फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव रूस और यूक्रेन की जंग को किस प्रकार कर सकता है प्रभावित?

French presidential election
अभिनय आकाश । Apr 18 2022 5:49PM

फ़्रांस की राजधानी भले ही पूर्वी यूक्रेन के युद्धक्षेत्रों से हज़ारों मील दूर हो, लेकिन इस महीने फ़्रांस के मतदान केंद्रों में जो कुछ हुआ, उसका असर वहाँ भी हो सकता है। ऐसे में आपको बताते हैं कि फ्रांसीसी चुनाव यूक्रेन युद्ध को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

एक ऐसा देश जहां वोटरों के लिए पात्रता 18 साल है और राष्ट्रपति के पद के लिए भी पात्रता इतनी ही है। इस देश के सबसे बड़े पद यानी राष्ट्रपति को लेकर चुनाव हो रहे हैं। पहले राउंड की वोटिंग हो चुकी है और दूसरे राउंड के लिए इसी महीने की 24 तारीख को वोट डाले जाने हैं। वैसे तो इस चुनाव में कुल 12 उम्मीदवार मैदान में हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला दो लोगों के बीच का ही माना जा रहा है। एक पूर्व बैंकर और एक पूर्व वकील फ्रांस के सर्वोच्च पद के लिए जूझ रहे हैं।  यूरोपीय यूनियन की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी वाले देश फ्रांस के चुनाव का पूरे यूरोप पर असर पड़ना लाजिमी है। फ्रांस के चुनाव परिणाम का व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रभाव होगा क्योंकि यूरोप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण से पैदा हुए संकट को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है। मैक्रों ने रूस पर यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रतिबंधों का पुरजोर समर्थन किया है जबकि ले पेन ने फ्रांस के लोगों के जीवन स्तर पर उनके प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। अब ऐसे में फ्रांस के चुनाव का रूस और यूक्रेन के युद्ध को लेकर भी सीधा असर पड़ने के आसार साफ नजर आ रहे हैं। 

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यूक्रेन को हथियारों से मदद

फ़्रांस की राजधानी भले ही पूर्वी यूक्रेन के युद्धक्षेत्रों से हज़ारों मील दूर हो, लेकिन इस महीने फ़्रांस के मतदान केंद्रों में जो कुछ हुआ, उसका असर वहाँ भी हो सकता है। ऐसे में आपको बताते हैं कि फ्रांसीसी चुनाव यूक्रेन युद्ध को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। रूसी आक्रमण के खिलाफ यूरोपीय देश यूक्रेन की बढ़चढ़कर मदद करते नजर आ रहे हैं। इसी क्रम में फ्रांस भी खड़ा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने तो हालिया सप्ताहों में यूक्रेन को 100 मिलियन यूरो मूल्य के हथियार भेजे हैं और पश्चिमी सैन्य सहायता प्रयास के तहत और अधिक हथियार भेजने की बात भी कही है। फ्रांस 2014 से यूक्रेन के लिए सैन्य समर्थन का एक प्रमुख स्रोत रहा है, जब रूस ने 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी लड़ाकों का समर्थन किया। ल पेन की सोच मैक्रों से बिल्कुल उलट है और उन्होंने यूक्रेन को अतिरिक्त हथियारों की आपूर्ति पर बुधवार को आपत्ति जताई। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि अगर वो राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तो रक्षा और खुफिया सहायता जारी रखेंगी। हथियार भेजने के बारे में विवेकपूर्ण तरीके से फैसला किया जाएगा क्योंकि उन्हें लगता है कि हथियार दिए जाने से रूस के साथ संघर्ष में अन्य देश शामिल हो सकते हैं। 

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प्रतिबंधों में नरमी?

ले पेन के अभियान में मुद्रास्फीति को लेकर मतदाताओं की हताशा को सफलतापूर्वक रेखांकित किया गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों से भी मुद्रास्फीति प्रभावित हुयी है। फ्रांस और यूरोप के लिए रूस एक प्रमुख गैस आपूर्तिकर्ता और व्यापार भागीदार है। यूरोपीय संघ सख्त प्रतिबंधों को लेकर सहमत होने में एकमत रहा है। राष्ट्रपति के रूप में, ले पेन यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को विफल करने या उन्हें सीमित करने का प्रयास कर सकती हैं क्योंकि आगे की कार्रवाई के लिए संगठन के 27 सदस्य देशों के बीच सर्वसम्मति की आवश्यकता है।   यूरोपीय यूनियन की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी जिसके पास है। विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यस्था का टैग जिसे प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, नाटो और यूरोपीय यूनियन का संस्थापक सदस्य। मतसब साफ है कि यूरोपीय यूनियन में फ्रांस के बिना कुछ भी संभव नहीं है। ले पेन विशेष रूप से रूसी गैस और तेल पर प्रतिबंधों का विरोध करती हैं। उन्होंने अतीत में यह भी कहा था कि वो रूस पर क्रीमिया के कब्जे पर लगाए गए प्रतिबंधों को उठाने के लिए काम करेंगी और यहां तक ​​​​कि क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता देगी।

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नाटो और यूरोपीय संघ से बाहर आने पर जोर

मैक्रों यूरोपीय संघ के कट्टर रक्षक हैं और हाल ही में पूर्वी यूरोप में नाटो के संचालन में फ्रांस की भागीदारी को मजबूत किया है। जबकि ल पेन का कहना है कि फ्रांस को अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों से अपनी दूरी बनाए रखनी चाहिए और अपने रास्ते पर चलना चाहिए। ले पेन फ्रांस को नाटो की सैन्य कमान से बाहर निकालने की पक्षधर हैं। फ्रांस 1966 में नाटो की कमान संरचना से हट गया था, जब राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल अपने देश को अमेरिकी प्रभुत्व वाले संगठन से हटाना चाहते थे। राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के कार्यकाल में 2009 में फांस फिर से इससे जुड़ गया।

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