समझदारों का निरोगी बचपन अभियान (व्यंग्य)

स्वास्थ्य जैसे अस्वस्थ विषय पर बातचीत हमेशा होती रहती है। यह विषय पर्यावरण की तरह बहुत महत्त्वपूर्ण है। नियमित सेमीनार और शिविर होते हैं जिनमें प्रेरक भाषण होते हैं। सम्बंधित विभाग के कर्मचारियों को सघन प्रशिक्षण दिया जाता है। वह बात अलग है कि इस दौरान समझदार कर्मचारी अपने निजी, पारिवारिक, सामाजिक कार्य भी सम्पन्न कर लेते हैं।
यह बात बहुत ज़्यादा तारीफ़ के काबिल है कि पिछले कई दशकों से, बेचारे बचपन को निरोगी रखने के संजीदा प्रयास निरंतर किए जाते रहे हैं। यह कार्य एक अभियान की तरह लिया जाता रहा है ठीक उसी तरह जैसे कुछ महीने के बच्चे, बड़े होते बच्चे, मोबाइल फोन को अपनाने के अभियान में लगे होते हैं। इस सन्दर्भ में उनके अभिभावक सरकारी योजनाओं की तरह, उनकी संजीदा मदद कर खुश हो रहे होते हैं। बचपन निरोगी अभियान के अंतर्गत महिलाओं को स्वस्थ रखने, बेहतर पोषित करने, उनके परिवार को सशक्त बनाने के लिए ईमानदार कोशिश की जाती है। वह बात अलग है कि सामान्य हस्पताल में, चिकित्सक के कमरे के बाहर लगी कतार में गर्भवती महिलाओं के बैठने के लिए स्टूल तक नहीं होता ।
स्वास्थ्य जैसे अस्वस्थ विषय पर बातचीत हमेशा होती रहती है। यह विषय पर्यावरण की तरह बहुत महत्त्वपूर्ण है। नियमित सेमीनार और शिविर होते हैं जिनमें प्रेरक भाषण होते हैं। सम्बंधित विभाग के कर्मचारियों को सघन प्रशिक्षण दिया जाता है। वह बात अलग है कि इस दौरान समझदार कर्मचारी अपने निजी, पारिवारिक, सामाजिक कार्य भी सम्पन्न कर लेते हैं। कई बार उन्हें आवश्यक राजनीतिक दायित्त्व निभाने के लिए, प्रशिक्षण अवधि से ही समय चुराना पड़ता है। इसका प्रशिक्षण उन्हें पहले से होता है। ज़िम्मेदार विभागों के सदभाव, सहयोग, समन्वय और जागरूकता की मिसालें कायम हैं। हमारे यशस्वी इतिहास का हिस्सा हैं। इतिहास साक्षी है कि समझदार लोग अपना कर्तव्य भली भांति निष्पादित करने का, त्रुटि रहित पक्का रिकार्ड तैयार रखते हैं। इसे तैयार करने के लिए माहिर लोग प्रयोग किए जाते हैं जो यह जानते हैं कि शिशु के संसार में आते ही उसकी स्वास्थ्य जंग शुरू हो जाती है। प्रसव के लिए आर्थिक स्थिति के अनुसार ही प्रबंध हो पाता है। परिस्थितियां ही उनकी देखभाल करती हैं। जीवन शैली के कारण ही हर आम या ख़ास महिला के शरीर में कोई न कोई कमी, परेशानी या बीमारी रहती है। शायद इस सब का असर बच्चे पर भी पड़ता होगा। इस दौरान समझदारों का निरोगी बचपन अभियान जारी रहता है। साफ़ सुथरे और स्वस्थ आंकड़ों का हलवा भी पकाया जा रहा होता है।
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दूसरे किस्म के माहिर लोग विज्ञापन तैयार कर रहे होते हैं। अभियान की योजनाएं बचपन पर आकर्षक, सुविधाजनक और लाभदायक रौशनी डालती है। जिनसे पता चलता है कि पैदा होने के बाद बच्चों के लिए उचित अंतराल पर लगने वाली वैक्सीन भी कतार में खड़ी होती हैं। उनसे यह भी पता चलता है कि कौन कौन सी बीमारी से बचाव होगा लेकिन यह तो भाग्य और आर्थिक परिस्थिति ही बताती है कि अमुक वैक्सीन किन किन नक्षत्रों में पैदा हुए शिशुओं को मिलने वाली है या किसी भी हालत में नहीं मिलने वाली है। उधर भूख और स्वास्थ्य की ज़रूरत, परेशान हालात में किसी अंधेरे कोने में पड़ी होती है जिसे वास्तव में नीति और राजनीति नहीं देखना चाहती।
हम यहां पर माताओं के कुपोषण बारे ज्यादा बात नहीं कर सकते क्यूंकि उनके लिए भी समझदार लोग हमेशा जागरूक रहते हैं। पुराने अभियान बेस्वाद होने पर नए अभियान स्वादिष्ट बना सकने की खिचड़ी पका रहे होते हैं।
- संतोष उत्सुक
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