वट पूर्णिमा व्रत करने से सुहागिन महिलाएं होती हैं सौभाग्यवती

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कमल सिंघी । Jun 17 2019 11:53AM

हिन्दू शास्त्रों एवं पुराणो के अनुसार सुहागिन महिलाओं द्वारा इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य प्राप्ति के साथ ही संतान प्राप्ति भी होती है। साथ ही सुहागिन महिलाओं के पति एवं बच्चों की आयु में भी वृद्धि होती है। वट पूर्णिमा व्रत से अनजान पापों से भी मुक्ति मिलती है।

हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है। इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा कहा जाता है। भारत के अधिकांश क्षेत्र में वट पूर्णिमा के रूप में मनाते हुए सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सवित्री व्रत रख कर वट वृक्ष की पूजा करती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा वर्ष में एक बार आती है इसलिए यह अपने आप में महत्वपूर्ण है एवं काफी खास मानी जाती है। महिलाएं वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए करती है। यह व्रत करने से महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है।

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वट पूर्णिमा व्रत से होती है सौभाग्य की प्राप्ति-

हिन्दू शास्त्रों एवं पुराणो के अनुसार सुहागिन महिलाओं द्वारा इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य प्राप्ति के साथ ही संतान प्राप्ति भी होती है। साथ ही सुहागिन महिलाओं के पति एवं बच्चों की आयु में भी वृद्धि होती है। वट पूर्णिमा व्रत से अनजान पापों से भी मुक्ति मिलती है। पुराणों में बताया गया है वट पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान कर पूजा करने से सम्पूर्ण मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। 

वट पूर्णिमा व्रत कथा- 

बताया जाता है कि मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की चाह में उन्होंने यज्ञ किया और अठाहर वर्ष तक मंत्रोच्चार के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुंतियां दी। जिसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर राजा से कहा की जल्द ही तुम्हारे घर एक कन्या का जन्म होगा। सावित्री देवी की कृपा से जन्मी कन्या का नाम राजा द्वारा सावित्री रखा गया। सावित्री बड़ी हो गई तो उसकी शादी के लिए योग्य वर न मिलने पर राजा दुःखी होने लगे। इसी से चिंतित सावित्री तपोवन में भटकने लगी एवं कुछ समय बाद उसकी मुलाकात साल्व देश के राजा धुमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुई। नारद मुनि ने सावित्री को बताया की शादी कुछ ही समय बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री ने सत्यवान से शादी की और एक दिन वट वृक्ष के नीचे सत्यवान की मृत्यु हो गई। जिसके बाद सावित्री ने घोर तपस्या की एवं यमराज से विनती कर अपने पति के प्राण बचा लिए। जिसके बाद से ही ज्येष्ठ की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है एवं सुहागिन महिलाएं व्रत करती है।

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इस तरह करें वट पूर्णिमा के दिन पूजा, पूर्ण होगी मनोकामना-

वट पूर्णिमा के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए व्रत करती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर वट वृक्ष की पूजा की जाती है। हम आपको इस दिन पूजन की विधि बता रहें हैं। वट वृक्ष पर फूल माला, अगरबत्ती, सिंदूर, चावल, दीपक आदि पूजा सामग्री को थाली में तैयार कर कपड़े से ढक कर ले जाएं। वट वृक्ष के नीचे बैठकर मां सावित्री की पूजा करें। पूजन करने के बाद सभी सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा करें एवं सावित्री देवी की आरती करे। पूजन के बाद प्रसाद के रूप में मिठाई या फल वितरित करें। विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने पर मनोकामना पूर्ण होगी और पति की आयु में वृद्धि होगी।

- कमल सिंघी

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