बाढ़ के मौसम में मानसून के चातक (व्यंग्य)

Monsoon season

हर साल आने वाली बाढ़ का पानी वफ़ादारी की मानसून को भी ढूंढ रहा है। बरसों पहले एक सरकारी बजट में वफादारी के लिए जाने जाने वाले कुत्तों को खिलाए जाने वाले बिस्कुट सस्ते किए गए थे, लगता है फिर से वैसा करने की ज़रूरत है।

समय चक्र है, परेशान कर रही बाढ़ को सूखा समझकर कर इंसान मानसून की खोज में उड़ने लगा है। बरसात का मौसम हर साल अच्छी तरह समझाना चाह्ता है कि स्वार्थी इंसान ने उसके कुदरती रास्ते कब से बंद कर रखे हैं। तकनीक प्रिय विकासजी के सीमेंट में दबे इंसान को पता नहीं चल रहा कि अब क्या करे।  वह सुबह से शाम तक ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत’ गुनगुनाता रहता है लेकिन पछताता नहीं और विनाश पर आत्मनिर्भरता बढती जाती है। बाढ़ को दैवीय आपदा मानकर, देश के मौसम विज्ञानी मानसून की बहुत ज्यादा उलझी गुत्थी सुलझाने के लिए पहली बार पक्षियों के दर पर दस्तक दे रहे हैं। निश्चित रूप से यह वैसा ही है कि चिकित्सक, कैमिकल युक्त दवाइयों की प्रतिक्रिया से परेशान होकर फिर पारम्परिक इलाज की शरण में जाए। विकास के साथ भुलाए जा चुके चातक पक्षियों को पटाया गया है। उनके सत्तर ग्राम के शरीर पर दो ग्राम का अत्याधुनिक ट्रांसमीटर चिपका दिया है ताकि चालाक इंसान को उनके प्रवास का पता चलता रहे। खुद बिगाड़े जल प्रबंधन को बिसराकर नैनो तकनीक और दूर संवेदी उपग्रहों की मदद से मानसून के अग्रदूत, चातकों को ट्रैक किया जा रहा है। पक्षियों को परेशानी हो तो हो, वो तो हमारी धरती पर आए ही हमारी सेवा के लिए।

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चतुर व स्वार्थी इंसान द्वारा कुदरत को असीमित नुक्सान पहुंचाने के बावजूद भी चातक ने अपना आचरण व व्यवहार नहीं बदला। हर बरस दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में मानसून के साथ वे उत्तरी भारत में दस्तक देते हैं और मानसून खत्म होते होते वापिस हो लेते हैं। क्या राजनीतिक वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक चिंतक व मानसून वैज्ञानिक इस बात को समझते हैं या समझना नहीं चाहते कि कुदरती जलवायु संतुलन क्या है और इसे कैसे बरकरार रखा जा सकता है, जलवायु परिवर्तन में विकास और वृक्षों की क्या भूमिका है। वक़्त ने करवट ली है अब प्रकृति के बच्चे चातक पक्षी ही समझाएंगे कि मानसून के साथ प्रकृति का क्या पारम्परिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध है। इस व्यवहारिक ज्ञान के आयोजन पर कई करोड़ खर्च किए जाने की मानवीय योजना तो बनाई ही जा सकती है।  

हर साल आने वाली बाढ़ का पानी वफ़ादारी की मानसून को भी ढूंढ रहा है। बरसों पहले एक सरकारी बजट में वफादारी के लिए जाने जाने वाले कुत्तों को खिलाए जाने वाले बिस्कुट सस्ते किए गए थे, लगता है फिर से वैसा करने की ज़रूरत है। उन बिस्कुटों को ज्यादा आकर्षक, स्वादिष्ट व कोरोना सेफ घोषित कर अभी भी न सुधरे इंसान को नियमित समय पर खिलाए जाने चाहिए ताकि कुदरत के प्रति वफादारी का गुण इंसानी शरीर में पुन पनप सके। 

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होशियार आदमी के हाथ से पानी के सभी तरह के प्रबंधन छूटते जा रहे हैं। उसके सामने बाढ़ है लेकिन वह स्वार्थों की आड़ में छिपा रहता है। अगर चातक ने इंसान को मानसून प्रबंधन में सहयोग किया तो निश्चित ही अगली  इंसानी परियोजना  यह होगी कि ऐसा कौन सा पक्षी है जो स्पष्ट उपाय बता सके कि बाढ़ को आने से कैसे रोका जा सकता है क्यूंकि इंसान द्वारा किए जा रहे सभी उपाय हमेशा बाढ़ में बहते रहे हैं। ऐसा लगता है तकनीक और विज्ञान ज्यादा हो रहा है तभी पक्षियों से सीखने के दिन आ गए हैं।

- संतोष उत्सुक

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