हमने, तुमने, किसी ने क्या लेना (व्यंग्य)

hindi satire

पत्नी के साथ घूमने निकला तो उनकी नाक को भी अच्छा नहीं लगा बोली कैसे कैसे लोग हैं कचरा ड्रम में नहीं डालते, गीला और सूखा अलग करना दूर, पोलिथीन बैग में भरकर आस पास फेंक कर निकल लेते हैं। कितनी ज़्यादा बदबू है।

उन्होंने तो सीधे सपाट कह दिया कि मैंने क्या लेना और मुझे भी समझा दिया कि तुमने भी क्या लेना। लोग अभी भी कूड़ा यहां वहां फेंक देते हैं, चलो म्युनिसिपल कमेटी में इनकी शिकायत करते हैं। यह सोच कर कि एक अकेला दो ग्यारह माने जाते हैं, उनसे कहने की गुस्ताखी कर दी। एक अन्य सुपरिचित से कहा तो उन्होंने भी समझाया, आप अपना कूड़ा सही तरह से ठिकाने लगाते हो न। मैंने कहा हां। वे बोले, फिर मैंने क्या लेना और आपने भी क्या लेना। किसी को समझाने की कोशिश करोगे तो कहीं कचरा आपके सर और चश्मे पर न बिखेर दे। कूड़ा कचरा कई रंग, किस्म और आकार का होता है। वक्त खराब चल रहा है बच कर रहना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: जूतों के दाँत (व्यंग्य)

पत्नी के साथ घूमने निकला तो उनकी नाक को भी अच्छा नहीं लगा बोली कैसे कैसे लोग हैं कचरा ड्रम में नहीं डालते, गीला और सूखा अलग करना दूर, पोलिथीन बैग में भरकर आस पास फेंक कर निकल लेते हैं। कितनी ज़्यादा बदबू है। मैंने कहा एक फोन कर दूं सैनिटरी इंस्पेक्टर को। वे मुझे घूर कर बोली, आपने क्या लेना, मैं तो यूं ही कह रही थी। बात तो सही है कितनी बार गलत बातें मुंह से बाहर की तरफ निकल जाती हैं। कुछ कदम पर एक परिचित धाकड़ पत्रकार मिल गए, कचरा पेटी के पास से निकल कर आ रहे थे, हमने उनसे हाथ जोड़कर गुजारिश की, देश में स्वच्छता अभियान अभी जारी है, देखिए लोग फिर भी कूड़ा कचरा सड़क पर ही फेंक देते हैं। कृपया आप इसकी खबर फोटो के साथ छापिए। खिसिया कर बोले कितनी बार छाप चुके हैं, मुंह ज़बानी भी कितनों को समझा चुके हैं। कोई मानता तो है नहीं तो हमने भी क्या लेना और आप भी मस्त रहो।

इसे भी पढ़ें: विकास के माप, नाप और पोल (व्यंग्य)

हमारे परिचित नहीं माने, पत्नी नहीं मानी, पत्रकार भी नहीं माने वस्तुत अब कोई सहज मानने को तैयार नहीं होता। अब तो कूड़ा कर्कट ऐसा होना चाहिए जो स्वत: चल कर कचरा पेटी में चला जाए। नगरपालिका के कर्मचारी सरकारी हैं, इसलिए थोड़ा काम करके ज़्यादा थक जाते हैं। ठेकेदार कर्मचारियों को कम पैसे पर ज़्यादा सफाई करवाते हैं। सामाजिक संस्थाओं के कारनामे समझा देते हैं कि कोई भी अभियान रैलियों, विज्ञापनों, भाषणों, फोटोज, ख़बरों व मुख्य अतिथि के आधार पर सफल रहता है। अब तो स्वस्थ, खुश और संतुष्ट रहने का ज़माना है। विभिन्न प्रकार के नायकों, प्रशासकों, प्रवाचकों व धर्माधीशों के निरंतर सद्व्यवहार से सहनशीलता हमारे रोमरोम में रच गई है। हमारे पड़ोस, मुहल्ले, शहर, ज़िला, राज्य या देश में कुछ यानि कुछ भी हो रहा हो हमारा चुप, शांत रहने का सदगुण हमेशा व्यक्तिगत सकारात्मक परिणाम लाता है। छोटे मोटे कचरे से उद्वेलित होने की ज़रूरत नहीं है। बात उचित है हमने, तुमने और किसी ने क्या लेना। 

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़