धरती का सम्मान... (कविता)

honor-of-the-earth

कवि प्रवीण त्रिपाठी ने कविता धरती का सम्मान में ईश्वर द्वारा बनाई सृष्टि का बहुत सुंदर वर्णन किया है। कवि ने बताया कि ईश्वर ने जो प्रकृति बनाई है उसका आज के समय में मानव द्वारा कितना दोहन हो रहा है।

कवि प्रवीण त्रिपाठी ने कविता धरती का सम्मान में ईश्वर द्वारा बनाई सृष्टि का बहुत सुंदर वर्णन किया है। कवि ने बताया कि ईश्वर ने जो प्रकृति बनाई है उसका आज के समय में मानव द्वारा कितना दोहन हो रहा है। कवि ने इस दोहन को रोकने के साथ प्रकृति के अनुरूप कार्य करने का इस कविता में वर्णन किया है।

ईश्वर का था सृष्टि को, यह प्यारा वरदान।

उसने था भेजा यहाँ, बुद्धिमान इंसान।।1

पहले सब कुछ ठीक था, था धरती की शान।

प्रकृति साथ उसके खड़ी, देती सब कुछ दान।।2

किया बुद्धि उपयोग जब, आया नव विज्ञान।

भाँति-भाँति की खोज से, प्रगति चढ़ी परवान।।3

उन्नति का नित नव शिखर, लाता नया विहान।

दिल से सब विज्ञान का, लोग करें गुणगान।।4

बढ़ती जाती भूख नित, और बढ़ा अभिमान।

लालचवश कुंठित हुआ, मानव का तन ज्ञान।।5

शोषण करता धरा का, बिना दिए यह ध्यान।

अति दोहन लेगा कभी, धरती माँ के प्राण।।6

बना रखें यदि संतुलन, मद्धम करें उड़ान।

पृथ्वी पर जो संपदा, उसका रखिये मान।।7

जननी का दोहन रुके, बात धरें यह कान।

बदला लेगी यदि प्रकृति, आयेगा तूफान।।8

बदले अब सब आदतें, चलें नये अभियान।

जितना धरती से लिया, वापस देंगे दान।।9

जितना लूटा था कभी, बन कर के शैतान।

वह सब कुछ वापस करें, छोड़ें नवल निशान।।10

संसाधन रक्षण करें, दे दें जीवनदान।

जब लौटे वैभव पुनः,धरा करे अभिमान।11

प्रवीण त्रिपाठी

All the updates here:

अन्य न्यूज़