समान विचारधारा वाले दल (व्यंग्य)

political meetings (satire)
विजय कुमार । Jul 14 2018 4:59PM

विपक्षी दलों को लगता है कि 2019 में यदि वे मिलकर लड़ें, तो मोदी को हरा सकते हैं। इसलिए समान विचारधारा के नाम पर वे घर से लेकर होटल तक और खाने से लेकर पीने तक लगातार बैठकें कर रहे हैं।

इन दिनों भारत में घमासान राजनीतिक मंथन हो रहा है। विपक्षी दलों को लगता है कि 2019 में यदि वे मिलकर लड़ें, तो मोदी को हरा सकते हैं। इसलिए समान विचारधारा के नाम पर वे घर से लेकर होटल तक और खाने से लेकर पीने तक लगातार बैठकें कर रहे हैं। दिल्ली में हुई बैठकों के बाद बड़े नेताओं ने कहा कि अब छोटे स्तर पर भी ऐसी बैठकें होनी चाहिए। क्योंकि चुनाव लड़ना और लड़ाना तो उन्हें ही पड़ता है। 

हमारे प्रिय शर्मा जी भी खानपान की व्यवस्था के लिए कई बार ऐसी बैठकों में चले जाते हैं। इन बैठकों में महंगे होटल से खाना आता है। इसलिए शर्मा जी वहां अगली-पिछली सब कसर निकाल लेते हैं। भले ही अगले दो दिन उन्हें घर पर खिचड़ी खानी पड़े। 

परसों हमारे नगर में ऐसी ही एक बैठक थी। शर्मा जी वहां व्यवस्था में लगे थे। बैठक का समय दस बजे था। लोग ग्यारह बजे आने शुरू हुए। बारह बजे बैठक शुरू हुई। सबसे पहले तो इस बात पर बहस होने लगी कि बैठक का अध्यक्ष कौन हो ? जिन नेताजी के घर बैठक हो रही थी, उनका हक स्वाभाविक रूप से बनता था; पर उनकी पार्टी का सदन में एक ही सदस्य था। इसलिए उनके नाम पर लोग राजी नहीं हुए।

फिर दूसरे नेता जी का नाम आया। सदन में उनकी पार्टी मुख्य विपक्षी दल थी; पर वे नेताजी कई बार दल बदल चुके थे। कुछ दिन पहले अमित शाह के साथ उनका बेटे का फोटो छपा था। सबको पता था कि इसके पीछे शह इन नेताजी की है। इसलिए उनके नाम का प्रस्ताव भी स्वीकार नहीं हुआ।

तीसरे दल का प्रतिनिधित्व एक महिला कर रही थीं। वहां आये सब लोग पुरुषवादी मानसिकता के थे। वे एक महिला को सिर पर बैठाने को राजी नहीं हुए। चौथे दल वालों का काम मुख्यतः एक ही जाति में था। पांचवें दल के अधिकांश लोगों का संपर्क अपराधियों से होने के कारण उनके प्रतिनिधि का नाम भी नहीं माना गया। छठी पार्टी कंगाल पार्टी के नाम से प्रसिद्ध थी। इसलिए उसके प्रतिनिधि का नाम प्रस्तुत ही नहीं हुआ।  

इस चक्कर में दो बज गये और भोजन का समय हो गया। भोजन के बाद कुछ लोग पान खाने बाहर चले गये, तो कुछ लोग लेट गये। जैसे-तैसे चार बजे सब बैठे, तो फिर अध्यक्षता की समस्या आ गयी। शर्मा जी बार-बार वहां आ रहे थे। अतः सबने उन्हें ही अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया। शर्मा जी ने बहुत मना किया; पर जब सबने जिद की, तो वे मान गये। अब मुद्दा समान विचारधारा का था। इस पर तो सब एकमत थे कि मोदी के प्रत्याशी के सामने विपक्ष का एक ही व्यक्ति हो; पर वह कौन हो, यह कठिन प्रश्न था।

इस बारे में हर किसी के अपने-अपने तर्क थे। कोई अपनी जातिगत बहुसंख्या की बात कह रहा था, तो कोई पिछली लोकसभा और विधानसभा में प्राप्त वोटों के प्रतिशत की। किसी के लिए उसके नेता का कद महत्वपूर्ण था, तो किसी के लिए प्रत्याशी का। किसी को अपने पैसे का घमंड था, तो किसी को अपनी गुंडई का। इस विषय पर माहौल गरम होने लगा। चूंकि असली बात विचारधारा की नहीं, चुनाव लड़ने की ही थी।

एक नेताजी हर दूसरे वाक्य में मां-बहिन को बीच में ले आते थे। इससे नाराज होकर महिला नेता चप्पल लेकर उन पर पिल पड़ीं। बस फिर क्या था, खुलेआम हाथापाई और लातापाई शुरू हो गयी। लोग एक-दूसरे पर समोसे से भरी प्लेट और चटनी समेत डोंगे फेंकने लगे। शर्मा जी ने बीच-बचाव का प्रयास किया; पर दो घूंसे उन्हें भी लग गये। माहौल बिगड़ता देख उन्होंने वहां से फरार होने में ही भलाई समझी। चलते-चलते वे हर बार की तरह काजू और किशमिश का बड़ा पैकेट थैले में रखना नहीं भूले। 

कल शर्मा जी मिले, तो उनका चेहरा सूजा हुआ था। उन्होंने बताया कि बैठक में पहले तो सबके विचार अलग थे; पर अंत में मारपीट के मुद्दे पर सबकी विचारधारा एक हो गयी। 

सुना है अगले महीने समान विचारधारा वाले दलों और नेताओं की एक बड़ी बैठक फिर है। शर्मा जी ने उसके लिए एक हैलमेट भी खरीद लिया है। 

-विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़