शांतिपूर्ण चुनावों की समृद्ध परम्परा (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jul 28 2025 6:11PM

शांतिपूर्वक चुनावों के दौरान झूठी ख़बरें उगाने, पकाने, बांटने, प्रचारित और प्रसारित करने पर सख्त किस्म की कार्रवाई करने को कहा जाता है। धार्मिक स्थलों का प्रयोग चुनाव प्रचार करने के लिए नहीं कर सकते। कोई व्यक्ति राजनीतिक दल, जातिगत एवं धार्मिक भावनाओं को भड़का नहीं सकता।

हमारे यहां कोई भी चुनाव, शांतिपूर्ण तरीके से करवाने की संपन्न परम्परा है। इस बात से पूरी दुनिया वाकिफ है कि हम इस मामले में भी स्थापित विश्वगुरु हैं। चुनाव से सम्बद्ध हर सरकारी विभाग, अपना ही नहीं दूसरों का काम भी पूरी मुस्तैदी से करते हैं ताकि कोई कमी न रहे। आम जनता शालीन, अनुशासन प्रिय है। हमारे राजनेता अपना नैतिक कर्तव्य यानी सभी तरह की जिम्मेदारियां शांत तरीके से निबटाने के अभ्यस्त हैं। वे कभी भी जान बूझकर कानून के खिलाफ नहीं चलते. सार्वजनिक अनुशासन कभी नहीं तोड़ते।

दिलचस्प यह है कि फिर भी औपचारिकता निभाने के लिए पंचायत से लेकर सभी चुनावों में निषेधाज्ञा ज़रूर लागू कर दी जाती है। यह संभवत इसलिए होती होगी कि कहीं गलती से, मौसम खराब होने की वजह से, मानसून जल्दी आने के कारण या पत्नी से झगड़ा होने के कारण, कुछ गलत होने की आशंका हो तो त्वरित कानूनन कार्रवाई हो सके। गलत काम, अनैतिक या असामाजिक हरकतें करने वालों को बेहद ज़िम्मेदार प्रशासन और उसके सख्त कानून का डर निरंतर रहे।  

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निषेधाज्ञा में किसी तरह की बैठक या सभा नहीं हो सकती लेकिन रोड शो या जुलूस और जनसभा की अनुमति ले सकते हैं। कहीं भी पांच से अधिक व्यक्ति एकत्रित नहीं हो सकते. वह बात दीगर है कि हमारे यहां तो दो बंदे ही ग्यारह खिलाड़ियों जैसी टीम जैसा खेला कर जाते हैं। मेहनती बंदों पर इतने ज़्यादा प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं कि बंदा, शराफत से कुछ गलत नहीं कर सकता। नामांकन में सिर्फ प्रत्याशी और प्रस्तावक समेत कुल तीन लोग ही जा सकते हैं हालांकि तैयार सैंकड़ों होते हैं। स्कूलों, न्यायालयों, चिकित्सालयों और धार्मिक स्थलों के आस पास लाऊड स्पीकर का प्रयोग मना हो जाता है। वैसे हमारे यहां मटर आलू बेचने वाला भी छोटा सा स्पीकर लगाकर रेट की घोषणा सुनवाता रहता है और मोबाइल पर वीडियो देखने की ज़िम्मेदारी भी पूरी करता रहता है।   

शांतिपूर्वक चुनावों के दौरान झूठी ख़बरें उगाने, पकाने, बांटने, प्रचारित और प्रसारित करने पर सख्त किस्म की कार्रवाई करने को कहा जाता है। धार्मिक स्थलों का प्रयोग चुनाव प्रचार करने के लिए नहीं कर सकते।  कोई व्यक्ति राजनीतिक दल, जातिगत एवं धार्मिक भावनाओं को भड़का नहीं सकता। यह आदेश लागू कर बहुत मुश्किल काम करने को कहा जाता है लेकिन वास्तव में इसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती क्यूंकि यह सब हमारे रोम रोम में, जंगली ज़हरीली घास की तरह पहले ही फ़ैली हुई है। मतदाताओं को डराने, धमकाने, बहलाने और फुसलाने की कोशिश करने की भी काफी सख्त मनाही होती है। यह काम भी काफी मुश्किल होते हैं लेकिन क्यूंकि चुनाव शांतिपूर्ण होने होते हैं इसलिए यह काम बेहद शांतिपूर्ण शैली में संपन्न कर लिए जाते हैं। पंचायत के चुनावों में तो कई नए असामाजिक नायकों का राजनीतिक कैरियर जान पकड़ता है।

इतने ज्यादा वाहन होने के बावजूद मतदाताओं को वाहन से मतदान करवाने नहीं लाया जाता लेकिन अंकल आंटी को तो ले ही आते हैं। सरकारी वाहनों का प्रयोग, चुनाव प्रचार के लिए वाकई नहीं कर सकते लेकिन सरकारी मशीनरी भी एक चीज़ होती है। यह बात प्रशंसनीय है कि शांतिपूर्ण चुनावों के लिए सभी पक्ष अपनी अपनी तरह और पसंद का अनुशासन बनाए रखते हैं ताकि स्वस्थ, नैतिक, शांतिपूर्ण, लोकतान्त्रिक परम्पराएं स्थापित रहे।  

- संतोष उत्सुक

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