Rahu Antardasha: छाया ग्रह राहु को करें प्रसन्न, जानें महादशा और अंतर्दशा की अवधि, दूर करें हर संकट

Rahu Antardasha
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राहु-केतु की कुदृष्टि पड़ने से व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राहु की अंतदर्शा कितने साल तक चलती है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि इन मायावी ग्रहों को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। यह दोनों छाया ग्रह एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। वर्तमान समय में छाया ग्रह केतु सिंह राशि में गोचर कर रहे हैं और मायावी ग्रह राहु कुंभ राशि में विराजमान हैं। वहीं राहु-केतु की कुदृष्टि पड़ने से व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राहु की अंतदर्शा कितने साल तक चलती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए जानेंगे कि इन मायावी ग्रहों को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं।

राहु ग्रह को ऐसे करें प्रसन्न

भगवान शिव की पूजा करने से राहु और केतु ग्रह प्रसन्न होते हैं। इसलिए सोमवार और शनिवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद काले तिल मिश्रित गंगाजल से भोलेनाथ का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद बहती जलधारा में जटा वाला नारियर प्रवाहित करें। काले कुत्ते को रोटी खिलाने से भी राहु और केतु की कुदृष्टि खत्म हो जाती है।

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राहु की अंतर्दशा

ज्योतिषियों की मानें, तो राहु की अंतर्दशा 2 साल 8 महीने की होती है। वहीं राहु की महादशा 18 साल की होती है। राहु महादशा के समय सबसे पहले राहु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद सभी शुभ और अशुभ ग्रहों की अंतर्दशा आती है। गुरु, सूर्य और चंद्र की अंतर्दशा में राहु शुभ फल नहीं देते हैं। राहु की कृपा होने पर जातक को जीवन में तमाम तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। वहीं व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति और तरक्की की राह पर अग्रसर रहता है।

शिव मंत्र

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।

विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

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