भारत में कहीं एक जगह नहीं टिकते थे घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन, दिल के अंदर बसा था साहित्य

Rahul Sankrityayan
निधि अविनाश । Apr 9 2022 10:16AM

राहुल सांकृत्यायन को कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया गया। वह 1919 में जलियांवालाबाग में क्रूर नरसंहार के बाद देश के साम्राज्यवाद विरोधी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और कई बार जेल भी गए।

आधुनिक भारत के बेहतरीन विद्वानों में से एक राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक सुदूर गांव में हुआ था। उनके पिता, गोवर्धन पांडे और माता, कुलवंती, एक पवित्र और रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से थे।सांकृत्यायन ने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था और उनका पालन-पोषण उनकी नानी ने किया था। बता दें कि, राहुल सांकृत्यायन विद्वान, सांकृत्यायन अत्यधिक रचनात्मक थे और तीस से अधिक भाषाओं को जानते थे। उन्होंने दुनिया के कई हिस्सों की यात्रा भी की थी और कहा जाता है कि वह कभी-कभी तो पैदल भी यात्रा करने निकल जाते थे।

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सांकृत्यायन को कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया गया। वह 1919 में जलियांवालाबाग में क्रूर नरसंहार के बाद देश के साम्राज्यवाद विरोधी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और कई बार जेल भी गए। उन्होंने समाजशास्त्र, इतिहास, धर्म, दर्शनशास्त्र, भाषाविज्ञान, विज्ञान, जीवनी, लोककथाओं सहित 146 पुस्तकें प्रकाशित कीं।सांकृत्यायन भारत के कई हिस्सों का दौरा करने के अलावा तिब्बत, श्रीलंका, ईरान, चीन और सोवियत संघ जैसे देशों में भी गए। कहने की जरूरत नहीं है कि उन दिनों उन देशों की यात्रा करना आसान नहीं था और कभी-कभी उन्हें ऐसा करने में बड़ी मात्रा में जोखिम उठाना पड़ता था। लेकिन फिर भी उनकी यात्रा रूकी नहीं।

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बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद वह बाद में उन्होंने मार्क्सवादी समाजवाद की ओर रुख किया।हिंदी में उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है वोल्गा से गंगा (वोल्गा से गंगा तक की यात्रा)। यह 1942 में प्रकाशित हुआ था। विक्टर कीरन द्वारा इस किताब की अंग्रेजी में अनुवाद 1947 में फ्रॉम वोल्गा टू गंगा के रूप में प्रकाशित हुआ था। जानकारी के लिए बता दें कि, सांकृत्यायन की दस से अधिक पुस्तकों का बांग्ला में अनुवाद और प्रकाशन हो चुका है। 1963 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और 1958 में उनकी पुस्तक मध्य एशिया का इतिहास के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इस महान आत्मा ने 14 अप्रैल1963 में अंतिम सांस ली।

- निधि अविनाश

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