दुनिया हमसे पीछे (व्यंग्य)

यह खुशखबर है हमारे यहां उत्कृष्ट ब्रांड्स की रचना की जा रही है। काफी समझदार व्यवसायी बाज़ार की नज़ाकत को ध्यान में रखते हुए प्रीमियम सेगमेंट में प्रवेश कर चुके हैं। ज़िंदगी का मज़ा लेने और देने में हम दुनिया से पीछे क्यूं रहें।
दुनिया को हमने फिर पीछे छोड़ दिया है। वैसे तो कई क्षेत्र हैं जहां दुनिया हमारी तरफ देखने के बाद खुद को विद्यार्थी जैसा ही महसूस करती है लेकिन ताज़ा खबर तो वाकई शानदार, मस्त कर देने वाली है। पढ़ लो देशवासियो। सोमरस पीने के मामले में दुनिया पीछे रह गई है और हम आगे बढ़ गए हैं। पढ़ने और सुनने और कहने में आ रहा है कि दुनिया भर में शराब की खपत कम हो रही है और हमारे यहां खपत का विकास हो रहा है।
अब तो हमने इस शान बढ़ाऊ, हिम्मत दिलाऊ पेय को सोमरस ही नहीं, बुधरस और शुक्ररस का नाम भी दिया है। मंगलवार और वृहस्पतिवार की शाम को इस लाजवाब रस को अछूत मानने वाले भी काफी बदल चुके हैं और बदल रहे हैं। उन वारों में यह पेय अब जीवनमंगल रस और वृहस्पतिकल्याण रस के रूप प्रयोग किया जा रहा है। शनीरस और रविरस तो ज़िंदगी की थकावट उतारने के लिए पहले से ही दुनिया भर में ज़रूरी माना जाता रहा है। हमारी युवा आबादी जी भरकर काम कर रही है। करोड़ों कमा रही है तो क्या सिर्फ एक बार मिली ज़िंदगी का पूरा लुत्फ़ लेने के लिए पूरी छोले खाएं, गोल गप्पे निगलें।
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यह खुशखबर है हमारे यहां उत्कृष्ट ब्रांड्स की रचना की जा रही है। काफी समझदार व्यवसायी बाज़ार की नज़ाकत को ध्यान में रखते हुए प्रीमियम सेगमेंट में प्रवेश कर चुके हैं। ज़िंदगी का मज़ा लेने और देने में हम दुनिया से पीछे क्यूं रहें। उधर दुनिया के कई देश, ज़िंदगी का मज़ा लेने में हमसे पिछड़ रहे हैं। हमने उनसे खूब मज़ा लेना सीखा लेकिन उन्होंने मज़ा कम लेना शुरू कर दिया। हम उनके जैसे हो गए और वो वैसे... जैसे हम पहले थे। वैसे बहकने के मामले में तो हम खासे अनुभवी हैं। बहकने का अंग्रेज़ी अनुवाद किया जाए तो ‘विहस्की’ जैसा कुछ बनेगा जिसे हम ‘विहस्कना’ भी कह सकते हैं। ज़िंदगी का खरा सच यह माना जाता है कि जिन बेचारों ने इस दुनिया में आकर सोमरस का सेवन नहीं किया उन्होंने क्या ज़िंदगी जी। वे तो मिक्स दाल, आलू, कोल्ड ड्रिंक, ब्रेड, कढ़ी, खीर और खीरे खाते ही रह गए। खुद तो खा पी न सके लेकिन बच्चों को रोक न पाए।
हमारे तो कई ईष्टों द्वारा यह आनंद रस पीने के संदर्भ मिलते हैं। आज भी कई जगह प्रसाद में मदिरा वितरित होती है। हाय! हम अच्छे बुरे पाटों में पिसते रह गए लेकिन जो खाते पीते रहे वो आगे बढ़ गए, विकसित हो गए और उन्होंने दूसरों को पीछा छोड़ दिया। ठीक वैसे, जैसे अब देश के सामयिक समझदार लोगों के व्यावसायिक योगदान ने दुनिया को पीछे छोड़ दिया।
आम तौर पर हम अंतर्राष्ट्रीय सर्वे या अध्ययन को अपने विरुद्ध मानकर बुरा मान जाते हैं। यह अध्ययन भी दुनिया की एक लीडिंग ग्लोबल मार्किट रिसर्च एंड डाटा एनालिटिक्स फर्म, जो मदिरा रस उद्योग की विशेषज्ञ है, ने किया है। हमारे देश को दुनिया का सबसे ज्यादा शराब पीने वाला देश कहा जाए इसे एक दम स्वीकार नहीं करना चाहिए।
- संतोष उत्सुक
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