बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ने वाला तालिबान, अब क्यों करने लगा है उनका सरंक्षण?

Buddha statues in  Taliban

वर्ष 2008 में हामिद करजई प्रशासन ने चीनी कंपनी के साथ खनन के लिए 30 वर्षों का अनुबंध किया था। लेकिन यहां हो रही लगातार हिंसा की वजह से यह अनुबंध पूरा नहीं हो पाया और 2014 में ही चीन के लोग खनन का काम अधूरा छोड़ कर चले गए

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है और तालिबान अफगानिस्तान को चला रहा है। तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर तो कब्जा कर लिया लेकिन उसे भी यह बात अच्छे से मालूम है कि देश सिर्फ बंदूकों के बल पर ही नहीं चलाया जा सकता। देश को चलाने के लिए जरूरत होती है रुपये-पैसों की यानी आपका देश आर्थिक रूप से संपन्न होना चाहिए। आर्थिक रूप से संपन्न होना तो दूर की बात है अफगानिस्तान इस वक्त आर्थिक संकट के दलदल में फंसा हुआ नजर आ रहा है। इतना ही नहीं तालिबान जबसे अफगानिस्तान की सत्ता पर बैठा है, तमाम दूसरे देशों ने उस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। ऐसे में तालिबानी चीन से उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि चीन आर्थिक संकट से उबरने में उनकी मदद कर सकता है। चीन को लुभाने के लिए तालिबानी अब बुद्ध प्रतिमा का संरक्षण कर रहे हैं।

बता दें कि चीन में बुद्ध को काफी माना जाता है। तालिबानियों की ओर से बामियान बुद्ध की मूर्ति तोड़ने पर चीन में काफी विरोध हुआ था। मसलन, तालिबान को भी यह बात पता है कि कट्टरवाद का रास्ता उसके देश के विकास और निवेश के रास्ते में रुकावट पैदा कर सकता है। लिहाजा अब तालिबान अपने स्वार्थ में और चीनी निवेश के लिए बुद्ध की प्रतिमाओं का संरक्षण कर रहा है। कभी बुद्ध की मूर्ति तोड़ने वाले तालिबानी आज चीन को लुभाने के लिए तमाम कोशिशें कर रहे हैं।

तालिबान प्रमुख हकुमुल्लाह मुज़ारिब ने कहा कि यहां पहली सदी के बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनाए गए मठ के भग्नावशेष हैं। मुज़ारिब ने कहा पहले वह अमेरिकी सैनिकों से लड़ता था। अमेरिकी फौज वापस चली गई तो उसे इस जगह की रखवाली का काम दे दिया गया है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अफगानिस्तान अकूत खनिज भंडार है। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद कई देश चाहते हुए भी यहां निवेश नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। अगर चीन यहां निवेश करता है तो अफगानिस्तान को बड़ा फायदा होगा और उसे अपनी आर्थिक सेहत सुधारने में मदद मिलेगी। आपको बता दें वर्ष 2008 में हामिद करजई प्रशासन ने चीनी कंपनी के साथ खनन के लिए 30 वर्षों का अनुबंध किया था। लेकिन यहां हो रही लगातार हिंसा की वजह से यह अनुबंध पूरा नहीं हो पाया और 2014 में ही चीन के लोग खनन का काम अधूरा छोड़ कर चले गए।

बता दें दो दशक पहले जब इस्लामी कट्टर तालिबान पहली बार सत्ता में आए थे , तो उन्होंने देश के दूसरे हिस्सों में बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था। तालिबानियों ने बुद्ध की प्रतिमाओं को बुत परस्त कहते हुए नष्ट किया था।

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