शहबाज को पाकिस्तान की बर्बादी का आइडिया आ गया, भूखे पेट रहकर भी अपना रक्षा बजट बढ़ाएगा इस्लामाबाद

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अभिनय आकाश । May 26 2025 4:53PM

रक्षा बजट में बढ़ोतरी ऐसे वक्त हुई है जब महंगाई दर 38 फीसदी पार कर चुकी है और विदेशी मुद्रा भंडार $3 अरब से नीचे है। पाकिस्तान अभी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कार्यक्रम के तहत है जिसने गैर-जरूरी खर्चों को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने को कहा है।

पाकिस्तान अभी 21 लाख 15 हजार करोड़ के कर्ज में डूबा है। बावजूद इसके वो अपना रक्षा बजट करीब करीब एक चौथाई बढ़ाना चाहता है। ताकी सेना के हथियार भंडार फिर से भर सके। 2024-25 में पाकिस्तान का रक्षा बजट 2 लाख10 हजार करोड़ रुपए था। 2025-26 के लिए पाकिस्तान इसे 2 लाख 50 हजार करोड़ करने जा रहा है। रक्षा बजट में बढ़ोतरी ऐसे वक्त हुई है जब महंगाई दर 38 फीसदी पार कर चुकी है और विदेशी मुद्रा भंडार $3 अरब से नीचे है। पाकिस्तान अभी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कार्यक्रम के तहत है जिसने गैर-जरूरी खर्चों को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने को कहा है।

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पाकिस्तानी सरकार ने यह खर्च सुरक्षा कारणों से सही ठहराया, खासकर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हालिया आतंकी हमले और भारत के साथ सीमा पर हुई झड़पों के कारण। अधिकारियों का कहना है कि इन घटनाओं की वजह से सैन्य तैयारियां बढ़ाना अनिवार्य था। पाकिस्तान का कर्ज-जीडीपी अनुपात लगभग 70% है, 2024 में व्यापार घाटा $25 अरब का है और आयात कवर सीमित है। IMF के $7 अरब के बेलआउट पैकेज में कड़े आर्थिक नियंत्रण शामिल हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा खर्च बढ़ाने से इन शर्तों को पूरा करना और कठिन हो जाएगा।

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केंद्रीय बजट प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की विदेश यात्रा व ईद की छुट्टियों के कारण देर से पेश हुआ और माना जाता है कि यह IMF से बातचीत के चलते टला। IMF ने बार-बार गैर-जरूरी खर्चों पर रोक लगाने व राजस्व बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है, पर अधिकतर सरकारी खर्च सेना व इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर होता है। एक बड़ा विवादास्पद प्रोजेक्ट डियामेर-भाषा डेम है, जो गिलगित-बाल्टिस्तान के विवादित क्षेत्र में $14 अरब का पनबिजली प्रोजेक्ट है। इसका उद्देश्य 4,500 मेगावाट बिजली उत्पादन और 8 मिलियन एकड़ फीट पानी का भंडारण है; मगर यह प्रोजेक्ट वित्तीय, तकनीकी और भू-राजनीतिक कारणों से वर्षों से रुका हुआ है।

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अर्थशास्त्री डॉ. कैसर बंगाली ने चेताया कि रक्षा व बड़े प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देना सामाजिक खर्चों में कटौती करेगा और आर्थिक सुधारों में बाधा बनेगा, जिससे आम लोगों पर बुरा असर पड़ेगा। जनता पर दबाव बढ़ता नजर आ रहा है – खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं, ईंधन महंगा हो गया है और रोजमर्रा की चीजें आम लोगों की पहुंच से बाहर हो रही हैं। सरकारी कर्मचारियों की सेलरी रुकी है, बेरोजगारी बढ़ रही है और शिक्षा का बजट भी घटा है। अस्पतालों में फंड की कमी है, स्कूलों की हालत खराब है, बिजली की समस्या बनी रहती है, फिर भी अरबों रुपये रक्षा व अधूरे प्रोजेक्ट्स के लिए रखे जा रहे हैं। अर्थशास्त्री चेतावनी देते हैं कि सैन्य शक्ति को सुधार से ऊपर रखने से आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है – “सेना पर खर्च किया गया हर रुपया भोजन-दवा-शिक्षा में कटौती है। 

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