यूक्रेन में युद्ध के दौरान रिपोर्टिंग पर ‘एबीसी’ की पत्रकार का अनुभव

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ग्राटन ने यह जानने का प्रयास किया कि युद्ध की कवरेज में पत्रकारों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सारा और उनकी टीम ने यूक्रेन के कीव और अन्य जगहों पर संघर्ष और मृतकों की संख्या का एक अनुमानित चित्रण प्रस्तुत किया है।

(मिशेल ग्राटन, प्रोफेसरियल फेलो, कैनबरा विश्वविद्यालय) कैनबरा, 26 मार्च (द कन्वरसेशन) यूक्रेन में जारी भीषण युद्ध के बीच मिशेल ग्राटन ने ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एबीसी) की पत्रकार सारा फर्ग्यूसन की रिपोर्टिंग से जुड़े उनके अनुभवों के बारे में बातचीत की।

ग्राटन ने यह जानने का प्रयास किया कि युद्ध की कवरेज में पत्रकारों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सारा और उनकी टीम ने यूक्रेन के कीव और अन्य जगहों पर संघर्ष और मृतकों की संख्या का एक अनुमानित चित्रण प्रस्तुत किया है।

सारा ने कहा, ‘‘(रिपोर्टिंग के दौरान) ऐसी कई चीजें उतनी मायने नहीं रखती हैं...क्या आपको खाना मिल सकता है? क्या आपको ड्राइवर मिल सकता है? क्या आप बाहर निकल सकते हैं? एक बार जब हम उन सभी चीजों को प्राप्त कर लेते हैं तो हम आगे बढ़ने के लिए तैयार रहते हैं।’’

यूक्रेन सरकार जानती है कि उसकी कहानी को दुनिया तक पहुंचाना कितना महत्वपूर्ण है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ‘‘देश में जो कुछ हो रहा है उसकी कहानी लोगों को बताने के महत्व को समझ गए हैं।’’

सारा ने कहा कि यूक्रेन के विभिन्न शहरों में फंसे हुए लोगों की निकासी के दौरान भी रूसी सैनिकों ने गोलाबारी की। रूसी सैनिकों ने नागरिकों की सुरक्षित निकासी वाले रास्तों को भी नहीं बख्शा।

इसलिए लोगों को निकालना बहुत खतरनाक था। उस जगह पर जाना भी कठिन था। इस भयावह स्थिति में फंसे हुए यूक्रेन के लोग भविष्य के बारे में कुछ ठोस सोचने के बजाए रोजाना की जद्दोजहद में उलझे हुए हैं। लोग बस इतना सोच रहे हैं कि आज बच जाने पर कल की क्या होगा। हर कोई खौफ के साये में जी रहा है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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