Prabhasakshi NewsRoom: Erdogan नहीं सुधरेंगे, Turkiye President ने संयुक्त राष्ट्र में फिर उठाया Kashmir मुद्दा, भारत ने किया पलटवार

Recep Tayyip Erdogan
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प्रश्न यह है कि तुर्किये और पाकिस्तान की दोस्ती आगे क्या गुल खिला सकती है? देखा जाये तो तुर्किये लंबे समय से पाकिस्तान का रणनीतिक साझीदार रहा है। रक्षा सहयोग, ड्रोन तकनीक और इस्लामी उम्माह की राजनीति में दोनों की निकटता साफ झलकती है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) का मंच दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं पर विमर्श और सहयोग का केंद्र होना चाहिए, किंतु दुर्भाग्यवश तुर्किये के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन बार-बार इसका दुरुपयोग करके कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछालने का प्रयास करते हैं। इस वर्ष भी उन्होंने अपने भाषण में कश्मीर का उल्लेख करते हुए संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के आधार पर समाधान की बात कही और भारत-पाकिस्तान को ‘वार्ता’ का परामर्श दिया। सतही तौर पर यह बयान शांति की वकालत करता प्रतीत होता है, लेकिन वस्तुतः यह पाकिस्तान समर्थक रुख और भारत के आंतरिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप है।

हम आपको बता दें कि भारत का दृष्टिकोण हमेशा साफ और अडिग रहा है— कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इस पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया। यदि पाकिस्तान से बातचीत होती भी है तो वह केवल एक विषय पर होगी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoJK) को भारत को कब लौटायेगा। इसके अलावा किसी प्रकार की वार्ता संभव नहीं और यह भी तभी संभव होगी जब पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को बंद करेगा।

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देखा जाये तो तुर्किये का लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाना उसकी कुत्सित मानसिकता को दर्शाता है। यह वही तुर्किये है, जिसने फरवरी 2023 में आए विनाशकारी भूकंप के समय भारत की मानवीय सहायता ‘ऑपरेशन दोस्त’ की उदारता की सराहना करने की बजाय भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के विरुद्ध पाकिस्तान का पक्ष लिया। भारत ने सबसे पहले अपनी त्वरित राहत टीम और चिकित्सकीय सहायता भेजी थी, किंतु तुर्किये ने उसका सम्मान नहीं किया। इसके उलट वह पाकिस्तान के आतंकी ढांचे और रणनीतिक हितों को बढ़ावा देता रहता है।

ऑपरेशन सिंदूर इसका हालिया उदाहरण है। मई 2025 में पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान गई। इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक सैन्य कार्रवाई की। इन अभियानों के दौरान पाकिस्तान को तुर्किये से ड्रोन सहायता मिली, जिसे भारतीय सुरक्षा बलों ने मार गिराया। यह घटना केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि तुर्किये को सीधा संदेश था कि भारत किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग से आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों को बख्शेगा नहीं।

अब प्रश्न यह है कि तुर्किये और पाकिस्तान की दोस्ती आगे क्या गुल खिला सकती है? देखा जाये तो तुर्किये लंबे समय से पाकिस्तान का रणनीतिक साझीदार रहा है। रक्षा सहयोग, ड्रोन तकनीक और इस्लामी उम्माह की राजनीति में दोनों की निकटता साफ झलकती है। पाकिस्तान पहले ही चीन के साथ अपनी गलबहियों से भारत के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में यदि तुर्किये का सैन्य सहयोग और बढ़ता है तो यह दक्षिण एशिया में सामरिक असंतुलन की कोशिश हो सकती है। विशेषकर ड्रोन तकनीक, साइबर युद्ध और आतंकवादी संगठनों को रसद पहुँचाने के क्षेत्रों में दोनों का गठजोड़ भारत की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे सकता है।

हालाँकि, भारत की रणनीतिक तैयारी, कूटनीतिक सक्रियता और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता इस खतरे को प्रभावी ढंग से संतुलित करती है। भारत ने कई बार दिखाया है कि वह किसी भी प्रत्यक्ष खतरे का जवाब देने में सक्षम है। चाहे 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो, 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक या 2025 का ऑपरेशन सिंदूर हो, भारत ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद का जवाब केवल शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से दिया जाएगा।

कूटनीतिक स्तर पर भी भारत ने तुर्किये की बयानबाजी का हर बार करारा जवाब दिया है। संयुक्त राष्ट्र मंच पर भारतीय प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और किसी भी विदेशी हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय तुर्किये की बयानबाजी को गंभीरता से नहीं लेता। अधिकांश देश भारत की संवैधानिक स्थिति और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मान्यता देते हैं।

इसके अतिरिक्त, तुर्किये और पाकिस्तान की दोस्ती का दूसरा पहलू यह भी है कि दोनों ही देश अपनी-अपनी घरेलू समस्याओं से जूझ रहे हैं। पाकिस्तान आर्थिक दिवालियापन की कगार पर है और उसकी राजनीति गहरे संकट में है। वहीं तुर्किये की अर्थव्यवस्था भी लगातार कमजोर हो रही है और एर्दोआन घरेलू स्तर पर असंतोष का सामना कर रहे हैं। ऐसे में कश्मीर मुद्दे को उठाना उनके लिए घरेलू राजनीति में अपनी छवि सुधारने का साधन भी है। लेकिन यह नीति अल्पकालिक है और दीर्घकाल में तुर्किये की विश्वसनीयता को ही कमजोर करती है।

बहरहाल, तुर्किये का बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाना उसकी पाकिस्तान-परस्त नीति और राजनीतिक विवशताओं का परिणाम है। किंतु भारत के लिए यह किसी चुनौती से अधिक अवसर है। यह अपने कड़े रुख और स्पष्ट नीति के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखाने का अवसर है कि भारत आतंकवाद और तीसरे देश के हस्तक्षेप के खिलाफ जीरो टॉलरेंस रखता है। पाकिस्तान और तुर्किये की यह दोस्ती चाहे जितनी ‘कुत्सित मानसिकता’ से प्रेरित हो, भारत की कूटनीति और सामरिक शक्ति उसे हर बार मात देने के लिए पर्याप्त है। पूरा का पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा— इस सच्चाई को न तो तुर्किये बदल सकता है, न पाकिस्तान।

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