उथल-पुथल भरा रहा है कर्नाटक का राजनीतिक इतिहास
कर्नाटक चुनाव में मतदान की तारिख जैसे- जैसे नजदीक आ रही वैसे-वैसे राजनीतिक बयानों में काफी तल्खी देखी जा रही है। वैसे कर्नाटक दोनो पार्टियों के लिए नाक का सवाल बना हुआ है।
कर्नाटक चुनाव में मतदान की तारीख जैसे- जैसे नजदीक आ रही वैसे-वैसे राजनीतिक बयानों में काफी तल्खी देखी जा रही है। वैसे कर्नाटक दोनो पार्टियों के लिए नाक का सवाल बना हुआ है। पर सवाल यह उठता है कि आखिर कर्नाटक इतना महत्वपूर्ण क्यो है? तो हम आपको बता दे कि राजनीतिक दृष्टि से कर्नाटक का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। 1 नवंबर, 1973 को इस राज्य का पुनर्गठन किया गया था। 1973 में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। यही कारण रहा है कि यहां कि राजनीति में मैसूर घराने का काफी प्रभाव रहता है। इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई दफे इसने भारतीय राजनैतिक इतिहास को भी अनुप्राणित किया है। फिलवक्त, अपने स्वर्णिम अतीत से शिक्षा और विभिन्न सियासी उतार-चढ़ावों से सबक लेते हुए मौजूदा कर्नाटक अपने समुज्ज्वल भविष्य को गढ़ने के लिए तत्पर है, संघर्षशील है। यही वजह है कि भारतीय राजनैतिक इतिहास में सदैव ही इसका महत्व बना रहा, जो आगे भी कम नहीं होगा। अमूमन यह प्रदेश दक्षिण भारत का एक गौरवशाली प्रदेश माना गया, और है भी।
कर्नाटक के सियासी इतिहास ने समय के साथ कई करवटें भी बदलीं हैं। इसका प्रागैतिहास पाषाण युग तक जाता है। इसने कई युगों का विकास देखा है और कई ऊंचाइयां भी छुई हैं। मध्य एवं नव पाषाण युगों के साक्ष्य भी यहां पाये गए हैं। खास बात यह कि हड़प्पा में खोजा गया स्वर्ण भी कर्नाटक की खानों से ही निकला था, जिसने इतिहासकारों को 3000 ई.पू. के कर्नाटक और सिंधु घाटी सभ्यता के बीच के संबंधों को खोजने पर विवश किया।
डी देवराज उर्स और सिद्दारमैया में यह है समानता
1973 में पुनर्गठन के बाद से यहां की राजनीतिक हलचल देखने वाली रही है। डी देवराज उर्स जो की कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री थे के बाद 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री हैं सिद्दारमैया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां की राजनीति कितनी उथल-पुथल वाली रही है। देश की राजनीति में गहरा प्रभाव छोड़ने वाले कई राजनेता यहां से निकले हैं। चाहें वो एस. एम. कृष्णा हो या पुर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा। इसके राजनीतिक मह्तव को समझते हुए वर्तमान सरकार में कई मंत्री कर्नाटक से है। इस समय लोकसभा में भी नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से ही हैं।
कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन का इतिहास है पुराना
1977 से 2013 के बीच ऐसे मौके कई बार आए जब यहां राष्ट्रपति शासन लगाने पड़े। देश के अन्य हिस्सो की तरह ही यहां पर ज्यादातर शासन कांग्रेस का रहा है। 1983 में जनता पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े ने यह परंपरा तोड़ी थी पर शासन ज्यादा दिन नहीं रहा था। उसके बाद जतना दल की तरफ से 1994 में एच. डी. देवेगौड़ा गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनें। 2006 में BJP-JDs गठबंधन की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने देवेगौड़ा के बेटे एच. डी. कुमारस्वामी। पर यह भी सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई। 2008 में पहली बार यहां बी. एस. येदियुरप्पा के नेतृत्व में BJP की सरकार बनी पर 5 साल के शासन में BJP को 3 मुख्यमंत्री बदलने पड़े।
फिलहाल कर्नाटक 2019 के पहले का सेमीफाइनल बना हुआ है जिसके लिए तमाम राजनीतिक दल जुटे हुए है। अगर कांग्रेस जीती तो लगातार हार के बाद उसके लिए बड़ी राहत की बात होगी वहीं BJP इस जीत के बाद मनोवैज्ञानिक लाभ लिए 2019 के चुनाव मैदान में उतरना चाहेगी साथ ही साथ दक्षिण भारत में पार्टी का जनाधार बढ़ने की संभावना बनेगी।
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