नेता, अभिनेता, दोस्त, दुश्मन या... (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Dec 17 2018 4:50PM

पूर्व शासक कहते हैं, इनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है या मानसिक दिवालियापन के शिकार हो गए हैं। कितनी आसानी से कह दिया, मानसिक संतुलन बिगड़ना क्या चाय में चीनी की जगह नमक डालना जैसे हुआ। प्रतिशोध की राजनीति करते हैं।

इनकी हिम्मत कमाल की है, लाजवाब हैं यह लोग, किस्मत क्या टनाटन है। कानून से ये डरते नहीं क्यूंकि कानून इनके ही दिमाग का बच्चा होता है। छोटे मोटे आदमी की तो क्या पूछ, यह तो उच्च न्यायालय के फैसलों को भी जेब में रखकर महीनों सोए रखने का दम रखते हैं। कुछ भी हो जाए, कोई कुछ भी कह दें इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता शानदार तरीके से पलटकर वो डायलॉग दागते हैं कि कई खबरें जन्म ले लेती हैं। अक्सर सर्दी के मौसम में इनके पुतले जलाना ज़्यादा अच्छा समझा जाता है ताकि आम कार्यकर्ता आग सेंक सकें। बेचारा आम आदमी चुप खड़ा और ठिगना होता जाता है। खबरची नया शब्द बाण लपकने के लिए इनकी टोह में रहते हैं। विकास की गंगा इनके मस्तिष्क में ही प्रस्फुटित हो सकती है। मंत्री शब्द ही मंत्र से बना है तभी तो पूरे पांच साल सभी नए मंत्र यहीं रचे और बांचे जाते हैं। लेकिन आह ! पांच साल ख़त्म होते देर नहीं लगती। इधर पांच साल से विपक्ष में रहे, बिन सत्ता अच्छा न लगने की अवधि शीघ्र समाप्त होने का नाम नहीं लेती। इस दौरान पक्ष और विपक्ष जी भर या अख़बार भर कर आपसी ‘तारीफ’ की सुंदर बानगियां पेश करते रहते हैं।

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पूर्व शासक कहते हैं, इनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है या मानसिक दिवालियापन के शिकार हो गए हैं। कितनी आसानी से कह दिया, मानसिक संतुलन बिगड़ना क्या चाय में चीनी की जगह नमक डालना जैसे हुआ। प्रतिशोध की राजनीति करते हैं। यह तो काफी सही लगा। फिर शासक मंत्री कहेंगे, सार्वजनिक छवि को धूमिल करने का प्रयास। छवि न होकर सफ़ेद पैंट हो गई और सबको सबके बारे में सार्वजनिक रूप से काफी पता होता है। विपक्ष का बयान छपेगा, प्रदेश में सरकार नाम की चीज़ नहीं। सचमुच अब सरकार भी एक ‘स्वादिष्ट’ चीज़ होने लगी है। देखने में आया है जिसकी सरकार होती है, वह सर ऊंचा कर चलता है और अच्छी किस्म की कार भी उसके पास होती है। और हां कार की लाल बत्ती चाहे उतार कर पूजा रूम में सजा दी जाए मगर दिमाग में बड़े आकार की लाल बत्ती सोते हुए भी जलती रहती है। विपक्ष कहता है  पढ़ाई पर राजनीति करते हैं। इस ब्यान को पढ़कर हमें ऐसा लगा कि इन सबने राजनीति शास्त्र तो पढ़ा नहीं, पता नहीं कि पढ़ाई भी की या नहीं। फिर पुरानी बड़े आकार की तोप में प्रयोग किए जाने वाले गोले जैसा ब्यान दागा गया, ताक़तवर नेता हूं विपक्षी पार्टी डरती है। अपनी तरफ से उन्होंने सही कहा, जिसके पास ताक़त होती है वह सबकुछ कर सकता है।

अंग्रेज़ी की एक पुरानी दो शब्द की बड़ी कहावत है, ‘पावर क्रप्टस’। पर शासक इस बात को क्यूं मानेंगे। अब विपक्ष, बेचारी नैतिकता को द्रौपदी की तरह खींच कर बीच में लाकर खड़ा कर बोलेगा, इनको नैतिक आधार पर पद पर बने रहने का अधिकार नहीं। इन्हें समझना चाहिए कि किसी भी शब्द के अर्थ संदर्भ के अनुसार ही लागू किए जाते हैं। शासक वर्ग के मंत्री कहेंगे, विपक्षियों से बिना पावर के रहा नहीं जाता। विपक्ष कहेगा, सरकार चलाना इनके बस का नहीं। सरकार तो स्वतः चलती नहीं बल्कि भागती फिरती है। उसे तो रोकना पड़ता है कि इधर मत जाओ, उधर जाओ। यह मत करना। मज़ेदार लगता है जब कुछ दिन बाद फिर दोनों पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के वरिष्ठ नेताओं का कामचलाऊ, घटिया सा पुतला फूँकते हैं।

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बयान छपता है, जनता बहकावे में नहीं आएगी, सब जानती है। जनता ही तो बहकावे में आ जाती है। सत्ता में लौटते ही विजिलेंस इन्क्वारी करवाएंगे। सबको पता है ऐसा करना अब साख बनाने के लिए ज़रूरी है। बंद करवा देंगे। सत्ता कुछ भी बंद कर सकती है। फिर शासक दल के महान नेता का ब्यान आएगा, विपक्ष बौखलाहट में ब्यान दे रहा है। शासक भूल जाता है जब वो शासित होगा तो ऐसा ही ब्यान देगा। पार्टी मंत्री के साथ चट्टान की तरह खड़ी है। विजयी होकर निकलेंगे। इतिहास गवाह है यह लोग हमेशा विजयी होकर निकलते भी हैं और बेचारी जनता हमेशा हार जाती है।

फिर कुछ शुभ अच्छे दिन आते हैं जब माननीय गवर्नर बुलाते हैं तो सभी बड़े अदब और सम्मान के साथ एक बहुत बढ़िया सोफे पर बैठ कर उत्कृष्ट चाय, समझदारी भरी बातें, नए दिलचस्प जोक्स और असली लग रही मुस्कुराहटें पीते हैं। जन्मदिन के एतिहासिक अवसर पर एक दूसरे को फोन पर बधाई भी देते हैं। मेरी पत्नी पूछती है, यह लोग क्या हैं, दोस्त, दुश्मन, राजनैतिक बैरी, जुमलेबाज, डायलागबाज़, नेता या शानदार अभिनेता। वह अच्छी तरह समझती है कि अगली बार शासक दल को अगर विपक्ष में बैठना पड़ा तो ब्यानों की अदला बदली हो जाएगी। यही तो लोकतंत्र है यानी लोक को चलाने का तंत्र। 

-संतोष उत्सुक

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