रूस के हमलों से बचकर निकले यूक्रेनी नागरिकों ने आपबीती सुनाई

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रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के पूर्वी शहर सिविएरोदोनेत्स्क और लिसिकांस्क पर हमले तेज कर दिए हैं। इन इलाकों से बचकर निकले लोगों का कहना है कि बीते एक हफ्ते से गोलाबारी तेज हो गई है, जिससे वे बेसमेंट में बने बम रोधी केंद्रों से बाहर निकल ही नहीं पा रहे थे।

कीव। रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के पूर्वी शहर सिविएरोदोनेत्स्क और लिसिकांस्क पर हमले तेज कर दिए हैं। इन इलाकों से बचकर निकले लोगों का कहना है कि बीते एक हफ्ते से गोलाबारी तेज हो गई है, जिससे वे बेसमेंट में बने बम रोधी केंद्रों से बाहर निकल ही नहीं पा रहे थे। रूस की भारी गोलाबारी के बावजूद कुछ लोग इन इलाकों से निकलकर 130 किलोमीटर दक्षिण स्थित पोक्रोवस्क पहुंचे और शनिवार को निकासी ट्रेन की मदद से पश्चिमी यूक्रेन रवाना हुए, जो युद्धक्षेत्र से दूर है।

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लुहांस्क क्षेत्र में यूक्रेन के नियंत्रण वाले आखिरी अहम शहरों-सिविएरोदोनेत्स्क और लिसिकांस्क में लड़ाई तेज हो गई है। वहीं, लुहांस्क और दोनेत्स्क क्षेत्र से बना डोनबास रूसी सेना के ताजा अभियान के केंद्र में है, जिसे पूर्वी यूक्रेन का औद्योगिक केंद्र माना जाता है। मॉस्को समर्थित अलगाववादियों का पिछले आठ साल से डोनबास के एक हिस्से पर कब्जा है और अब रूसी सेना पूरे डोनबास पर अधिकार स्थापित करने का प्रयास कर रही है। बमबारी के बीच अपने 18 महीने के बच्चे को गोदी में लेकर किसी तरह वहां से निकली याना स्काकोवा की आंखें आंसू से भरी थीं। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि वह लगातार हो रही बमबारी के दौरान बेसमेंट में थीं और अंतत: पति को पीछे छोड़ अपने 18 महीने और चार साल के बेटों के साथ वहां से निकलीं। याना ने बताया कि लड़ाई के शुरुआती दिनों में उन्हें बेसमेंट से निकलकर सड़क पर खाना बनाने और बच्चों को बाहर खेलने देने का मौकामिल ही जाता था, लेकिन बीते एक हफ्ते से बमबारी तेज हुई है।

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उन्होंने बताया कि पिछले पांच दिन से लोग बेसमेंट से बिल्कुल भी बाहर नहीं निकल पाए हैं। याना ने कहा, ‘‘वहां स्थिति बेहद खराब है। बाहर निकलना बहुत खतरनाक है।’’ उन्होंने बताया कि शुक्रवार को पुलिस उन्हें बेसमेंट से निकालने पहुंची, जहां नौ बच्चों सहित 18 लोग बीते दो से ढाई महीने से रह रहे थे। याना ने कहा, ‘‘हम वहां बैठे थे, तभी यातायात पुलिस आई और कहा कि आपको जल्द से जल्द निकलना चाहिए, क्योंक अब लिसिकांस्क में रहना सुरक्षित नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि भारी बमबारी और बिजली, पानी व गैस की कमी के बावजूद कोई शहर छोड़कर जाना नहीं चाहता था। बकौल याना, ‘‘हम वहां से आना नहीं चाहते थे, लेकिन अपने बच्चों की खातिर निकला पड़ा।’’ ओक्साना की उम्र 74 साल है और उनकी कहानी भी अलग नहीं है। उन्होंने कहा कि शुक्रवार को विदेशी स्वयंस्वेकों ने उन्हें उनके 86 वर्षीय पति के साथ लसिकांस्क से निकाला। भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए ओक्साना ने कहा, ‘‘मैं कहीं जा रही हूं, लेकिन कहां, पता नहीं। अब मैं एक भिखारी हूं, जिसके पास कोई खुशी नहीं है। मुझे अब मदद के सहारे जीना होगा। इससे अच्छा तो यही है कि मुझे मौत आ जाए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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