5th जेनरेशन फाइटर जेट की तैयारी, अमेरिका का F-35 या रूस का Su-57 सभी का ऑफर रिजेक्ट करने वाला है भारत?

फ्रांस और अमेरिका से भी भारत हथियार खरीदने लगा। भारत ने रूस से फ्रीगेड को कमीशन करना बंद किया, टैंक की निर्भरता को भी खत्म किया। अब भारत सुखोई 57 जैसे ऑफर को भी रिजेक्ट करता नजर आ रहा है। जिसके बाद सवाल ये उठ रहे हैं कि रूस से भारत हथियार नहीं लेगा तो आखिर भारत आगे क्या करने वाला है?
अभी हाल ही में आपने खबर पढ़ी होगी कि भारत ने आईएनएस तमाल को कमीशन किया है। ये मल्टीरोल फ्रीगेड है। ये रूस की शिपयार्ड द्वारा बनाई गई आखिरी फ्रीगेड है, जो भारतीय नौसेना कमीशन कर रहा है। अब रूस से बनी आगे कोई फ्रीगेड भारतीय नौसेना कमीशन करने की योजना में नहीं है। इससे पहले तक 90 प्रतिशत डिफेंस एक्सपोर्ट भारत रूस से करता था। 2009 तक 76 प्रतिशत हो गया और अब 2024 आते आते ये 36 प्रतिशत तक गिर चुका है। रूस पर हमारी निर्भरता कम हो रही है। वहीं फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों से भारत की निर्भरता बढ़ रही है। इसके पीछे का मकसद साफ है कि भारत एकाधिकारिक रूप से केवल रूस पर ही अपनी डिफेंस निर्भरता नहीं रखना चाहता था। इसलिए फ्रांस और अमेरिका से भी भारत हथियार खरीदने लगा। भारत ने रूस से फ्रीगेड को कमीशन करना बंद किया, टैंक की निर्भरता को भी खत्म किया। अब भारत सुखोई 57 जैसे ऑफर को भी रिजेक्ट करता नजर आ रहा है। जिसके बाद सवाल ये उठ रहे हैं कि रूस से भारत हथियार नहीं लेगा तो आखिर भारत आगे क्या करने वाला है?
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सुखोई 57 के साथ भारत के सामने रूस ने सोर्स कोड, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और सुखोई 35 एम का ऑफर भी भारत को दिया। लेकिन कई सारी मीडिया रिपोर्ट बता रही है कि भारत सुखोई 57 को नहीं खरीदेगा। भारत अपनी हथियारों को लेकर निर्भरता रूस या किसी भी देश से कम कर रहा है। भारत अपना पूरा फोकस स्वदेशी उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (एएमसीए) के ऊपर रखना चाह रहा है और कुछ समय के लिए किसी भी प्रकार के फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट को न खरीदे। भारतीय वायुसेना की ज़रूरत सिर्फ़ स्टेल्थ फ़ाइटर की नहीं है - यह ख़ास तौर पर दो सीटों वाले, दो इंजन वाले स्टेल्थ फ़ाइटर की है! यह याद रखना ज़रूरी है कि पांचवीं पीढ़ी के फ़ाइटर एयरक्राफ्ट (FGFA), जिसे भारत और रूस ने एक बार मिलकर विकसित करने की योजना बनाई थ। एसयू-57 के दो सीटों वाले वैरिएंट के तौर पर देखा गया था। हालाँकि, भारत ने FGFA प्रोजेक्ट से बाहर निकलने का फ़ैसला किया, क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण कमियाँ थीं - जैसे कि विमान में सुपरक्रूज़ जैसी पाँचवीं पीढ़ी की ज़रूरी सुविधाओं की कमी और इसकी अप्रमाणित परिचालन क्षमता।
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ऐसा कहा जाता है कि भारत ने कभी भी पूरी तरह से डील को रिजेक्ट नहीं किया है। हालाँकि इसने FGFA परियोजना में भागीदारी को निलंबित कर दिया, लेकिन बाद में विमान खरीदने का विकल्प खुला रखा। जुलाई 2018 में, तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, फरवरी में रूसियों को यह बता दिया गया था कि वे हमारे बिना लड़ाकू विमान विकसित करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन विकल्प अभी भी बना हुआ है, और हम बाद में वापस जाकर लड़ाकू विमान खरीदने के लिए कह सकते हैं।
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साल 2019 में वायु सेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने रूसी सशस्त्र बलों के आधिकारिक समाचार पत्र क्रास्नाया ज़्वेज़्दा को बताया कि भारत Su-57 को कार्रवाई में देखने और रूस द्वारा भारत में विमान का प्रदर्शन करने के बाद इस पर निर्णय लेगा। तब से, Su-57 को संघर्ष क्षेत्रों में परिचालन रूप से तैनात किया गया है, और रूसी और पश्चिमी दोनों रिपोर्टों के अनुसार, इसका प्रदर्शन सराहनीय रहा है। इसके अलावा, सुपरक्रूज़ क्षमता की कमी पर चिंताओं को दूर किया जा रहा है।
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