने ‘नाम निवेदन’ या ‘ब्रह्म संबंध ’मंत्र को श्रेष्ठ बताकर धार्मिक अधिकार की शुरुआत की। और हजारों भक्तों ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। कहानी का शेष भाग पुष्टिमार्ग साहित्य में वर्णित है। इसके अलावा, एक मजबूत मान्यता है कि वल्लभाचार्य ऋषि व्यास से मिले और हिमालय के स्तंभ में भगवान कृष्ण की विशेषताओं पर चर्चा की।

हिन्दू धर्म में वल्लाभचार्य जयंती का है विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को पूजने वाले और वल्लभाचार्य जयंती को मनाने वाले बहुत ही हर्षोल्लाल के साथ वल्लभाचार्य जंयती मनाते हैं। भक्त लोग इस दिन श्री नाथ जी के मंदिर में जाकर विशेषतौर पर पूजा अर्चना करते हैं। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, चेन्नई और महाराष्ट्र में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है। साथ ही श्री नाथ जी के मंदिर में इस दिन को बहुत ही उत्साहपूर्वक पर्व की भांति मनाया जाता है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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