गिरा हुआ आदमी (व्यंग्य)

Fallen man
संतोष उत्सुक । Jul 17 2020 7:28PM

आपस में हो रहे इशारों से मान रहे थे कि सड़क पर गिरे पड़े बंदे को पक्का कोरोना होगा। उन्हें पता था अस्पताल में भर्ती होना बहुत मुश्किल है, डॉक्टर और नेता खुद दुखी हो चुके हैं इसलिए किसी को फोन करने का फायदा नहीं है।

बाइक चुरा, उड़ाकर ले जाते हुए युवक ने सड़क किनारे खड़े बंदे को गिराना ही था। वहां रुकने में अब उसे खतरा था। मास्क लगाना अच्छा नहीं लगता था उसे, लेकिन सड़क पर गिर चुके प्रौढ़ व्यक्ति ने लगाया हुआ था। गिर कर उठ न पाया वह व्यक्ति, पता नहीं कहां से आकर सड़क किनारे खड़ा हो गया था। शायद बहुत दिनों से घर में कैद होगा, बाहर की दुनिया भूल गया होगा। यह स्पष्ट है उसे कोरोना नहीं था अगर होता तो ज़रूर समझदारों की तरह घर पर क्वारंटीन ही रहता। उसे देखकर वहां गलती से एक बाइक रुका जिस पर दो बंदे हेलमेट पहने, मास्क लगाए सुरक्षित बैठे थे। वे बात नहीं कर रहे थे।

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आपस में हो रहे इशारों से मान रहे थे कि सड़क पर गिरे पड़े बंदे को पक्का कोरोना होगा। उन्हें पता था अस्पताल में भर्ती होना बहुत मुश्किल है, डॉक्टर और नेता खुद दुखी हो चुके हैं इसलिए किसी को फोन करने का फायदा नहीं है। उन्होंने अच्छी तरह समझ लिया था कि पहचान की कमी के कारण भी जल्दी और सही इलाज करवाना मुश्किल होता है। पहला सोच रहा था इसमें लक्षण नहीं होंगे तभी टेस्ट भी नहीं किया होगा, दूसरा सोच रहा था कहीं परेशान होकर मरने सड़क पर तो नहीं आ गया। हिन्दुस्तानी आराम से मानते भी तो नहीं हैं। यह तो मंत्री के साथ ही हो सकता है कि शरीर में लक्षण भी मौजूद हों और टेस्ट भी निगेटिव आए। रात का समय था और कोई रुक भी नहीं रहा था। 

दोनों अपने आप से पूछने लगे थे कि हम यहां क्यूं रुके। बाइक भी मानने लगा था कि यहां नहीं रुकना चाहिए था। वे गिरे हुए बंदे से मानसिक, सामाजिक व शारीरिक दूरी बनाए हुए थे, पास जाने का तो सवाल ही नहीं था। एक बंदा वीडियो बनाने की सोचने लगा तो दिमाग ने कहा, मास्क पहना हुआ है, सर पर कपड़ा बंधा है इसे कौन पहचानेगा। दूसरा बंदा जीवन में एक और वीडियो बनाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया, वह निश्चिंत था उसे काफी लाइक्स और कमेंट्स मिल ही जाएंगे। उसे विशवास था इसके घर वाले शुक्र मना रहे होंगे कि अच्छा हो गया खुद ही निकल गया। अगर बंदा साठ से ऊपर का है तो तर गया समझो।

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फाइनली, हमने क्या लेना है का इशारा कर दोनों निकल लिए। उनके जाने के कुछ देर बाद एक अधनंगा भिखारीनुमा व्यक्ति तथाकथित लाश के नज़दीक आया। उसे भी कोरोना बारे पता था, मुंह पर कपडा लपेटे, बेझिझक नज़दीक गया और पूछा, मर गए क्या। मैं जिंदा हूं भाई, उठा नहीं जा रहा, पता नहीं कौन मुझे टक्कर मारकर भाग गया। घर में दुखी हो गया था, चुपके से देखने आया था दुनिया कैसी चल रही है। अधनंगे ने कहा दुनिया तो सलामत है, नंगे ज्यादा इक्कठे हो गए हैं। उसने गिरे हुए आदमी को उठा दिया था, अब वे दोनों सड़क के किनारे बैठ कर इस बारे चर्चा करने लगे थे कि नीली छतरी वाले ने कितनी सुन्दर दुनिया बनाई और स्वार्थी इंसान ने क्या से क्या कर डाला।

संतोष उत्सुक

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