सोशल मीडिया में हम पीछे (व्यंग्य)

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ताज़ा अध्ययन किसी रिसर्च सेंटर ने करवाया है। इनका कहना है कि कई देशों के मुकाबले में सोशल मीडिया का प्रयोग भारतीय कम करते हैं। हमारी जनसंख्या चीन से ज़्यादा हो गई है। छ महीने का बच्चा फोटो खींचना शुरू कर देता है, सेल्फी लेना सीख रहा होता है और वह कह रहे हैं कि हम पीछे हैं।

आप हैरान हुए न शीर्षक पढ़कर। मुझे भी हैरानी भरा गुस्सा आया था जब पढ़ा था इस अध्ययन के बारे में। दुनिया के लिए जो काम ज़रूरी हैं वो तो किए ही नहीं जा रहे। पूरी दुनिया जानती है कि सामाजिक मीडिया का प्रयोग और विकास हमारे देश में सबसे ज़्यादा हुआ है। लेकिन फेक न्यूज़, डीप फेक वीडियो के ज़माने में डीप और फेक अध्ययन भी खूब पंख पसार रहा है। विदेशों में हमारे बारे झूठी बातें अभी भी फैला दी जाती हैं। ऐसे ऐसे अध्ययन किए जा रहे हैं जिससे लगता है असली अध्ययन तो धीरे धीरे खत्म ही हो जाएगा। अब कृत्रिम बुद्धि तेज़ी से नैसर्गिक बुद्धि पर कब्ज़ा करने में अस्त व्यस्त है। लोगों की प्राकृतिक बुद्धि की परेशानी बढ़ती जा रही है।

ताज़ा अध्ययन किसी रिसर्च सेंटर ने करवाया है। इनका कहना है कि कई देशों के मुकाबले में सोशल मीडिया का प्रयोग भारतीय कम करते हैं। हमारी जनसंख्या चीन से ज़्यादा हो गई है। छ महीने का बच्चा फोटो खींचना शुरू कर देता है, सेल्फी लेना सीख रहा होता है और वह कह रहे हैं कि हम पीछे हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग कम करते हैं।

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अखबार वाले भी ख़बरों के क्या क्या हैडिंग बनाते हैं। ‘सोशल मीडिया के इस्तेमाल में भारतीय सबसे पीछे, ब्राजील अव्वल।’ बड़ा दुःख हुआ और शर्म आनी एक दम शुरू हो गई कि हम उस छोटे से मुल्क ब्राजील से भी पीछे हैं। हम तो कब के भूल चुके हैं कि हमारे युवा किसी समय उनके नाम वाले गाने ‘ब्रा....जील ...ल रा रा ल ला रा’ के दीवाने थे। अब हम उन्हें कहां पूछते हैं। इन अखबार वालों के खबर चयन की बुरी दाद देनी चाहिए।  बड़ा चुनाव घोषित होते ही दूसरी ख़बरों की कमी हो गई है जो आठ महीने से भी ज़्यादा पुराने सर्वेक्षण के नतीजे अभी कुछ दिन पहले ही छापे हैं। हैरानी की बात यह है कि इस सर्वेक्षण में सबसे पीछे हमें बताया गया है यानी सोशल मीडिया प्रयोग करने वाले हमारे वीर सबसे आगे नहीं हैं। वह बात अलग है कि ज़्यादातर वीरों ने इसे एंटी सोशल मीडिया बना डाला है।  

मजेदार और जोर से हंसने वाली बात यह है कि संदर्भित अध्ययन सिर्फ आठ देशों में कराया गया। जिसमें ब्राजील, मैक्सिको, अर्जेंटीना, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और भारत शामिल किए गए। बेचारों के पास समय कम था तभी इतने कम देशों को शामिल किया जा सका। शायद उन्होंने सर्वे निश्चित समय में निबटाना था और कहीं न कहीं से कुछ पैसा आना था। 

ऐसे सर्वे अविलम्ब बंद किए जाने चाहिए। इससे सफ़ेद ही नहीं सलेटी और भूरे रंग का झूठ भी फैलता है जो ज़िंदगी का ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिताने वालों की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। भावनाओं को किसी भी किस्म की ठेस पहुंचाना गलत बात होती है।

- संतोष उत्सुक

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